सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी एडल्ट्री के सबूत नहीं, तो DNA टेस्ट की अनुमति नहीं

Team News Aroma

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर एडल्ट्री व्याभिचार का कोई प्राथमिक सबूत नहीं है तो शादी के दौरान पैदा हुए बच्चे की वैधता स्थापित करने के लिए डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दिया जा सकता है।

न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की बेंच ने निचली अदालत और बोम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी के साथ वैवाहिक विवाद में अपने बच्चे के डीएनए टेस्ट का आदेश देने की याचिका की अनुमति दी थी, क्योंकि उसने आरोप लगाया था कि वह उस बच्चे का बायोलॉजिकल पिता नहीं है और उसकी पत्नी के अन्य पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध थे।

भारतीय एविडेंस अधिनियम की धारा 112 का जिक्र करते हुए बेंच ने कहा कि एडल्ट्री (व्याभिचार) साबित करने के लिए सीधे डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दिया जा सकता है और निचली अदालत और हाईकोर्ट ने आदेश पारित करने में गलती की है।

बता दें कि ये धारा एक बच्चे की वैधता के अनुमान के बारे में बताती है।

पीठ ने कहा कि एडल्ट्री के आरोप को साबित करने के लिए कुछ प्राथमिक सबूत होने चाहिए और उसके बाद ही अदालत डीएनए टेस्ट पर विचार कर सकती है।

याचिका देने वाले इस कपल की शादी 2008 में हुई थी और 2011 में इनके घर एक बेटी का जन्म हुआ था।

जिसके छह साल बाद पति ने तलाक की याचिका दायर की थी। इसके बाद उन्होंने बच्चे के डीएनए टेस्ट के लिए फैमिली कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी।

हालांकि निचली अदालत ने उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया जिसे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा। इसके बाद पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट की ओर रुख किया।

Share This Article