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तीसरे विश्व युद्ध की कगार पर दुनिया, युद्ध हुआ तो होगी भारी तबाही

चीन-अमेरिका ने तैनात किए युद्धपोत

नई दिल्ली: दक्षिण चीन सागर पर कब्जे को लेकर दुनिया की महाशक्ति माने जाने वाले अमेरिका, रुस, चीन, जापान जैसे देश वर्चस्व की लड़ाई में एक-दूसरे के सामने खड़े हो गए हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध की तरह अमेरिका के मित्र देश, चीन के मित्र देश, एवं रुस के अमेरिकी कार्यवाही के विरोध में खड़े होने से तृतीय विश्व युद्ध की आशंका से सारी दुनिया के देश भयक्रांत हैं।

रासायनिक एवं अत्याधुनिक आणविक हथियारों, तेज लक्ष्यभेदी मिसाइलों, जमीन -जल एवं हवा में अत्यधिक मारक हथियारों के कारण भारी नुकसान की आशंका से सारी दुनिया में चिंता जताई जा रही है।

अन्तर्राष्ट्रीय अदालत एवं वैश्विक संस्थायें इन महाशक्तियों के सामने बेबस दिख रहीं हैं। दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में लगातार तनाव बढ रहा है।

यहाँ अमेरिका-चीन की सामरिक मोर्चाबंदी और अमेरिकी नौसेना के युद्धाभ्यास से युद्ध का खतरा मंडराने लगा है।

दुनिया में आर्थिक महाशक्तियों की अर्थव्यवस्था में गिरावट और आंतरिक जन असंतोष महायुद्ध का कारण बन सकता है, जिसमें जान-माल और पर्यावरण का भारी विनाश संभावित है।

अमेरिका लगातार दक्षिणी चीन सागर क्षेत्र में वर्चस्व बढ़ाने की कोशिश में चीन को उकसा रहा है।

सोमवार को भी एक अमेरिकी युद्धपोत पैरासेल द्वीप समूह के पास अवैध रूप से चीनी जल क्षेत्र में घुस आया था।

हालांकि इसे चीन की नौसेना ने दूर खदेड़ दिया। बाद में अमेरिका ने इस घटना का खंडन किया।

अंतरराष्ट्रीय अदालत के एक फैसले में कहा गया है कि बीजिंग का दक्षिण चीन सागर में कोई दावा नहीं बनता है। किन्तु चीन इस फैसले को नहीं मानता इसी कारण तनाव बढ़ रहा है।

अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन ने दक्षिण चीन सागर में चीन के लगभग सभी अहम समुद्री दावों को खारिज करने के पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के फैसले को बरकरार रखा है।

बाइडन ने चीन को चेतावनी भी दी है कि विवादित क्षेत्र में फिलीपीन पर अगर किसी भी तरह का हमला हुआ तो अमेरिका एक पारस्परिक रक्षा संधि के तहत जवाबी कार्रवाई करेगा।

इस क्षेत्र को लेकर चीन दावा करता है कि दो हज़ार साल पहले चीनी नाविकों और मछुआरों ने इस इलाक़े को सबसे पहले ढ़ूंढा, इसे नाम दिया और यहां काम शुरू किया।

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान 1939 से लेकर 1945 तक साउथ चाइनी सी के पूरे इलाक़े पर जापान का कब्ज़ा था।

जापान की हार के बाद चीन ने इस पर फिर से कब्ज़ा करने के लिए अपने नौसेनिक युद्धपोत यहां भेजे। इसी कारण अब जापान भी इस जंग में शामिल होने को बेताब है।

एक छोर पर जहाँ अमेरिका, ब्रिटैन, ऑस्ट्रेलिया, जापान सहित मित्र देश हैं वहीं दूसरी तरफ रूस, चीन, पकिस्तान, मुस्लिम देशों सहित कई छोटे-बड़े देश हैं।

ऑस्ट्रेलिया के एक पूर्व मेजर जनरल ने मई माह में ही चेतावनी दी थी कि अगर बीजिंग बलपूर्वक ताइवान को कब्जाने की कोशिश करता है तो अमेरिका और चीन के बीच बहुत बड़ा युद्ध हो सकता है। ये

युद्ध तीसरे विश्व युद्ध की तरह होगा। दूसरी ओर, ऑस्ट्रेलिया को भी चीन से हमलों का सामना करना पड़ सकता है।

हाल के समय में चीन के रवैये को देखते हुए ताइपे के प्रति बीजिंग के इरादों को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं।

अमेरिका की नौसेना के एक अधिकारी ने भविष्यवाणी की है कि बीजिंग अगले छह वर्षों के भीतर ताइवान पर कब्जा कर सकता है।

अप्रैल में चीन के उप विदेश मंत्री ले युचेंग ने जोर देकर कहा था कि बीजिंग ताइवान को कभी भी स्वतंत्र नहीं होने देगा। इसके लिए चीन को गुआम बेस को खत्म करना होगा।

इसके अलावा, चीन को जापान में अमेरिकी ठिकानों को भी निशाना बनाना होगा। ऐसी परिस्थितियां किसी बड़े युद्ध से कम नहीं होंगी।

इस युद्ध में ऑस्ट्रेलिया को चीन की तरफ से कोलेटरल हमला सहना पड़ सकता है।

ऐसी स्थिति में विश्व युद्ध कभी भी भड़क सकता है जो पिछले विश्व युद्ध से कई गुना ज्यादा विनाशी होगा और पर्यावरण को व्यापक नुकसान पहुंचाएगा।

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