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OMG! इस देश में हर 3 साल पर कब्रों से क्यों निकाली जाती हैं लाशें

जश्न मनाने फेस्टिवल की शुरुआत आज से लगभग 100 साल पहले हुई थी

डिजिटल टीम: दुनिया के अलग-अलग इलाकों मैं लोग कई तरह के रीति रिवाज को मनाते हैं और अजीबोगरीब तरीकों से या उत्सव मनाया जाता है।

लेकिन आज हम आपको एक ऐसे त्यौहार के बारे में बताते हैं। जो लाशों के साथ मनाया जाता है जी हां इस त्यौहार के बारे में जानकर आपको थोड़ा सा अजीब जरूर

दुनिया के अलग-अलग इलाकों मैं लोग कई तरह के रीति रिवाज को मनाते हैं और अजीबोगरीब तरीकों से या उत्सव मनाया जाता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे त्यौहार के बारे में बताते हैं।

OMG! इस देश में हर 3 साल पर कब्रों से क्यों निकाली जाती हैं लाशें

जो लाशों के साथ मनाया जाता है जी हां इस त्यौहार के बारे में जानकर आपको थोड़ा सा अजीब जरूर लगने वाला है लेकिन यह बात बिल्कुल सच है। इंडोनेशिया की एक खास जनजाति इस त्यौहार को मनाती है।

जानिए क्यों हर 3 साल पर इंडोनेशिया में कब्रों से क्यों निकाली जाती हैं लाशें, क्यों मनाया जाता हैं वहां जश्न मनाने फेस्टिवल की शुरुआत आज से लगभग 100 साल पहले हुई थी।

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इसे मनाने के पीछे बरहमपुर गांव के लोग एक बहुत बड़ी रोमांचित कहानी सुनाते हैं लोग के मुताबिक 100 साल पहले गांव में सुरजन जनजाति का एक शिकारी जंगल में शिकार करने के लिए आया था।

इस शिकारी को जंगल में एक लाश देखी सड़ी गली लाश को देखकर वह वहां पर रुक गया। उसने लाश को अपने कपड़े पहना कर अंतिम संस्कार कर दिया।

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इस घटना के बाद से ही इस व्यक्ति की जिंदगी में कई सारे बदलाव आए उसकी बदहाली खत्म हो गई।

जिसके बाद से ही टोराजन जनजाति के लोगों में अपने पूर्वजों की लाश को सजाने की प्रथा शुरू हो गई। मान्यता है कि लाश की देखभाल करने पर पूर्वजों की आत्माएं उन व्यक्तियों को आशीर्वाद देती है।

इस त्यौहार को मनाने की शुरुआत किसी के मरने के बाद ही हो जाती है परिजन की मौत हो जाने पर उन्हें एक ही दिन में ना दफनाकर कई दिनों तक उत्सव मनाया जाता है।

यह सब चीजें मृत व्यक्ति की खुशी के लिए की जाती है। उसे अगली यात्रा के लिए तैयार किया जाता है।

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इस यात्रा को पुया कहा जाता है इस त्यौहार के दौरान परिजन बेल और वैसे जैसे जानवरों को मारते हैं और उनकी सीमाओं से मृतक का घर सजाते हैं मान्यता है कि जिसके घर पर जितनी सींग है लगी होंगी अगली यात्रा में उसका उतना ही ज्यादा सम्मान होगा।

आपको बता दें कि जिसके बाद लोग मृतक कोई जमीन में दफनाने की जगह लकड़ी के ताबूत में बंद करके गुफाओं में रख देते हैं। अगर किसी शिशु या 10 साल से कम उम्र के बच्चे की मौत हो जाती है तो उसे पेड़ की दरारों में रख दिया जाता है।

मृतक के शरीर को कई दिनों तक सुरक्षित रखने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए जाते हैं। मृतक के कपड़ों को ही नहीं बल्कि फैशनेबल चीजों से भी सजाया जाता है।

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सजाने सजाने के बाद 2 मिनट तक को लकड़ी के ताबूत में बंद कर कर पहाड़ी गुफा में रख देते हैं।

साथ ही लकड़ी का एक पुतला उसकी रक्षा करने के लिए भी रख दिया जाता है। जिसे ताऊ ताऊ कहते हैं ऐसा माना जाता है कि ताबूत के अंदर रखा शरीर मरा नहीं है हालांकि वह बीमार है और वह जब तक वह सोया हुआ है तब तक उसकी सुरक्षा की जानी चाहिए।

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