Jharkhand High Court takes a tough stand!: झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) ने राज्य में 2018 से 2021 के बीच जेल या न्यायिक हिरासत (Judicial Custody) में हुई मौतों को लेकर सख्त रुख अपनाया है। चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की खंडपीठ (Division Bench) ने गृह सचिव को शपथपत्र (Affidavit) दाखिल कर इन मौतों का विस्तृत ब्योरा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने यह भी पूछा है कि क्या इन मौतों को मजिस्ट्रेट के संज्ञान में लाया गया था, ताकि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय न्याय संहिता (BNSS) की धाराओं के तहत उनकी जांच की जा सके। मामले की अगली सुनवाई 25 सितंबर 2025 को होगी।
जनहित याचिका से उठा मुद्दा
यह मामला मो. मुमताज अंसारी की ओर से दायर जनहित याचिका (Public Interest Litigation – PIL) के आधार पर सामने आया है। याचिका में 2018 से 2021 के बीच जेल और पुलिस हिरासत (Police Custody) में हुई मौतों की न्यायिक जांच (Judicial Inquiry) कराने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ता ने झारखंड विधानसभा के 2022 बजट सत्र में दिए गए एक सरकारी जवाब का हवाला दिया, जिसमें बताया गया था कि इस अवधि में राज्य में 166 हिरासत में मौतें हुईं, जिनमें 156 न्यायिक हिरासत और 10 पुलिस हिरासत में थीं। याचिकाकर्ता ने इतनी बड़ी संख्या में मौतों पर चिंता जताते हुए स्वतंत्र जांच की मांग की।
कोर्ट का निर्देश
खंडपीठ ने गृह सचिव को निर्देश दिया कि वे व्यक्तिगत रूप से शपथपत्र दाखिल कर इन मौतों का वर्षवार और जिलावार विवरण दें। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रत्येक मामले में यह जांचा जाए कि क्या मृत्यु की सूचना मजिस्ट्रेट को दी गई थी, जैसा कि CrPC की धारा 176(1) और BNSS के प्रावधानों में अनिवार्य है।
कोर्ट ने कहा कि हिरासत में मौतें मानवाधिकार उल्लंघन (Human Rights Violation) का गंभीर मामला हैं, और इनकी पारदर्शी जांच (Transparent Investigation) जरूरी है।
ये भी समझें
रिपोर्ट्स के अनुसार, 2018-19 में 67, 2019-20 में 45, और 2020-21 में 54 हिरासत में मौतें दर्ज की गईं। इनमें से अधिकांश मामले दलित, आदिवासी, और मुस्लिम समुदायों (Marginalized Communities) से जुड़े थे, जो हिरासत में होने वाली हिंसा और उपेक्षा के प्रति असमान प्रभाव को दर्शाता है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने भी हिरासत में होने वाली मौतों को गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन माना है। कोर्ट का यह कदम झारखंड में पुलिस और जेल प्रशासन में जवाबदेही (Accountability) बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।


