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भागलपुर में बाढ़ राहत शिविर बंद!, टेंट में सत्तू खाकर दिन गुजारने को मजबूर पीड़ित

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भागलपुर: जिले में गंगा और कोसी नदी का जलस्तर खतरे के निशान से नीचे आ जाने के बाद बाढ़ राहत शिविर बंद कर दिया गया है।

गंगा और कोसी में पिछले एक महीने से आई बाढ़ के कारण जिला प्रशासन की ओर से बाढ़ पीड़ितों के लिए काफी संख्या में बाढ़ राहत शिविर चलाए जा रहे थे।

अब बाढ़ जैसे हालात नहीं हैं। इसलिए जिला प्रशासन ने शिविर में रह रहे बाढ़ पीड़ितों को घर जाने के लिए कह दिया है।

भागलपुर में गंगा खतरे के निशान से 41 सेंटीमीटर नीचे हैं। लेकिन अभी भी जिले के 346 गांव बाढ़ के पानी से घिरे हुए हैं।

बाढ़ प्रभावित जिले के 14 प्रखंडों की 139 पंचायत के 9.318 लाख आबादी की मुश्किलें अभी भी कम नहीं हुई हैं। जिले में 9 बाढ़ आपदा राहत केंद्र में से 5 को बंद कर दिया गया है।

254 सामुदायिक रसोई में 244 को बंद कर दिया गया है।फिलहाल सिर्फ 10 सामुदायिक किचन चल रहा है।

शिविर बंद होने से बाढ़ पीड़ितों परेशानी काफी बढ़ गई है। भागलपुर शहर स्थित हवाई अड्डा में नाथनगर प्रखंड के शहजादपुर पंचायत के अमरी और बिशनपुर गांव के सैकड़ों बाढ़ पीड़ित रह रहे हैं।

पीड़ितों का कहना है कि उनके घरों में अब भी दो से 3 फीट पानी है। घर में कीचड़ फैल गया है।

बाढ़ का पानी अभी नहीं निकला है। वहां पशु चारा भी उपलब्ध नहीं है। ऐसे में वहां रह पाना काफी मुश्किल भरा काम है।

जिला प्रशासन ने शिविर में मिलने वाली सभी सेवाओं को बंद कर लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया है। जिससे बाढ़ पीड़ितों के सामने खाने-पीने की समस्या खड़ी हो गई है।

राहत शिविर बंद होने से सबसे अधिक परेशान वैसी महिलाएं हैं, जिनके छोटे-छोटे बच्चे हैं।

पहले शिविर में बच्चों के लिए दूध मिल जाता था अब इन्हें दूध के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है।

बिशनपुर गांव की बाढ़ पीड़ित महिलाओं ने बताया कि अभी भी हमारे घरों में बाढ़ का पानी भरा हुआ है।

यहां जो राहत शिविर चल रहा था उसे बंद कर दिया गया। सारा पंडाल खोल लिया गया है। हम लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं है।

सत्तू खाकर किसी तरह गुजारा कर रहे हैं। लेकिन छोटे बच्चे जिन्हें दूध की जरूरत है उन्हें क्या खिलाएंगे।

पहले यहां छोटे बच्चों के लिए दूध मिलता था। फिलहाल बाढ़ पीड़ित पॉलिथीन के तंबू में रहने को विवश हैं।

जिलाधिकारी सुब्रत कुमार सेन ने कहा कि राहत शिविर और समुदायिक किचन के लिए आपदा प्रबंधन की गाइडलाइन के तहत आकलन करने की जवाबदेही अंचल अधिकारी और एसडीओ को दी गई है।

वह तय करेंगे कि कहां शिविर चलाना है, कहां सामुदायिक किचन चलाना है और कहां बंद करना है। अंचलखधिकारी और एसडीओ के मुताबिक ही राहत शिविरों को बंद किया जा रहा है।

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