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सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल से कहा- समस्याओं का हवाला न दें, एक राष्ट्र एक राशन कार्ड लागू करें

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल सरकार से वन नेशन-वन राशन कार्ड (एक राष्ट्र एक राशन कार्ड) योजना को तुरंत लागू करने को कहा है।

न्यायाधीश अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम. आर शाह की पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि बिना किसी बहाने के तुरंत एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड को लागू करें।

पीठ ने सख्त लहजे में कहा कि, आप एक या दूसरी समस्या का हवाला नहीं दे सकते। यह प्रवासी श्रमिकों के लिए है।

शीर्ष अदालत कोविड महामारी के बीच प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं और दुखों को दूर करने वाले मामले की सुनवाई कर रही थी।

याचिकाकतार्ओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने प्रस्तुत किया कि लगभग 2.8 करोड़ प्रवासी बिना राशन कार्ड के हैं और वे गंभीर कठिनाई में हैं, क्योंकि उन्हें पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत कवर नहीं किया जा रहा है।

पीठ ने कहा कि योजना को नवंबर तक बढ़ा दिया गया है, लेकिन दवे ने कहा कि इस योजना से केवल राशन कार्ड रखने वालों को ही फायदा होगा।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि गरीब कल्याण योजना के तहत 80 करोड़ की पहचान की गई है।

जैसा कि पीठ ने पूछा कि राशन कार्ड नहीं रखने वाले लोगों को कौन सी योजना कवर करेगी, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने जवाब दिया कि यह राज्यों को छोड़ दिया गया है और जिनके पास राशन कार्ड नहीं है उनके लिए योजनाएं बनाने के कार्य को राज्य देख रहे हैं।

पीठ ने कहा कि केंद्र खाद्यान्न वितरित करने के लिए तैयार है और उसे यह देखना होगा कि क्या तंत्र अपनाया जा सकता है। दवे ने हालांकि दलील दी कि केंद्र राज्यों पर बोझ डालने की कोशिश कर रहा है।

पीठ ने कहा कि ऐसे राज्य हैं, जिनके पास ऐसी योजनाएं नहीं हैं और क्या गरीब कल्याण योजना को अस्थायी रूप से उन लोगों के लिए भी बढ़ाया जा सकता है जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं।

इस पर मेहता ने कहा कि केंद्र के अधिकारी राज्यों के संबंधित सचिवों से बातचीत कर एक हफ्ते बाद वापस आ सकते हैं। उन्होंने कहा, उन्हें मरने के लिए कोई नहीं छोड़ रहा है।

उनकी मदद के लिए योजनाएं हैं। सुनवाई के दौरान, महाराष्ट्र और पंजाब सरकारों के वकील ने अदालत को सूचित किया कि वे एक राष्ट्र एक राशन कार्ड योजना का पालन करते हैं।

इस स्तर पर, पश्चिम बंगाल सरकार के वकील ने प्रस्तुत किया कि राज्य ने अभी तक इस योजना को लागू नहीं किया है।

इस पर पीठ ने कहा कि उसे इसे लागू करना होगा, जब अन्य राज्यों में यह लागू है तो उन्हें आखिर क्या दिक्कत है।

शीर्ष अदालत ने राज्यों से मामले में संक्षिप्त जवाब दाखिल करने को कहा और फैसला सुरक्षित रख लिया।

शीर्ष अदालत ने असंगठित श्रमिकों के पंजीकरण के लिए केंद्र द्वारा सॉफ्टवेयर के विकास में देरी पर भी असंतोष व्यक्त किया।

अदालत ने कहा, आपने इसे अगस्त 2020 में शुरू किया था और यह काम अभी भी खत्म नहीं हुआ है।

इस पर यह कहते हुए कि केंद्र कोई सर्वेक्षण नहीं कर रहा है, लेकिन केवल एक मॉड्यूल बना रहा है, ताकि डेटा को तंत्र में फीड किया जा सके, मेहता ने जवाब दिया कि अदालत की चिंता सही है और वह इस मामले से निपटेंगे।

इस पर पीठ ने कहा कि इसे अब नौकरशाही पर नहीं छोड़ा जा सकता। पीठ ने केंद्र की खिंचाई करते हुए कहा, आपके अधिकारियों ने कुछ नहीं किया है।

सिर्फ इसलिए कि आपके निदेशकों आदि के पास समय नहीं है, इसे हमेशा के लिए रोक नहीं सकते।

मेहता ने अदालत से योजना के विस्तार पर आदेश पारित नहीं करने का अनुरोध किया, क्योंकि इसके वित्तीय प्रभाव हो सकते हैं। पीठ ने जवाब दिया कि वह मामले को समझती है।

शीर्ष अदालत एक्टिविस्ट हर्ष मंदर, अंजलि भारद्वाज और जगदीप छोक्कर के एक आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अदालत से निर्देश देने की मांग की गई है, ताकि प्रवासी श्रमिक राशन और खाद्य सुरक्षा से वंचित न हों और वे नाममात्र कीमत पर अपने घर वापस जाने में सक्षम हों।

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