New Delhi News: सहारा समूह का लंबे समय से अटका वित्तीय विवाद अब एक बड़े मोड़ पर है। दो कानूनी सूत्रों के हवाले से खबर है कि अडानी ग्रुप सहारा की ज्यादातर संपत्तियों को खरीदने को तैयार है।
6 सितंबर 2025 को सहारा ने सुप्रीम कोर्ट में टर्म शीट दाखिल की, जिसमें अडानी प्रॉपर्टीज को एंबी वैली टाउनशिप, मुंबई का सहारा स्टार होटल और देशभर की 88 से ज्यादा प्रॉपर्टीज एकमुश्त सिंगल ब्लॉक डील में ट्रांसफर करने का प्रस्ताव है। इस डील को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी का इंतजार है, और 14 अक्टूबर को अगली सुनवाई होगी।
डील की खास बातें
लेन-देन की संवेदनशीलता के चलते फाइनेंशियल डिटेल्स गोपनीय रखे गए हैं, जो सिर्फ सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपे जाएंगे। इंडिया टुडे द्वारा जांचे गए दस्तावेज बताते हैं कि अडानी ग्रुप को तय राशि SEBI-सहारा रिफंड अकाउंट या कोर्ट द्वारा निर्देशित किसी खाते में जमा करनी होगी।
यह एकमुश्त बिक्री सालों से रुके मामले को सुलझा सकती है और वैध दावेदारों को रिफंड प्रक्रिया में तेजी ला सकती है। मंजूरी मिलने पर यह जटिल संपत्तियों की कोर्ट-निगरानी वाली बिक्री का मॉडल बन सकता है। अडानी ग्रुप ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
कौन-सी प्रॉपर्टीज शामिल?
इस डील में महाराष्ट्र के लोनावाला में 8810 एकड़ में फैली एंबी वैली सिटी शामिल है, जो सहारा की सबसे कीमती संपत्ति है। इसके अलावा, मुंबई हवाई अड्डे के पास सहारा स्टार होटल और महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, पश्चिम बंगाल, झारखंड, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तराखंड की 88+ प्रॉपर्टीज हिस्सा हैं।
सहारा इंडिया कमर्शियल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (SICCL) ने कोर्ट में आवेदन दाखिल किया है, और मैनेजमेंट खुद बिक्री की बातचीत कर रहा है। फिलहाल कोई कोर्ट-अपॉइंटेड रिसीवर नहीं है।
सहारा की मांग
सहारा ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत ‘पूर्ण न्याय’ के लिए कोर्ट से व्यापक सुरक्षा मांगी है। समूह चाहता है कि अधिग्रहीत संपत्तियों को सभी रेगुलेटरी या आपराधिक जांच और कार्रवाई से छूट मिले। सभी दावे या देनदारियां सिर्फ सुप्रीम कोर्ट को भेजी जाएं, और कोई अन्य कोर्ट, ट्रिब्यूनल या सरकारी निकाय हस्तक्षेप न करे। साथ ही, संपत्तियों पर लगे कुर्की आदेश और प्रतिबंध तुरंत हटाने की मांग की गई है।
फंड मैनेजमेंट के लिए सहारा ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज की अध्यक्षता में हाई-लेवल कमिटी गठन का प्रस्ताव रखा है। यह कमिटी बिक्री प्रक्रिया की निगरानी, आपत्तियों-प्रतिस्पर्धी प्रस्तावों का निपटारा और बाकी देनदारियों का समाधान करेगी।
पिछले प्रयास क्यों फेल हुए?
दस्तावेजों के मुताबिक, बाजार की खराब स्थिति, विश्वसनीय खरीदारों की कमी और कई मुकदमों के कारण पहले प्रॉपर्टी बेचने की कोशिशें नाकाम रहीं।
SEBI ने कई बार कोशिश की, लेकिन कोई संपत्ति लिक्विडेट नहीं हो सकी। कई जांच एजेंसियों की स्वतंत्र जांचों ने भी बिक्री को और जटिल किया। इन चुनौतियों को देखते हुए मैनेजमेंट ने सभी बाकी प्रॉपर्टीज को एक ब्लॉक में अडानी को बेचने का फैसला लिया, ताकि सबसे कम समय में अधिकतम वैल्यू मिले।