Ranchi News: आजसू पार्टी ने कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) पर सरना कोड और पेसा कानून के मुद्दे पर झारखंड की जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया। गुरुवार को पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में मुख्य प्रवक्ता डॉ. देवशरण भगत और झारखंड आंदोलनकारी प्रवीण प्रभाकर ने कहा कि कांग्रेस-झामुमो को यह बताना चाहिए कि 2014 में UPA की मनमोहन सरकार ने सरना कोड की मांग को क्यों खारिज किया था।
आदिवासियों के अधिकारों पर खिलवाड़ का आरोप
डॉ. भगत ने कहा कि मौजूदा राज्य सरकार पेसा कानून को पूरी तरह लागू करने से कतराती है और आदिवासियों के अधिकारों के साथ खिलवाड़ कर रही है। उन्होंने बताया कि आजसू ने हमेशा आदिवासियों की पहचान, संस्कृति और अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
1999 में आजसू के प्रयासों से तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ वार्ता कर झारखंड राज्य निर्माण का रास्ता खुला, जबकि 1993 में कांग्रेस-झामुमो ने झारखंड आंदोलन की सौदेबाजी कर अलग राज्य के गठन को टाल दिया था।
मनमोहन सरकार ने सरना कोड को बताया था अव्यावहारिक
डॉ. भगत ने खुलासा किया कि 2012 में मनमोहन सरकार ने लोकसभा में सरना कोड को गृह मंत्रालय के जरिए अव्यावहारिक बताकर खारिज कर दिया था। 11 फरवरी 2014 को यूपीए के आदिवासी कल्याण मंत्री वी. किशोर चंद्रदेव ने आधिकारिक बयान में सरना कोड की मांग को अव्यवहारिक करार दिया था।
आजसू ने कांग्रेस-झामुमो से इस पर जवाब मांगा और उनकी दोहरी नीति का पर्दाफाश करने की बात कही।
सरना कोड आदिवासी पहचान से जुड़ा
प्रवीण प्रभाकर ने कहा कि सरना कोड आदिवासी समुदाय की भावना और पहचान का सवाल है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस-झामुमो ने पहले इसे खारिज किया और अब राजनीतिक लाभ के लिए उछाल रहे हैं।
उन्होंने बताया कि 1871 से 1951 तक जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड था, लेकिन 1961 से इसे हटा दिया गया, जिससे आदिवासी पहचान को कमजोर करने की कोशिश हुई।
पेसा कानून पर हेमंत सरकार पर सवाल
युवा नेता संजय मेहता ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पेसा कानून को पूरी तरह लागू करने से डरते हैं, क्योंकि इससे आदिवासियों को जल, जंगल और जमीन पर परंपरागत अधिकार मिलेंगे, जो सत्ताधारी नेताओं की भ्रष्टाचार आधारित राजनीति को उजागर कर देगा।
प्रेस वार्ता में मीडिया प्रभारी परवाज खान, केंद्रीय सचिव हरीश कुमार और अन्य नेता मौजूद थे।