कलकत्ता: हालिया विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के कारणों का पता लगाने के लिए गठित पांच सदस्यीय समूह ने अपनी रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को सौंप दी है।
इस समूह के अध्यक्ष और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने यह जानकारी दी।
11 मई को गठित इस समूह को रिपोर्ट सौंपने के लिए दो सप्ताह का समय दिया गया था। बाद में इस समूह को एक सप्ताह का समय और दिया गया।
इस समूह में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद, मनीष तिवारी, विंसेट पाला और लोकसभा सदस्य ज्योति मणि भी शामिल थे।
इस समूह के गठन के बाद से इसके सदस्यों ने वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी के नेताओं के साथ कई बैठकें कीं।
समूह ने संबंधित राज्यों के प्रभारियों और प्रदेश इकाइयों के वरिष्ठ नेताओं के साथ कई दौर की बातचीत की है तथा उनका फीडबैक भी लिया।
कांग्रेस की शीर्ष नीति निर्धारण इकाई कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की पिछले दिनों हुई डिजिटल बैठक में सोनिया गांधी ने प्रस्ताव दिया था कि चुनावी नतीजों के कारणों का पता लगाने के लिए एक छोटा समूह गठित किया जाए।
इस पर सीडब्ल्यूसी ने अपनी सहमति दी थी। गौरतलब है कि असम और केरल में सत्ता में वापसी का प्रयास कर रही कांग्रेस को करारी हार झेलनी पड़ी। वहीं, पश्चिम बंगाल में उसका खाता भी नहीं खुल सका।
पुडुचेरी में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा जहां कुछ महीने पहले तक वह सत्ता में थी।
तमिलनाडु में उसके लिए राहत की बात रही कि द्रमुक की अगुवाई वाले उसके गठबंधन को जीत मिली।इस समूह के गठन के बाद से इसके सदस्यों ने वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी के नेताओं के साथ कई बैठकें कीं।
समूह ने संबंधित राज्यों के प्रभारियों और प्रदेश इकाइयों के वरिष्ठ नेताओं के साथ कई दौर की बातचीत की है तथा उनका फीडबैक भी लिया।
कांग्रेस की शीर्ष नीति निर्धारण इकाई कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की पिछले दिनों हुई डिजिटल बैठक में सोनिया गांधी ने प्रस्ताव दिया था कि चुनावी नतीजों के कारणों का पता लगाने के लिए एक छोटा समूह गठित किया जाए।
इस पर सीडब्ल्यूसी ने अपनी सहमति दी थी। गौरतलब है कि असम और केरल में सत्ता में वापसी का प्रयास कर रही कांग्रेस को करारी हार झेलनी पड़ी।
वहीं, पश्चिम बंगाल में उसका खाता भी नहीं खुल सका। पुडुचेरी में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा जहां कुछ महीने पहले तक वह सत्ता में थी।
तमिलनाडु में उसके लिए राहत की बात रही कि द्रमुक की अगुवाई वाले उसके गठबंधन को जीत मिली।