Waqf act: आमया संगठन के अध्यक्ष एस अली ने केंद्र सरकार द्वारा पारित वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि यह कानून धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्तता और अल्पसंख्यकों के आत्मनिर्णय के अधिकार को कमजोर करता है। अली के अनुसार, सरकार इसे सुशासन और सुधार के रूप में पेश कर रही है, लेकिन यह वास्तव में अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला और स्थापित न्यायिक सिद्धांतों का उल्लंघन है।
उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए कहा कि यह हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने, धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन और संस्थाओं के संचालन का अधिकार देता है। लेकिन नए अधिनियम के प्रावधान 11 के तहत वक्फ बोर्डों में पदाधिकारियों की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाएगी, न कि चुनाव के जरिए।
अली ने सवाल उठाया कि जब राज्य सरकारें सभी नियुक्तियां करेंगी, तो वक्फ बोर्डों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता कैसे बनी रहेगी?
सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह किया हस्तक्षेप
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संपत्तियों और बोर्डों के प्रबंधन को लेकर महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने वक्फ-बाय-यूजर के सिद्धांत को बरकरार रखते हुए आदेश दिया कि जब तक संपत्तियों पर सुनवाई चल रही है, कलेक्टर द्वारा कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। साथ ही, केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में कोई नई नियुक्ति नहीं होगी।
केंद्र सरकार के वकील ने जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। मामले की अगली सुनवाई 5 मई 2025 को होगी।
एस अली को न्याय की उम्मीद
एस अली ने सुप्रीम कोर्ट के प्रति पूर्ण विश्वास जताते हुए कहा कि उन्हें अगली सुनवाई में न्याय मिलने की उम्मीद है। उन्होंने इस कानून को अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों के खिलाफ एक सुनियोजित कदम करार दिया और इसके विरोध में एकजुट होने की अपील की।