Homeझारखंडमस्जिदों में पढ़ी गई ईद-उल-अजहा नमाज, मांगी खुशहाली और अमन-चौन की दुआ

मस्जिदों में पढ़ी गई ईद-उल-अजहा नमाज, मांगी खुशहाली और अमन-चौन की दुआ

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खूंटी: जिला मुख्यालय खूंटी सहित जिले के सभी प्रखंड और ग्रामीण इलाकों में त्याग, बलिदान और प्रेम का त्यौहार ईद उल अजहा (Eid Ul Azha) गुरुवार को आपसी भाईचारा के साथ सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में मनाया गया।

इस अवसर पर जिला मुख्यालय में कर्रा रोड स्थित जामा मस्जिद, जन्नतनगर स्थित मदीना मस्जिद और पाशा कॉलोनी (Madina Masjid and Pasha Colony) स्थित मस्जिद ए जोहरा में सुबह ईद उल अजहा की विशेष नमाज अदा की गई। इस दौरान नमाजियों ने खूंटी सहित देश में खुशहाली और अमन-चैन की दुआ मांगी।

ईद उल अजहा का अर्थ त्याग वाली ईद

नमाज के बाद लोग कब्रिस्तान गए जहां अपने पुरखों और सगे संबंधियों की कब्र पर फातिहा पढ़ा गया। ज्ञात हो कि मुस्लिम उमुदेाय (Muslim Community) को दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार है। इस त्यौहार को ईद उल अजहा या कुर्बानी का त्यौहार भी कहा जाता है।

ईद उल अजहा (Eid Ul Azha) का अर्थ त्याग वाली ईद है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग ईदगाह और मस्जिदों में जमात के साथ विशेष नमाज अदा करते हैं। इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैह इस्सलाम ने कुर्बानी देने की प्रथा की शुरुआत की थी।

इस पर्व से जुड़ी कई मान्यताएं

तभी से इस परंपरा को निभाया जा रहा है। यह पर्व मुस्लिमों के लिए बहुत खास है। इस पर्व से जुड़ी कई मान्यताएं भी हैं। इस्लाम के अनुसार हजरत इब्राहिम अलैह इस्सलाम अल्लाह के पैगंबर थे।

ऐसा कहा जाता है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम अलैह (Ibrahim Alaih) इस्सलाम से अपने सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का हुक्म दिया।

पैगंबर साहब (Prophet) को अपना एकलौता बेटा इस्माइल सबसे अधिक प्रिय था। खुदा के हुक्म के अनुसार उन्होंने अपने प्रिय इस्माइल को कुर्बान करने का मन बना लिया।

कुर्बानी देनेवाले पर किसी तरह का कोई कर्ज नहीं होना चाहिए

इस बात से इस्माइल भी खुश थे कि वह अल्लाह की राह पर कुर्बान होगा। जब हजरत इब्राहिम अलैह इस्सलाम (Hazrat Ibrahim Alaih Islam) अपने बेटे इस्माइल अलैह इस्सलाम को कुर्बानी देने लगे, तो उसकी जगह एक दुंबा कुर्बान हो गया। इस तरह इस्माइल बच गए तभी से हर साल पैगंबर साहब द्वारा दी गई कुर्बानी की याद में बकरीद मनाई जाती है।

इस्लाम के अनुसार जिस व्यक्ति के पास पैसा न हो या उस पर किसी तरह का कोई कर्ज (Loan) हो तो वह कुर्बानी नहीं दे सकता। कुर्बानी देनेवाले पर किसी तरह का कोई कर्ज नहीं होना चाहिए, तभी उसकी कुर्बानी मानी जाती है।

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