Strictness on Ventilator Billing : निजी अस्पतालों में वेंटिलेटर के नाम पर भारी-भरकम बिल वसूली की शिकायतों को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Health Ministry) ने सख्त दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
नए नियमों के तहत यदि किसी मरीज को 14 दिनों से अधिक समय तक वेंटिलेटर पर रखा जाता है, तो अस्पताल को इसका स्पष्ट कारण बताना होगा।
डॉक्टरों की समिति करेगी समीक्षा, हर महीने होगा ऑडिट

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, ऐसे मामलों की समीक्षा विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक समिति करेगी। इसके साथ ही हर महीने वेंटिलेटर उपयोग का आंतरिक Audit करना अनिवार्य होगा।
सरकार का कहना है कि इससे मरीजों को बिना जरूरत लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रखने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।
हर 48–72 घंटे में मरीज की स्थिति का पुनर्मूल्यांकन

नए दिशा-निर्देशों में यह भी कहा गया है कि डॉक्टरों को हर 48 से 72 घंटे में मरीज की स्थिति का दोबारा आकलन करना होगा। यदि मरीज की हालत में सुधार की संभावना कम दिखे, तो परिजनों के साथ Counseling करना अनिवार्य होगा, ताकि इलाज से जुड़े फैसले पारदर्शी तरीके से लिए जा सकें।
इस्तेमाल के हिसाब से ही वसूला जाएगा वेंटिलेटर चार्ज

स्वास्थ्य मंत्रालय ने साफ किया है कि अब अस्पताल वेंटिलेटर के उपयोग की अवधि के अनुसार ही शुल्क ले सकेंगे। पहले कई मामलों में Ventilator हटाने के बाद भी उसका किराया जोड़ा जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।
वेंटिलेटर जितनी देर इस्तेमाल होगा, उतना ही बिल देय होगा। यह फैसला मरीजों और उनके परिजनों की लगातार मिल रही शिकायतों के बाद लिया गया है।
विशेषज्ञों की चेतावनी, लंबे इस्तेमाल से बढ़ता है खतरा
विशेषज्ञों का कहना है कि Ventilator जरूरत पड़ने पर जान बचाने में अहम भूमिका निभाता है, लेकिन बिना चिकित्सकीय जरूरत लंबे समय तक इसका इस्तेमाल न सिर्फ इलाज का खर्च बढ़ाता है, बल्कि संक्रमण का खतरा भी बढ़ा देता है।
लोकसभा में उठा था मुद्दा, बनी उच्च-स्तरीय समिति
इस मुद्दे को डॉ. आनंद कुमार (Dr. Anand Kumar) ने अगस्त में लोकसभा में उठाया था। उन्होंने निजी स्वास्थ्य क्षेत्र में वेंटिलेटर के उपयोग में पारदर्शिता के लिए दिशा-निर्देश बनाने की जरूरत पर जोर दिया था।
इसके बाद स्वास्थ्य मंत्रालय में अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. सुजाता चौधरी की अध्यक्षता में एक उच्च-स्तरीय समिति गठित की गई।
AIIMS और बड़े अस्पतालों के डॉक्टरों ने तैयार किए नियम
इस समिति में AIIMS, सफदरजंग अस्पताल और राम मनोहर लोहिया अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर शामिल थे। समिति ने विस्तृत विचार-विमर्श के बाद इन दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप दिया है।




