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मानवता से जुड़ी चुनौतियों से पार पाने में गीता आज भी प्रासंगिक: प्रधानमंत्री

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को स्वामी चिदभवानन्द की ‘भगवद् गीता’ के किंडल संस्करण का विमोचन करते हुए कहा कि गीता का ज्ञान आज के समय में भी महाभारत के काल जितना ही प्रासंगिक है।

यह हमें मानवता के सामने आने वाली चुनौतियों से पार पाने के लिए शक्ति और दिशा प्रदान कर सकता है। वैश्विक महामारी और सामाजिक व आर्थिक प्रभावों के बीच संतुलन बनाने के दौरान गीता ‘पथ प्रदर्शक’ की भी भूमिका निभा सकती है।

इस वर्चुअल कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि गीता हमें खुले मन से सोचने, प्रश्न पूछने और चर्चा करने के लिए प्रेरित करती है।

उन्होंने कहा कि गीता की सुंदरता उसकी गहराई, विविधता और लचीलेपन में है। आचार्य विनोबा भावे ने गीता को माता के रूप में वर्णित किया है। वह इसलिए कि गीता ठोकर खाए हुए व्यक्ति को संभालती है। महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, महाकवि सुब्रमण्यम भारती जैसे महान लोग गीता से प्रेरित थे।

प्रधानमंत्री ने युवाओं से विशेषकर आग्रह करते हुए कहा कि वह श्रीमद्भागवत की गीता की शिक्षाओं और उसके व्यवहारिक समाधान की ओर ध्यान दें।

किंडल संस्करण को लॉन्च करने के बाद प्रधानमंत्री ने कहा कि ई-बुक्स युवाओं में विशेष रूप से लोकप्रिय हो रही है। ऐसे में यह प्रयास अधिक से अधिक युवाओं को गीता के महान विचारों में सहायक सिद्ध होगा।

दुनिया भर में रह रहे तमिलों और तमिल संस्कृति की प्रशंसा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह गीता का संस्करण सर्वकालिक गीता और महान तमिल संस्कृति के संबंध को मजबूत करेगा।

उन्होंने कहा कि तमिल विभिन्न क्षेत्रों में ऊंचाइयां हासिल करते हुए भी अपनी संस्कृति और उसकी महानता को हर जगह साथ लेकर गए हैं।

स्वामी चिदभवानंद को श्रद्धांजलि देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने मन, शरीर, हृदय और आत्मा से अपना जीवन भारत के उत्थान के लिए समर्पित दिया।

वह विदेश में शिक्षा हासिल करना चाहते थे लेकिन स्वामी विवेकानंद के मद्रास में दिए गए व्याख्यान से प्रभावित होकर उन्होंने अपना जीवन राष्ट्र चिंतन को समर्पित कर दिया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि गीता ने कर्म का मार्ग सुझाया है और बताया है कि कुछ ना करने से कुछ करना बेहतर है। उन्होंने इसे आत्मनिर्भर भारत से जोड़ते हुए कहा कि यह अभियान न केवल देश की समृद्धि चाहता है बल्कि बाकी दुनिया को बेहतरी की ओर ले जाना चाहता है। हमें लगता है कि आत्मनिर्भर भारत विश्व के लिए लाभकारी है।

एक श्लोक का उद्धरण देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि श्रेष्ठ लोगों के आचरण समाज में अन्य के लिए प्रेरणा बनते हैं। उन्होंने कहा कि रामकृष्ण तद्भव भवन आश्रम उनके चिंतन को दुनिया भर में ले जा रहा है।

स्वामी चिदभवानन्द तमिलनाडु के चिरुचिरापल्ली स्थित तिरूपराथुरई में श्रीरामकृष्ण तपोवनम आश्रम के संस्थापक हैं।

गीता पर स्वामी चिदभवानन्द का विद्वत्तापूर्ण कार्य इस विषय पर अब तक लिखी पुस्तकों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।

गीता का तमिल संस्करण, जिसमें उनकी टिप्पणियां भी शामिल हैं, 1951 में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद 1965 में उसका अंग्रेजी संस्करण प्रकाशित हुआ था।

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