Caste Census: नरेंद्र मोदी सरकार ने अगली जनगणना में जाति आधारित गणना को शामिल करने का ऐतिहासिक फैसला लिया है। इस निर्णय ने इंडिया गठबंधन के सियासी हथियार को कमजोर कर दिया है, जो लंबे समय से जाति जनगणना की मांग को जोर-शोर से उठा रहा था।
खासकर राहुल गांधी अपनी सभाओं और भारत जोड़ो यात्रा में इस मुद्दे को बार-बार उठाते रहे हैं। इस फैसले से BJP ने विपक्ष के नैरेटिव को नाकाम करने की रणनीति अपनाई है।
विपक्ष का मुद्दा अब BJP के हाथ
राहुल गांधी और विपक्षी नेता ‘जितनी आबादी, उतनी हिस्सेदारी’ का नारा देकर जाति जनगणना को सामाजिक न्याय की पहली सीढ़ी बताते रहे हैं।
कांग्रेस शासित राज्यों, जैसे कर्नाटक, में जाति सर्वे की कोशिशें हुईं, लेकिन वहां की रिपोर्ट विवादों में फंस गई। अब केंद्र के इस फैसले ने कांग्रेस, RJD, सपा, और DMK जैसे दलों के उस दावे को कमजोर कर दिया कि BJP जाति जनगणना का विरोधी है।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, “कांग्रेस ने 1947 के बाद कभी जाति जनगणना नहीं कराई। हमारा फैसला पारदर्शी और समावेशी है।”
क्या बिहार में मिलेगा सियासी फायदा?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इस फैसले का त्वरित लाभ BJP और NDA को मिल सकता है। बिहार में 2022 में महागठबंधन सरकार द्वारा कराई गई जाति गणना का BJP ने समर्थन किया था।
पिछड़ी जातियां (OBC+EBC): 63.14% (OBC: 27.13%, EBC: 36.01%)
अनुसूचित जाति (SC): 19.65%
अनुसूचित जनजाति (ST): 1.68%
अनारक्षित जातियां: 15.52%
हालांकि, कोर्ट के आदेश से बिहार में इस आधार पर बढ़ाया गया 65% आरक्षण रुका हुआ है।
अब केंद्र की जाति जनगणना से ‘आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी’ का रास्ता खुल सकता है, जिससे BJP को OBC और EBC वोट बैंक में सेंध लगाने का मौका मिलेगा।
यूपी, बंगाल और तमिलनाडु में असर
उत्तर प्रदेश (2027 चुनाव): सपा नेता अखिलेश यादव का PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) नैरेटिव इस फैसले से कमजोर पड़ सकता है। अगर 2026 में जनगणना शुरू होती है, तो BJP इसे यूपी में भुनाने की कोशिश करेगी।
पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु (2026 चुनाव): BJP इन राज्यों में OBC और दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए इस फैसले को हथियार बनाएगी, जहां TMC और DMK जाति जनगणना का समर्थन करती रही हैं।