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निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर लगाया धार्मिक युद्ध भड़काने का आरोप, सियासी बवाल

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New Delhi News: भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद निशिकांत दुबे ने शनिवार, को सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ तीखा हमला बोलते हुए कहा कि यह देश में “धार्मिक युद्ध भड़काने” का जिम्मेदार है। दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर संसद की संप्रभुता को कमजोर करने और अपनी संवैधानिक सीमाओं से बाहर जाकर कानून बनाने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, “कानून यदि सुप्रीम कोर्ट ही बनाएगा तो संसद भवन बंद कर देना चाहिए।” इस बयान ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है, जिस पर विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने कड़ी आपत्ति जताई है।

निशिकांत दुबे ने क्या कहा?

निशिकांत दुबे ने अपने बयान में सुप्रीम कोर्ट की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा, “सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमा से बाहर जा रहा है। अगर हर बात के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना है, तो संसद और विधानसभाओं का कोई मतलब नहीं, इन्हें बंद कर देना चाहिए।” उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्देशों पर निशाना साधते हुए पूछा, “राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं। आप नियुक्ति प्राधिकारी को निर्देश कैसे दे सकते हैं? संसद देश का कानून बनाती है। सुप्रीम कोर्ट ने नया कानून कैसे बना दिया? किस कानून में लिखा है कि राष्ट्रपति को तीन महीने में फैसला लेना होगा? यह देश को अराजकता की ओर ले जाने की कोशिश है।”

दुबे ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 और सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों, जैसे धारा 377 और IT एक्ट की धारा 66ए को रद्द करने के निर्णयों का हवाला देते हुए दावा किया कि कोर्ट ने धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं के खिलाफ फैसले दिए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट का रवैया “दिखाओ चेहरा, हम दिखाएंगे कानून” जैसा है।

क्या सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले हैं विवाद की वजह?

दुबे का यह बयान सुप्रीम कोर्ट के दो हालिया फैसलों के बाद आया है। पहला, 8 अप्रैल 2025 को तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा विधेयकों पर देरी को असंवैधानिक ठहराया और राष्ट्रपति को राज्यपालों द्वारा भेजे गए विधेयकों पर तीन महीने के भीतर फैसला लेने का निर्देश दिया। दूसरा, 15 अप्रैल 2025 को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और अंतरिम आदेश में कहा कि अगले आदेश तक वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति नहीं होगी और वक्फ संपत्तियों की स्थिति में बदलाव नहीं किया जाएगा।

 

इन फैसलों ने संसद और सुप्रीम कोर्ट के बीच अधिकारों की सीमा को लेकर बहस को हवा दी। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी 17 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट के इन निर्देशों पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि यह “सुपर संसद” की तरह व्यवहार कर रहा है और राष्ट्रपति को निर्देश देना संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है।

विपक्ष ने किया पलटवार

दुबे के बयान पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने इसे “सुप्रीम कोर्ट का अपमान” और “मानहानिकारक” बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस बयान का संज्ञान लेना चाहिए। उन्होंने कहा, “दुबे लगातार संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश करते हैं। यह बयान संसद के बाहर दिया गया है, इसलिए कोर्ट को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए।”

 

कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ इस तरह का बयान दुर्भाग्यपूर्ण है। यह पहली बार नहीं है जब कोर्ट ने सरकार के खिलाफ फैसला दिया है। यह हताशा समझ से परे है।” सलमान खुर्शीद ने भी सुप्रीम कोर्ट का बचाव करते हुए कहा, “हमारे कानूनी ढांचे में अंतिम शब्द सुप्रीम कोर्ट का होता है। इसे न समझना गंभीर चिंता की बात है।”
वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने भी इस विवाद में हस्तक्षेप करते हुए कहा, “सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय देने का अधिकार है। यह दुखद है कि संवैधानिक संस्थाओं पर इस तरह के हमले हो रहे हैं।”

वक्फ बिल और सियासी तनाव

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। रांची के कोकदोरो में हजारों लोगों ने मानव शृंखला बनाकर इस कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। बंगाल के मुर्शिदाबाद में इस मुद्दे पर हिंसा भी हुई, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई। सुप्रीम कोर्ट में इस कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई 5 मई 2025 को होनी है।

 

दुबे का बयान इस संवेदनशील मुद्दे पर और तनाव बढ़ा सकता है। उनके बयान को कुछ X उपयोगकर्ताओं ने समर्थन दिया, जबकि अन्य ने इसे संविधान और न्यायपालिका के खिलाफ बताया। एक उपयोगकर्ता ने लिखा, “निशिकांत दुबे का बयान सुप्रीम कोर्ट के असंवैधानिक आचरण पर जबरदस्त पलटवार है।” वहीं, एक अन्य ने कहा, “यह बयान संविधान विरोधी है। सुप्रीम कोर्ट को कानून की समीक्षा का पूरा अधिकार है।”

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