Jharkhand News: झारखंड हाईकोर्ट ने तलाक से जुड़े एक हाई-प्रोफाइल केस में गेम-चेंजिंग फैसला सुनाया है, जो मैरिटल लॉ की इंटरप्रिटेशन को रिडिफाइन कर सकता है।
जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस राजेश कुमार की डबल बेंच ने पुलिस अधिकारी अरुण कुमार की तलाक याचिका को खारिज करते हुए कहा कि परित्याग (डेजर्शन) को सिर्फ शारीरिक अलगाव (Physical Separation) के आधार पर प्रूव नहीं किया जा सकता।
इसके लिए स्थायी रूप से वैवाहिक संबंध खत्म करने का क्लियर इरादा साबित करना मैंडेटरी है।
क्या है केस?
अरुण कुमार ने रांची फैमिली कोर्ट में अपनी पत्नी के खिलाफ तलाक की पिटीशन फाइल की थी, जिसमें क्रूरता और परित्याग के आरोप लगाए। उनका दावा था कि 2016 से उनकी पत्नी ने उन्हें छोड़ दिया और वैवाहिक संबंध को रिन्यू नहीं किया।
लेकिन पत्नी ने काउंटर करते हुए कहा कि वह अरुण के घर में ही अपने बच्चों के साथ रह रही है और आरोप बेसलेस हैं। फैमिली कोर्ट ने 2023 में याचिका खारिज कर दी, क्योंकि अरुण प्रूफ नहीं दे पाए।
इसके बाद अरुण ने हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन डबल बेंच ने लोअर कोर्ट के फैसले को बर्करार रखा।
हाईकोर्ट ने लीगल प्रिसिडेंट्स का हवाला देते हुए कहा…
परित्याग का मतलब सिर्फ फिजिकल डिस्टेंस नहीं, बल्कि पर्मानेंट इंटेंशन होना चाहिए कि मैरिज को एंड करना है।
टेम्परेरी क्रोध या नफरत से हुआ सेपरेशन परित्याग की कैटेगरी में नहीं आता।
अरुण क्रूरता या परित्याग को सब्सटैनशिएट नहीं कर पाए, क्योंकि पत्नी उसी घर में रह रही थी।
हिंदू मैरिज एक्ट की सेक्शन 13 के तहत तलाक के लिए सॉलिड एविडेंस जरूरी है।




