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हजारीबाग में महज 1150 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान लेकर छठा रैक रवाना

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न्यूज़ अरोमा हजारीबाग: पूरे देश में किसानों के नाम पर राजनीति की जा रही है। केंद्र सरकार द्वारा लागू तीन कृषि कानूनों के खिलाफ झारखंड में तो भाजपा छोड़ सभी विपक्षी दल लगातार आंदोलन कर रहे हैं।

अब तक इसी मुद्दे पर केंद्र सरकार के पुतला दहन से लेकर 8 दिसंबर को आहूत भारत बंद का समर्थन करते हुए सड़कों पर जाम किया गया।

सोमवार को विरोध मार्च निकालने की बात कही गई है।

इस आंदोलन में वामपंथी दालें के साथ साथ राज्य की सत्ता में शामिल झामुमो, कांग्रेस, राजद के नेता भी शामिल हैं।

यह अलग बात है कि किसानों के नाम पर राजनीति भले हीं खूब हो रही है, लेकिन जमीन पर किसान हित में काम होता नहीं दिख रहा।

हालांकि कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने यह जरूर दावा किया है कि सरकार की योजनाओं का लाभ 29 दिसंबर से मिलना शुरू होगा।

इधर धान की सरकारी खरीद नहीं होने के कारण किसान औने पौने दाम पर निजी हाथों (व्यापारी व बिचैलियों) में बेचने को मजबूर हैं।

सूचना है कि एक हजार रुपये प्रति क्विंटल से लेकर महज 1150 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदे जा रहे हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार हजारीबाग रेलवे स्टेशन से अब तक छह रैक धान रवाना हो चुका है।

इतना ही नहीं कोडरमा स्टेशन से भी इतने ही रैक धान की रवानगी होने की सूचना है।

कृषि मंत्री कह रहे हैं कि धान खरीद के मामले में पुरानी नीति को बदलने में समय लग रहा है।

रिवाल्विंग फंड के प्रावधान किए जा रहे हैं। कैबिनेट की बैठक में इसे पारित होते ही इसे उपलब्ध करा दिया जाएगा। ऐसा होने के बाद पैक्सों से धान की खरीद की जाएगी।

तीन दिन के अंदर ही खरीदे गए धान के आधे का भुगतान आरटीजीएस से किसानों के खातों में कर दिया जाएगा।

उन्होंने कहा कि धान क्रय केंद्र दोगुने किए जाएंगे। इसके लिए सांसद व विधायक की भी स्वीकृति ली जाएगी।

इस प्रक्रिया में कम से कम सप्ताह से दस दिन लगने से इंकार नहीं किया जा सकता।

ऐसे में किसान तब तक धान को औने पौने दाम पर बेचने को मजबूर होंगे, क्योंकि उन्हें अगली फसल के लिए पैसा चाहिए और पिछले ऋण चुकाने के लिए भी पैसे की जरूरत है।

लोगों का आरोप यह है कि सरकार के स्तर पर जानबूझकर देरी की जा रही है।

हालांकि मंत्री बादल पत्रलेख ने किसानों से बिचैलियों के हाथों में धान न बेचने की अपील की है, लेकिन जो स्थिति है उसे देखते हुए सरकारी स्तर पर खरीद करने तक धान किसानों द्वारा जैसे तैसे बेच दिए जाने की मजबूरी है।

जरूरत है किसानों के लिए जमीनी स्तर पर कुछ करने की, केवल आंदोलन से शायद ही काम चलेगा।

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