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भाजपा में बिहार की 40 लोकसभा सीटों को लेकर बेचैनी, सभी सीटों पर जीत का दवा

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पटना : देश के दक्षिणी राज्यों में भाजपा (BJP) के निराशाजनक प्रदर्शन को देखते हुए, इसके शीर्ष नेतृत्व की नजर हिंदी भाषी राज्यों बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान और झारखंड पर है, ताकि कुछ बढ़त बनाई जा सके और केंद्र में सरकार बरकरार रखी जा सके।

भगवा पार्टी के लिए बिहार महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां 40 सीटें हैं और राजद के लालू प्रसाद यादव और जदयू के नीतीश कुमार (Lalu Prasad Yadav and  Nitish Kumar) जैसे कड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं।

नतीजतन, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह राजनीतिक रैलियों के लिए महागठबंधन सरकार के गठन के बाद से पांच बार बिहार का दौरा कर चुके हैं।

चौधरी ने कहा…

बिहार BJP अध्यक्ष सम्राट चौधरी मानते हैं कि लालू प्रसाद यादव के पास वोट बैंक है, लेकिन उन्हें यह भी पता है कि नीतीश कुमार के पास वोट बैंक नहीं है।

चौधरी ने कहा, राजद के पास अपना वोट बैंक है, लेकिन नीतीश कुमार के पास नहीं है, इसलिए, NDA के उम्मीदवार सभी 40 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करेंगे और नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे।

BJP का थिंक टैंक जानता है कि लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार से लड़ाई आसान नहीं है। 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद राजद कमोवेश उसी स्थिति में है, जैसी 2015 में थी, लेकिन नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जद (यू) कमजोर होती जा रही है। 2015 में, जद (यू) के 69 विधायक थे और 2020 के विधानसभा चुनाव में यह घटकर 43 रह गए।

राजनीति पूरी तरह धारणा के बारे में है, और भाजपा जानती है कि नीतीश कुमार जमीन पर मजबूत हैं और उनके मुख्य मतदाता लव-कुश (कुर्मी-कुशवाहा) उन्हें ऐसा ही मानते हैं। हालांकि, अगर मतदाताओं की धारणा नीतीश कुमार के प्रति बदलती है, तो संभावना यह है कि उनका मुख्य मतदाता आधार, जिसमें ओबीसी शामिल हैं, भाजपा की ओर स्थानांतरित हो सकता है।

यादव समुदाय के कट्टर विरोधी हैं लव-कुश मतदाता

इसलिए, भाजपा नेता चतुराई से नीतीश कुमार को निशाना बना रहे हैं और यह धारणा बना रहे हैं कि वह जमीन पर कमजोर हो रहे हैं और 2020 का विधानसभा चुनाव इसका उदाहरण है।

चूंकि लव-कुश मतदाता यादव समुदाय के कट्टर विरोधी हैं, इसलिए BJP इसे भुनाने की फिराक में है।

BP ने कुशवाहा समुदाय को यह संदेश देने के लिए सम्राट चौधरी को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया कि पार्टी में उनका प्रतिनिधित्व है।

उपेन्द्र कुशवाह का जद (यू) से अलग होना और भाजपा का गठबंधन सहयोगी बनना भी मतदाताओं को यह संदेश देने की एक चाल है कि नीतीश कुमार कमजोर हो रहे हैं और उनका समर्थन करना उनके वोटों की बर्बादी है।

पिछले एक साल में BJP ने JDU के कई नेताओं को अपने पाले में कर लिया है। इनमें आरसीपी सिंह, मीना सिंह, उपेन्द्र कुशवाहा, प्रोफेसर रणबीर नंदन, मोनाजिर हसन आदि कुछ नाम हैं और जदयू को नुकसान पहुंचाने की कोशिशें जारी हैं।

गुरुवार को अमित शाह से मुलाकात करने वाले उपेंद्र कुशवाहा ने कहा, ”हमने नई दिल्ली में अमित शाह से मुलाकात की और बिहार में लोकसभा चुनाव कैसे जीता जाए, इस पर चर्चा की। फिलहाल बिहार में नीतीश कुमार और जेडीयू कोई फैक्टर नहीं हैं। बिहार में राजद सबसे बड़ा फैक्टर है और एनडीए इससे निपटने के लिए रणनीति बना रही है।’

उन्‍होंने कहा,“मुझे नीतीश कुमार के लिए दुख है। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह राजद के लिए काम कर रहे हैं, वह नीतीश कुमार के हित में काम नहीं कर रहे हैं बल्कि राजद के बारे में सोच रहे हैं।”

NDA के पास 23 सीटें

2019 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा ने जेडी (यू) से हाथ मिलाया और गठबंधन ने 40 में से 39 सीटें जीतीं। भाजपा ने 17 सीटें जीतीं, जद (यू) ने 16 और राम विलास पासवान के नेतृत्व वाली एलजेपी को छह सीटें मिलीं। जेडीयू के अलग होने के बाद भी NDA के पास 23 सीटें हैं।

लेकिन, सच्चाई यह है कि नीतीश कुमार भले ही कमज़ोर दिख रहे हों, लेकिन वह अभी भी बिहार में ड्राइवर की सीट पर हैं और शासन की बागडोर मजबूती से पकड़े हुए हैं।

किसी भी राज्य की सरकारी मशीनरी चुनावों के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, खासकर कठिन परिस्थितियों में जब जीतने और हारने वाली पार्टी के बीच वोटों का अंतर कम होता है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए के लगभग 15 विधायक मामूली अंतर से जीते थे। राजद उम्मीदवार शक्ति सिंह यादव 12 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए थे।

बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए चार पार्टियां BJP के साथ गठबंधन में हैं। इसमें चिराग पासवान के नेतृत्व वाली LJPR, पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP), उपेंद्र कुशवाहा क…

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