Ranchi News: धुर्वा स्थित जगन्नाथ मंदिर से हर साल आषाढ़ मास में भव्य रथ यात्रा निकलती है, जिसमें प्रभु जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र रथ पर सवार होकर मौसीबाड़ी जाते हैं। इस साल 27 जून से शुरू होने वाली रथ यात्रा की तैयारियां जोरों पर हैं। लाखों श्रद्धालु मेले में उमड़ते हैं, खासकर पहले और अंतिम दिन (घुरती रथ) हजारों भक्त रथ खींचने पहुंचते हैं।
मंदिर की स्थापना और इतिहास
जगन्नाथ मंदिर की स्थापना 1691 में बारकागढ़ जगन्नाथपुर के राजा थाकुर अनी नाथ शाहदेव ने की थी। यह मंदिर पुरी, ओडिशा के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर की छोटी प्रतिकृति है, जो कालिंग शैली की वास्तुकला में बना है। 25 दिसंबर 1691 को पूर्ण हुआ यह मंदिर रांची से 10 किमी दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर की दीवारों पर जटिल नक्काशी और रंगीन पत्थरों का मिश्रण इसे आकर्षक बनाता है।
ऐतिहासिक रूप से, मंदिर को मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा 1691 में अपवित्र और लूटा गया था। 1990 में मंदिर ढांचा ढह गया था, लेकिन 1992 में पुनर्निर्माण के बाद यह फिर से भक्तों के लिए खुल गया।
रथ यात्रा और सांस्कृतिक महत्व
रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लकड़ी के विग्रह विशाल रथ पर सवार होकर मौसीबाड़ी जाते हैं। यह उत्सव पुरी की रथ यात्रा की तरह भव्य होता है, जिसमें आदिवासी और गैर-आदिवासी भक्त शामिल होते हैं। मंदिर वैष्णव परंपरा का केंद्र है, जहां सम्यक दर्शन, ज्ञान और चरित्र के प्रतीक के रूप में तीनों देवताओं की पूजा होती है।
मंदिर के शिखर पर सुदर्शन चक्र और हरे-भरे परिदृश्य का मनोरम दृश्य इसे पर्यटकों और भक्तों के लिए आकर्षक बनाता है। भक्त सीढ़ियों या वाहन मार्ग से मंदिर पहुंचते हैं, जहां भोग और आरती की व्यवस्था होती है।
जगन्नाथ धाम की स्थापना
रांची का जगन्नाथ मंदिर, जिसे जगन्नाथ धाम के रूप में भी जाना जाता है, झारखंड की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक है। थाकुर अनी नाथ शाहदेव ने इसे भगवान विष्णु के अवतार जगन्नाथ को समर्पित कर बनवाया था।
यह मंदिर न केवल धार्मिक केंद्र है, बल्कि सामुदायिक एकता और परोपकार का भी प्रतीक है, जहां अन्नदानम और शैक्षिक पहल जैसी गतिविधियां होती हैं। मंदिर की स्थापना ने रांची को धार्मिक पर्यटन के नक्शे पर स्थापित किया, और रथ यात्रा ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।