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गर्मी से जल रहा था दुबई, इस तरह ड्रोन से हुई झमाझम बारिश

नई दिल्ली: दुबई में ड्रोन के जरिये कृत्रिम बरसात के बाद पूरी दुनिया में नई बहस शुरू हो गई है।

बाढ़, सूखा, गर्मी और प्रदूषण जैसी समस्या से लड़ने में कृत्रिम बारिश को एक कारगर हथियार के रूप में देखा जा रहा है।

हालांकि भारत समेत कई देश कई बार कृत्रिम बारिश करा चुके हैं, लेकिन दुबई ने जिस ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल करके बरसात कराई, वह कई मायने में खास है।

इस तकनीक की खासियत और कृत्रिम बारिश के भविष्य से जुड़ी रोचक जानकारी ये हैं- कृत्रिम बारिश का आधार क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया है, जो काफी महंगी होती है।

एक आकलन के मुताबिक एक वर्ग फुट बारिश कराने की लागत करीब 15 हजार रुपये आती है।

भारत में कर्नाटक सरकार ने दो साल तक क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट पर काम किया जिसकी लागत करीब 89 करोड़ रुपये आई।

दुबई ने क्लाउड सीडिंग के लिए नया तरीका अपनाया है। इसके तहत बिजली का करंट देकर बादलों को आवेशित किया जाता है। यह तकनीक परंपरागत विधि के मुकाबले हरित विकल्प मानी जाती है।

इसके तहत बादल बनाने के लिए बैटरी संचालित ड्रोन के जरिये विद्युत आवेश का इस्तेमाल कर क्लाउड सीडिंग करते हैं।

विमान के जरिये भी यह काम हो सकता है, लेकिन बैटरी चालित ड्रोन अधिक पर्यावरण हितैषी होते हैं।

इस तकनीक को विकसित करने का श्रेय यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग को जाता है, जो वर्ष 2017 से इस तकनीक पर काम कर रहा है।

रासायनिक कणों के छिड़काव, बादल बनने और फिर बारिश होना, सब कुछ मिनटों का खेल है। आम तौर पर 30 मिनट का समय लगता है।

हालांकि बारिश होने की समयावधि इस बात पर भी निर्भर करती है कि कणों का छिड़काव वायुमंडल की किस सतह में किया गया है।

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