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पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग, सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका

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Petition in SC seeks President’s rule in West Bengal : पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के खिलाफ हिंसा के बाद सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की गई है। याचिका में हिंसा की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति और पैरामिलिट्री फोर्स की तैनाती की मांग भी शामिल है।

वरिष्ठ वकील विष्णु शंकर जैन ने याचिकाकर्ता देवदत्त माजी की ओर से जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष याचिका पेश की। सुप्रीम कोर्ट ने इसे 22 अप्रैल, 2025 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।

क्या है याचिका में

याचिका में कहा गया है कि 11-12 अप्रैल को मुर्शिदाबाद के सुती, धुलियान, समसेरगंज, और जंगीपुर में वक्फ (संशोधन) कानून के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन हुए, जिसमें कम से कम तीन लोगों की मौत हुई, कई घायल हुए, और सैकड़ों लोग विस्थापित हो गए।

याचिकाकर्ता ने इसे “बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति” का मामला बताते हुए संविधान के अनुच्छेद 355 के तहत केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है। अनुच्छेद 355 केंद्र को किसी राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए कदम उठाने का अधिकार देता है।

याचिका में यह भी दावा किया गया कि पश्चिम बंगाल सरकार हिंसा को नियंत्रित करने में विफल रही, और स्थानीय प्रशासन ने उपद्रवियों को “खुली छूट” दी। इसके अलावा, विशेष जांच दल (SIT) की जांच में बांग्लादेशी आतंकी संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के 35 आतंकियों की संलिप्तता का खुलासा होने का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने केंद्रीय बलों की तैनाती और स्वतंत्र जांच की मांग की है।

सुप्रीम कोर्ट ने जताई आपत्ति: “हम पर पहले से कार्यपालिका में दखल का आरोप”

जस्टिस बीआर गवई की अगुआई वाली पीठ ने याचिका पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी की, “आप चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति को अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करने का आदेश दें? हम पर पहले से ही कार्यपालिका के क्षेत्र में अतिक्रमण करने का आरोप लग रहा है।”

कोर्ट ने याचिका को तत्काल सुनवाई के लिए स्वीकार करने से इनकार कर दिया, लेकिन इसे मंगलवार, 22 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध किया। जस्टिस गवई ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की आलोचनाओं का जिक्र किया, जिसमें कोर्ट पर विधायिका और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप का आरोप लगाया गया है, जैसे कि राज्यपाल और राष्ट्रपति को विधेयकों पर समयबद्ध निर्णय लेने का निर्देश देने वाला फैसला।

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