‘Special Intensive Revision’ of Voter List: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट की ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR) को लेकर बड़ा विवाद छिड़ गया है। दो सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इसे संविधान के खिलाफ बताया है। उनका दावा है कि यह प्रक्रिया गरीब, प्रवासी, और हाशिए पर मौजूद समुदायों को मतदान के अधिकार से वंचित कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमल्या बागची की बेंच 10 जुलाई को इस मामले की सुनवाई करेगी।
याचिका में क्या है आरोप?
सामाजिक कार्यकर्ता अर्शद अजमल और रूपेश कुमार ने वकील वृंदा ग्रोवर के जरिए दायर याचिका में कहा कि चुनाव आयोग का 24 जून का आदेश गरीबों, प्रवासियों, महिलाओं, और वंचित समुदायों को निशाना बनाता है। इसमें जन्म, निवास, और नागरिकता जैसे दस्तावेजों की सख्त मांग की गई है, जो कई लोगों के पास नहीं हैं। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह प्रक्रिया संविधान के मूल ढांचे और स्वतंत्र-निष्पक्ष चुनाव की गारंटी का उल्लंघन करती है।
विपक्षी नेता और संगठन भी कोर्ट में
कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार), शिवसेना (उद्धव गुट), समाजवादी पार्टी, जेएमएम, सीपीआई, और सीपीआई (एमएल) जैसे विपक्षी दलों ने भी संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इनके अलावा पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL), एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), और कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने भी इस प्रक्रिया को मतदाताओं के अधिकारों पर हमला बताते हुए रद्द करने की मांग की है।
क्या होगा असर?
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि बिना स्पष्ट कानूनी आधार के यह रिवीजन लाखों मतदाताओं को वोटिंग से रोक सकता है। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का फैसला बिहार की चुनावी प्रक्रिया पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। अब सबकी नजर 10 जुलाई की सुनवाई पर टिकी है, जहां संविधान और लोकतंत्र की कसौटी पर इस विवाद की जांच होगी।