Jharkhand News: झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा गैर-मजरूआ खास जमीन की रजिस्ट्री पर रोक लगाने के लिए 26 अगस्त 2015 को जारी अधिसूचना संख्या 1132 को रद्द कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश एम.एस. रामचंद्र राव और न्यायाधीश राजेश शंकर की खंडपीठ ने Chotanagpur Diocesan Trust Association (CNDTA) बनाम झारखंड सरकार सहित अन्य याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया।
कोर्ट ने रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 की धारा 22-ए की संवैधानिक वैधता को खारिज करते हुए अधिसूचना को असंवैधानिक करार दिया, जिसके तहत गैर-मजरूआ खास जमीन के पंजीकरण पर प्रतिबंध लगाया गया था।
कोर्ट में हुई सुनवाई
Chotanagpur Diocesan Trust Association (CNDTA), अरुण बारवा, मेसर्स वीएसआरएस कंस्ट्रक्शन, बीरेंद्र नारायण देव, सुभाष अग्रवाल, और भगवती देवी ने अलग-अलग याचिकाओं के माध्यम से 26 अगस्त 2015 की अधिसूचना और रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 की धारा 22-A की वैधता को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह अधिसूचना और धारा सार्वजनिक नीति (Public Policy) के नाम पर मनमाने ढंग से संपत्ति के पंजीकरण को प्रतिबंधित करती है, जो संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
1132 जारी कर गैर-मजरूआ खास जमीन की रजिस्ट्री पर लगाया था प्रतिबंध
रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 की धारा 22-A राज्य सरकार को सार्वजनिक नीति के आधार पर संपत्ति के पंजीकरण पर रोक लगाने का अधिकार देती है।
झारखंड सरकार ने इस प्रावधान के तहत अधिसूचना संख्या 1132 जारी कर गैर-मजरूआ खास जमीन की रजिस्ट्री पर प्रतिबंध लगाया था। हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने इसे अस्पष्ट और असंवैधानिक करार देते हुए चुनौती दी।
हाईकोर्ट का फैसला: सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला
हाईकोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के ‘राजस्थान सरकार बनाम बसंत नाहटा’ मामले के फैसले को आधार बनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ‘सार्वजनिक नीति’ एक अस्पष्ट शब्द है, जिसकी कोई स्पष्ट परिभाषा या दिशानिर्देश नहीं हैं।
इसलिए, इसे मनमाने ढंग से लागू करने का सरकार को अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने झारखंड और राजस्थान सरकार के मामलों में समानता पाते हुए धारा 22-Aऔर इससे संबंधित अधिसूचना को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि इस अधिसूचना के आधार पर सब-रजिस्ट्रार या निबंधन विभाग द्वारा जारी सभी आदेश स्वतः रद्द माने जाएंगे।




