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Uttar Pradesh Assembly Election : चुनाव से गायब है साफ हवा-पानी का मुद्दा

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लखनऊ: दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में उत्तर प्रदेश के कई शहर अक्सर शीर्ष 10 में शामिल होते हैं, लेकिन राज्य के मौजूदा विधानसभा चुनाव प्रचार से स्वच्छ हवा-पानी के मुद्दे गायब हैं।

साफ पानी और वायु जीवन का मुख्य आधार होने के बावजूद समाजवादी पार्टी (सपा), कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) को छोड़कर किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल ने पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे को अपने चुनाव घोषणा पत्र में प्रमुखता से शामिल नहीं किया है और जिन दलों ने इन मुद्दों को घोषणा पत्र में शामिल किया भी है, उनके चुनाव प्रचार में इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर्यावरण इंजीनियर हैं और उन्होंने पर्यावरण विज्ञान की शिक्षा ऑस्ट्रेलिया से ली है, लेकिन उनकी पार्टी के चुनाव घोषणापत्र में पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी कोई बहुत बड़ी घोषणा शामिल नहीं है।

लगभग यही हाल कांग्रेस का भी है जिसने अपने घोषणापत्र में जलवायु परिवर्तन के कुछ पहलुओं को छुआ तो जरूर है, लेकिन कोई ठोस पहल की बात नहीं कही है।

सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने घोषणापत्र में जलवायु संरक्षण को ज्यादा अहमियत नहीं दी है। उसमें गंगा की सफाई के बारे में जरूर कुछ बात की गई है लेकिन जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर कोई बात नहीं की गई है।

जलवायु थिंक टैंक ‘क्‍लाइमेट ट्रेंड्स’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सिंधु-गंगा के मैदान वायु प्रदूषण के लिहाज से देश के सबसे ज्यादा प्रदूषित क्षेत्र हैं।

इस विशाल भूभाग के हृदय स्थल यानी उत्तर प्रदेश की 99.4 प्रतिशत आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है, जहां वायु प्रदूषण का स्तर सुरक्षित सीमा से ज्यादा है।

वैज्ञानिकों द्वारा हवा की खराब गुणवत्ता को लेकर बार-बार चिंता व्यक्त किए जाने के बावजूद, यह चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बनता, इस बारे में भारतीय जनता पार्टी (भाजप) की प्रदेश इकाई के वरिष्ठ नेता और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष जे पी एस राठौर ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘जनता को जो मुद्दे अच्छे लगते हैं, उन्हीं को आगे बढ़ाना पड़ता है।

पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा कायदे से 10 साल बाद जनता का मुद्दा बनेगा। अभी तो रोजगार और विकास ही लोगों के लिए प्रमुख मुद्दे हैं।’

एक प्रमुख राजनीतिक दल होने के बावजूद भाजपा द्वारा जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे को राजनीतिक विमर्श का मुद्दा नहीं बनाए जाने के सवाल पर राठौर ने कहा, ‘‘हम इसके प्रति गंभीर हैं और जमीनी स्तर पर ठोस काम कर रहे हैं। मगर अभी यह जनता का मुद्दा नहीं बन पाएगा, क्योंकि उसके लिए फिलहाल दूसरी चीजें जरूरी हैं।’

कांग्रेस की प्रदेश इकाई के प्रवक्ता अशोक सिंह ने कहा, ‘जब देश के प्रधानमंत्री विरोधी दलों को आतंकवाद से जोड़कर चुनाव को दूसरा मोड़ देने की कोशिश करेंगे, तो जलवायु परिवर्तन का मुद्दा कहां टिक पाएगा।’

उन्होंने कहा कि जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो उसने अपने घोषणापत्र में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने के कई वादे किए हैं, जिन्हें सरकार में आने पर पूरा किया जाएगा।

गौरतलब है कि ‘वायु गुणवत्ता सूचकांक’ में अब भी उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहर प्रदूषण के मामले में शीर्ष पर हैं। इनमें कानपुर, लखनऊ और गाजियाबाद प्रमुख हैं।

खासकर, पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 के संदर्भ में स्थिति बहुत गंभीर है। पीएम 2.5 इतने बारीक कण होते हैं जो इंसान की रक्त वाहिकाओं में भी दाखिल होकर तरह-तरह की गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं।

सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉक्टर आशुतोष वर्मा ने माना कि यह उत्तर प्रदेश का दुर्भाग्य है कि जलवायु परिवर्तन जैसा मानवता के प्रति गंभीर खतरा भी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाता और विकास की तमाम बातों के बाद प्रदेश का चुनाव आखिरकार जाति और धर्म पर आकर टिक जाता है।

उन्होंने दावा किया कि समाजवादी पार्टी ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान पर्यावरण संरक्षण की दिशा में जितना काम किया, उतना पहले किसी ने नहीं किया।

उन्होंने कहा कि पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद पर्यावरण इंजीनियर हैं और वह जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को बखूबी समझते हैं तथा दोबारा सरकार में आने पर वह निश्चित रूप से इस मसले के समाधान की दिशा में और अधिक ठोस कदम उठाएंगे।

‘वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) इंडिया’ में वायु गुणवत्ता शाखा के प्रमुख डॉक्टर अजय नागपुरे ने कहा कि पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरों को लेकर बेहद चिंतित है और पिछले साल नवंबर में ग्लासगो में हुई सीओपी26 शिखर बैठक में मानवता के लिए गंभीर खतरा बन चुके जलवायु परिवर्तन से निपटने की वैश्विक स्तर पर रणनीति भी बनाई गई, लेकिन भारत और खासकर उत्तर प्रदेश में यह मामला राजनीतिक मुद्दा नहीं बनता, जिसके कई कारण हैं।

उन्होंने कहा कोई भी मसला तभी राजनीतिक मुद्दा बनता है, जब वह आम लोगों का मुद्दा हो। उन्होंने कहा कि समस्या यही है कि प्रदूषण अभी तक आम लोगों का मुद्दा नहीं बन पाया है और यह अभी तक सिर्फ पढ़े-लिखे वर्ग का ही मुद्दा है।

नागपुरे ने कहा, ‘‘अगर हम वास्तविक रूप से धरातल पर देखें और आम लोगों से उनकी शीर्ष पांच समस्याओं के बारे में पूछें तो पाएंगे कि प्रदूषण का मुद्दा उनमें शामिल नहीं है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जिस तरह से प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है, हम उस हिसाब से लोगों को इस बारे में बता नहीं पा रहे हैं।

यह सबसे बड़ा कारण है। जिस दिन प्रदूषण का मुद्दा जन चर्चा और जन सरोकार का मुद्दा बनेगा, उसी दिन यह एक राजनीतिक मुद्दा भी बन जाएगा और राजनीतिक दल इसे अपने घोषणापत्र में प्रमुखता से शामिल करने को मजबूर हो जाएंगे।’’

पर्यावरण वैज्ञानिक डॉक्टर सीमा जावेद ने कहा कि जनता के बीच जितनी जानकारी पहुंचती है, लोगों में उतनी ही ज्‍यादा जागरूकता फैलती है।

उन्होंने कहा कि तंबाकू के खिलाफ चलाए गए अभियान में लोगों को काफी हद तक यह विश्वास दिला दिया गया कि तंबाकू से कैंसर होता है और इसका परिणाम यह हुआ कि लोगों ने तंबाकू के इस्तेमाल से परहेज करना शुरू किया।

उन्होंने कहा कि जागरूकता फैलने की वजह से ही कानूनी बंदिशें लागू की गईं कि कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान नहीं कर सकता, यानी जब कोई मुद्दा जन सरोकार का मुद्दा बनता है तभी नेता उसे प्राथमिकता देते हैं।

उन्होंने कहा कि किसी भी नेता का वोट बैंक आमतौर पर ग्रामीण लोग होते हैं इसलिए जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता को ग्रामीण स्तर तक ले जाना होगा ताकि उस स्तर पर भी प्रदूषण का मुद्दा जन जन का मुद्दा बने। तभी इस दिशा में एक व्यापक बदलाव आएगा और यह एक राजनीतिक मुद्दा बन सकेगा।

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