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26 सप्ताह का गर्भ गिराने की मांग से जुड़ी याचिका खारिज, सुप्रीम कोर्ट ने…

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Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 26 सप्ताह के गर्भ को गिराने की मांग (Abortion Demand) को लेकर अपना पक्ष सुरक्षित कर दिया है। बता दें कि कोर्ट ने गर्भ को गिराने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दी है।

इससे पहले कोर्ट ने कहा था कि हम एक जिंदगी को खत्म नहीं कर सकते हैं। अदालत ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि बच्चे की स्थिति एकदम सही है और उसे जन्म मिलना ही चाहिए।

26 सप्ताह का गर्भ गिराने की मांग से जुड़ी याचिका खारिज, सुप्रीम कोर्ट ने…-Supreme Court rejects petition demanding abortion at 26 weeks...

मां और बच्चा दोनों सुरक्षित

गर्भवती महिला ने इस संबंध में अर्जी दाखिल की थी, जिस पर लंबी सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने अपना निर्णय दिया। यदि महिला बच्चे को नहीं रखना चाहती है तो सरकार को सौंप सकती है और वह उसका ख्याल रखेगी।

बेंच ने कहा कि भ्रूण 26 सप्ताह 5 दिन का है। मां और बच्चे को कोई खतरा नहीं है। भ्रूण की ग्रोथ एकदम सामान्य है। इसलिए उसे जन्म लेने देना चाहिए।

26 सप्ताह का गर्भ गिराने की मांग से जुड़ी याचिका खारिज, सुप्रीम कोर्ट ने…-Supreme Court rejects petition demanding abortion at 26 weeks...

एम्स की रिपोर्ट पर विचार

इससे पहले अदालत ने AIIMS की रिपोर्ट पर विचार किया, जिसमें कहा गया था कि महिला की सेहत सामान्य है। वह बच्चे के जन्म के बाद उसकी देखभाल करने की स्थिति में है।

अस्पताल ने कहा कि महिला और उसके शरीर में पल रहे बच्चे की उचित देखभाल की जा रही है। दोनों में कोई कमी नहीं है और भ्रूण सही से विकसित हो रहा है।

एम्स की रिपोर्ट में कहा गया, ‘यह पाया गया है कि महिला और उसके भ्रूण की स्थिति सही है। उन्हें प्रॉपर मेडिकल (Proper Medical) निगरानी में रखा गया है। दोनों की स्थिति सही है और बच्चे के जन्म के बाद भी कोई परेशानी नहीं होगी। यदि किसी भी तरह से दिक्कत आती है तो महिला को तुरंत अस्पताल में एडमिट किया जा सकता है।’

दोनों जजों की राय अलग

इस मामले में 11 अक्टूबर को दो सदस्यीय बेंच में फैसले को लेकर सहमति नहीं बन सकी थी। इसकी वजह यह थी कि दोनों जजों की राय अलग थी। जस्टिस हिमा कोहली (Justice Hima Kohli) का कहना था कि न्याय की अंतरात्मा यह नहीं कहती कि भ्रूण को गिरा दिया जाए।

हमें जीवन को खत्म करने का अधिकार नहीं है। वहीं जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice Biwi Nagarathna) का कहना था कि महिला का अपने शरीर पर अधिकार है। गर्भ को उसके शरीर से अलग करके नहीं देखा जा सकता।

महिला के शरीर में पल रहा भ्रूण भी उसका ही है। इस तरह दो जजों की बेंच में जब फैसला नहीं हुआ तो मामला तीन सदस्यीय बेंच को भेजा गया था, जहां से अब भ्रूण को न गिराने के पक्ष में फैसला आया है।

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महिला की मानसिक स्थिति ठीक नहीं

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला एवं जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने एम्स की रिपोर्ट (AIIMS Report) के बाद कहा कि यदि महिला बच्चे को अपने पास नहीं रखना चाहती तो फिर जन्म के बाद सरकार को सौंप सकती है। दरअसल महिला का कहना था कि उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है और कई बीमारियों से वह जूझ रही है।

ऐसे में वह बच्चा पैदा करने की स्थिति में नहीं है और उसे 26 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात (Abortion) को गिराने की इजाजत मिलनी चाहिए। दरअसल भारत के कानून के मुताबिक 24 सप्ताह से अधिक के भ्रूण को नहीं गिराया जा सकता। इसके लिए कानूनी मंजूरी के बाद ही डॉक्टर और संबंधित लोग कोई फैसला ले सकते हैं।

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