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अब 15 साल पहले ही हो जाएगी पार्किंसंस बीमारी की पहचान, नए रिसर्च में…

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Parkinson’s disease diagnosis: पार्किंसंस रोग (Parkinson’s disease) की पहचान अब 15 साल पहले ही कर ली जाएगी।

तेल अवीव यूनिवर्सिटी (Tel Aviv University) के शोधकर्ताओं ने कोशिकाओं में प्रोटीन के इकट्ठा होने का पता लगाने का एक नया तरीका विकसित किया है, जो इस रोग के लक्षणों के प्रकट होने से लगभग 15 साल पहले ही इसकी पहचान कर सकता है।

इससे समय रहते इलाज की संभावनाएँ खुलती हैं और इस लाइलाज बीमारी को रोका जा सकता है। इस शोध का नेतृत्व प्रो. उरी अशेरी और PhD छात्र ओफिर साडे ने किया है, जिसमें इजरायली मेडिकल सेंटर्स, जर्मनी और अमेरिका के शोधकर्ताओं का सहयोग शामिल था।

अशेरी ने बताया, हमें उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में पार्किंसंस रोगियों के परिवार के सदस्यों के लिए उपचार के उपाय करना संभव होगा, जिनमें इस बीमारी के विकसित होने का खतरा होता है।

हर साल 1,200 नए मामलों की पहचान होती है

शोधकर्ताओं ने सुपर-रिज़ॉल्यूशन माइक्रोस्कोपी (Super-resolution Microscopy) का उपयोग करते हुए पार्किंसंस रोगियों की कोशिकाओं का अध्ययन किया, जो कि उनके मस्तिष्क से नहीं, बल्कि उनकी त्वचा से प्राप्त की गई थीं।

पार्किंसंस रोग एक मस्तिष्क की स्थिति है, जो मांसपेशियों में दर्दनाक सिकुड़न, कंपन और बोलने में कठिनाई का कारण बनती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, पिछले 25 वर्षों में इस रोग का प्रभाव दोगुना हो गया है, और दुनिया भर में लगभग 8.5 मिलियन लोग इससे पीड़ित हैं।

इजरायल में हर साल 1,200 नए मामलों की पहचान होती है। पार्किंसंस रोग का मूल कारण मिडब्रेन के सब्सटेंशिया निग्रा एरिया में Dopamine का उत्पादन करने वाले न्यूरॉन्स का विनाश है।

जब तक रोग के लक्षण प्रकट होते हैं, तब तक 50 से 80 प्रतिशत डोपामिनर्जिक न्यूरॉन्स (Dopaminergic Neurons) पहले ही मर चुके होते हैं। इसीलिए, वर्तमान में इसके इलाज की संभावनाएँ सीमित हैं। इस नई तकनीक से शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि वे समय से पहले रोग का पता लगाकर, संभावित उपचारों पर काम कर सकेंगे, जिससे पार्किंसंस रोग की चुनौती से निपटने में मदद मिलेगी।

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