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गणेश उत्सव पर CJI के घर PM मोदी के जाने के बाद आर्टिकल 50 की होने लगी चर्चा

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PM Modi At CJI House: देश में इन दिनों गणपति महोत्सव की धूम है। इस बीच PM मोदी ने CJI डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) के घर पूजा समारोह में हिस्सा लिया, इसकी तस्वीरें और वीडियो वायरल है। लेकिन अब बार-बार आर्टिकल 50 की बात होने लगी है। संविधान के इस अनुच्छेद में सेपरेशन ऑफ पावर का जिक्र है।

कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (CJAR) ने इस भेंट को एक गलत मिसाल बताया क्योंकि उसके मुताबिक ये सत्ता के सेपरेशन और न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करती है। दरअसल CJAR जजों का एक ग्रुप है, जो जजों की जवाबदेही तय करने पर काम करता है।

ये ग्रुप कुछ पुराने उदाहरणों को उठाता है, जैसे साल 2019 में तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने खुद के मामले की सुनवाई कर नियमों की अनदेखी की।

इसी साल की शुरुआत में कोलकाता हाई कोर्ट के जज अभिजीत गांगुली इस्तीफा देकर तुरंत एक राजनैतिक पार्टी में शामिल हो गए। रिटायरमेंट के बाद कई जज तुरंत बाद ही राज्यसभा के सदस्य बने। पीएम मोदी और चीफ जस्टिस की मुलाकात को लेकर सीजेएआर सहित विरोधी खेमा लगातार आर्टिकल 50 का हवाला दे रहा है।

आखिर क्या हैं आर्टिकल 50

ड्राफ्ट आर्टिकल 39-ए (अब आर्टिकल 50) पहले संविधान के मसौदे में शामिल नहीं था। नवंबर 1948 में आर्टिकल को संविधान सभा में पेश कर चर्चा हुई।

इसके बाद तय हुआ कि तीन सालों के भीतर सार्वजनिक सेवाओं में कार्यपालिका और न्यायपालिका एकदम अलग हो जाए। बता दें कि ब्रिटिश काल में देश के ज्यादातर हिस्सों में न्यायिक और कार्यकारी शाखाएं जुड़ी थीं।

कंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया की वेबसाइट कहती है कि संविधान सभा का एक सदस्य इसके खिलाफ था। सदस्य को आशंका थी कि इससे न्यायपालिका को जरुरत से ज्यादा ताकत मिल जाएगी।

जवाब में दलील दी गई कि लोकतंत्र में न्यायिक आजादी भी उतनी ही अहम है। आखिरकार बहस खत्म हुई और संविधान सभा ने इस आर्टिकल को स्वीकार कर लिया।

इसके जरिए सारी ताकत को एक जगह जमा होने से रोका जाता है। अगर न्यायिक और एग्जीक्यूटिव पावर एक ही हाथ में हों तब पक्षपात का डर बढ़ जाता है।

कार्यपालिका अगर मनमानी करती हैं, तब न्यायपालिका उसे टोक सकती है, इससे निष्पक्षता बनी रहती है। सत्ता और अदालतों के विकेंद्रीकरण के जरिए करप्शन पर लगाम लग सकती है। अदालतें किसी भी तरह के प्रेशर से हटकर स्वतंत्र फैसले दे सकती हैं।

क्या कहती है सर्वोच्च अदालत

ज्यूडिशियरी और एग्जीक्यूटिव (Judiciary and Executive) ताकतों को अलग रखने पर मई 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ी बात की थी। एक बैठक के दौरान तय हुआ था कि जजों को अपने पद की गरिमा बनाए रखकर कुछ हद तक अलग रहने की प्रैक्टिस करनी चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए कि वे जनता की निगाहों में हैं और उनसे कोई ऐसी भूल या काम न हो, जो पद की गरिमा को चोट पहुंचाता हो।

हालांकि ये भी सही है कि प्रधानमंत्री और देश के मुख्य न्यायाधीश की कई बार मुलाकातें होती हैं और ये संविधान द्वारा उन्हें प्रदत्त अधिकारों और जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए जरूरी होती हैं।

मुख्य सतर्कता आयुक्त, CBI प्रमुख जैसे कई शीर्ष पदों पर नियुक्तियां PM, CJI और नेता प्रतिपक्ष मिलकर करते हैं, इसके बाद स्वाभाविक रूप से उन्हें सार्वजनिक कार्यक्रमों के इतर भी मिलना ही होता है।

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