भारत

क्या है ‘तलाक ए हसन’? महिला ने सुप्रीम कोर्ट में लगाई याचिका

सुप्रीम कोर्ट में याचिका गाजियाबाद निवासी बेनजीर हिना ने लगाई है

नई दिल्ली: ‘तलाक ए हसन’ एवं ‘एकतरफा अतिरिक्त न्यायिक तलाक’ पर फिर से आवाज उठने लगी है।

इसके अन्य सभी रूपों को समाप्त करने व असंवैधानिक घोषित करने की मांग करते हुए देशी शीर्ष कोर्ट में याचिका लगाई गई है।

याचिका दायर करने वाले का दावा है कि तलाक के ये प्रकार मनमाने, तर्कहीन व फंडामेंटल राइट्स का सीधे उल्लंघन करते हैं। सुप्रीम कोर्ट में याचिका गाजियाबाद निवासी बेनजीर हिना ने लगाई है।

उन्होंने याचिका में केंद्र को सभी नागरिकों के लिए तलाक के समान आधार और प्रक्रिया के लिए निर्देश तैयार करने के आदेश देने का अनुरोध किया है।

उसने दावा किया है कि वह एकतरफा न्यायेतर तलाक ए हसन का शिकार हुई है। पीड़िता ने दावा किया है कि पुलिस और अधिकारियों ने उसे बताया कि शरीयत में तलाक ए हसन की अनुमति है।

जानें तलाक ए हसन क्या है

तलाक-ए-हसन में तीन महीने की अवधि में महीने में एक बार तलाक कहा जाता है। तीसरे महीने में तीसरी बार तलाक कहने के बाद तलाक को औपचारिक रूप दिया जाता है।

याचिका में अनुरोध किया गया है कि उच्चतम न्यायालय तलाक-ए-हसन और न्यायेतर तलाक के अन्य रूपों को असंवैधानिक करार दे।

व्यक्त की गलत धारणा

अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937, एक गलत धारणा व्यक्त करता है कि कानून तलाक-ए-हसन और एकतरफा न्यायेतर तलाक के अन्य सभी रूपों को प्रतिबंधित करता है, जो विवाहित मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों के लिए बेहद हानिकारक है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 और नागरिक तथा मानवाधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय नियमों (कन्वेंशन) का उल्लंघन करता है।

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में बताया गया है कि दुनिया के कई इस्लामी देशों ने ऐसी प्रथा पर प्रतिबंध लगा रखा है। लेकिन भारतीय समाज व मुस्लिम महिलाओं को इस तरह के नियमों को सही बनाकर परेशान किया जा रहा है।

Back to top button
Close

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker