झारखंड

झारखंड के खूंटी में अबतक नहीं हो सकी धान की रोपनी

खूंटी: सावन का महीना भी अब समाप्ति की ओर है। आषाढ़ की तरह ही Sawan month में भी बारिश नहीं हुई।

आलम यह है कि पूरा खूंटी जिला (Khunti District) सूखे की ओर बढ़ रहा है। जिले में अकाल की काली छाया मंडराने लगी है। अब तक जिले में महज 15 फीसदी ही धान रोपनी का काम हो सका है।

किसानों का कहना है की अमूमन सावन महीने तक जिले में 60 से 70 धान रोपनी का काम हो पूरा जाता है लेकिन इस वर्ष पानी मानसून (Water Monsoon) के धोखा देने के कारण दिनों दिन किसानों की चिंता बढ़ती जा रही है।

जिला प्रशासन (District Administration) ने भी मान लिया है कि अब किसानों को मॉनसूनी वर्षा की उम्मीद छोड़ कर वैकल्पिक खेती की ओर ध्यान देना चाहिए।

किसान खेतों में बिचड़े तक डाल नहीं पाए

ऐसा नहीं है की सावन के महीने में बारिश नहीं हो रही है। वर्षा तो हो रही है लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है।

जिले में अब तक औसत से 58 प्रतिशत से भी कम बारिश हुई है। इसके कारण अधिकांश क्षेत्रों में किसान खेतों में बिचड़े तक डाल नहीं पाए हैं।

तोरपा के किसान Abhimanyu Mahato कहते हैं कि गहरे और निचले खेतों में ही धान की छिटपुट बुआई हो पाई है।

अभी भी किसान खेतों में हल बैल लेकर इस उम्मीद में उतर रहे हैं कि शायद दो-चार दिनों में बारिश हो जाए लेकिन छिटपुट बारिश ने किसानों के माथे पर शिकन ला दी है।

किसानों का कहना है कि धान के खेत जुलाई माह के आखिरी तक हरे-भरे नजर आते थे लेकिन मौसम की मार ने किसानों को सोचने पर विवश कर दिया है कि आखिर वह खेतों में धान की रोपनी करें या न करें।

अभी तक खेतों में बारिश का पानी लबालब भर नहीं पाया है। ऐसे में धान की खेती अच्छी नहीं होगी।

कर्रा की कुछ महिला किसानों (Women Farmers) ने बताया कि सूखे खेत में किसान हल चलाने को मजबूर हैं। पानी की कमी के कारण धान के बिचड़े बर्बाद हो रहे हैं।

किसानों का कहना है कि 2016-17 के बाद इस बार खूंटी जिला धीरे-धीरे सुखाड़ की ओर बढ़ रहा है। 2016-17 में खूंटी जिले को सूखाग्रस्त जिला घोषित किया गया था और लगभग 9.50 Crore Rupees किसानों के भुगतान के लिए State को प्राप्त हुआ था।

भले इसका लाभ किसानों को मिला या नहीं, यह अलग बात है लेकिन इस बार किसान इस भरोसे में है कि सरकार किसानों की मदद जरूर करेगी।

वैकल्पिक खेती की ओर ध्यान दें किसान : संतोष लकड़ा

जिला कृषि पदाधिकारी संतोष लकड़ा (Santosh Lakra) कहते हैं कि सावन का महीना लगभग समाप्त होने को है और ऐसी स्थिति में धान की खेती की संभावना कम होती जा रही है।

इसलिए किसान वैकल्पिक खेती की ओर ध्यान दें। उन्होंने कहा कि कम बारिश (Rain) की स्थिति में किसान दलहन और तिलहन के अलावा फूलों की खेती भी कर सकते हैं।

आत्मा के परियोजना निदेशक अमरेश कुमार बताते हैं की 5-6 वर्षों के बाद ऐसी स्थिति आई है, जब जिले में औसत से काफी कम बारिश हुई है।

उन्होंने किसानों को सलाह दी कि वे कृषि राहत योजना का लाभ उठाएं और धान के बदले अन्य वैकल्पिक कृषि के बारे में विचार करें।

उन्होंने बताया कि 10 डिसमिल से लेकर पांच एकड़ तक खेती वाली जमीन का Online Registration किसान करायें।

30 से 50 फीसदी फसल नष्ट होने पर प्रति एकड़ 3000 रुपये तथा 50 प्रतिशत से अधिक फसल क्षति होने पर 4000 रुपये प्रति एकड़ की दर से किसानों को सरकार द्वारा मुआवजा दिया जायेगा।

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