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लोहरदगा में 12 साल बाद जनी शिकार, महिलाओं ने पुरुष वेशभूषा में मनाया पारंपरिक उत्सव

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Lohardaga News: लोहरदगा जिले के कई गांवों में रविवार को 12 साल बाद महिलाओं ने पारंपरिक जनी शिकार उत्सव धूमधाम से मनाया। इस दौरान पुरुषों की वेशभूषा में सजी सैकड़ों महिलाओं ने लाठी-डंडे और पारंपरिक हथियारों के साथ गांव-गांव भ्रमण कर शिकार किया।

पहान और पुजार ने विधिवत पूजा के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की, जिसके बाद महिलाओं ने गीत-संगीत और ढोल-मांदर की थाप पर उत्साह के साथ अखाड़ों में खुशियां मनाईं।

जनी शिकार की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

जनी शिकार की परंपरा 16वीं सदी के रोहतासगढ़ से जुड़ी है। मान्यता है कि मुगल शासकों को गुप्तचरों ने सूचना दी थी कि आक्रमण के दिन गढ़ के आदिवासी पुरुष नशे में होंगे। इस सूचना के आधार पर मुगलों ने रोहतासगढ़ पर हमला किया।

लेकिन, गढ़ की महिलाओं को जब यह पता चला, तो उन्होंने पुरुषों की वेशभूषा धारण कर संगठित होकर मुगलों का डटकर मुकाबला किया और उन्हें पराजित कर दिया। तभी से हर 12 साल बाद इस जीत की याद में जनी शिकार का आयोजन किया जाता है।

पारंपरिक रीति-रिवाज और पर्यावरण संरक्षण

जनी शिकार में महिलाएं जंगल में जाती हैं, लेकिन वे जंगली जानवरों को नुकसान नहीं पहुंचातीं। इसके बजाय, वे खस्सी, मुर्गी या बत्तख जैसे पालतू जानवरों का प्रतीकात्मक शिकार करती हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह परंपरा न केवल सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखती है, बल्कि पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण का संदेश भी देती है। आज की महिलाएं इस मान्यता को निभाते हुए जागरूकता के साथ जंगल और जानवरों की सुरक्षा पर जोर देती हैं।

ऐसे होता है जनी शिकार का आयोजन

इस उत्सव में पांच से छह गांवों की महिलाएं एकजुट होकर शिकार के लिए निकलती हैं। पुरुष वेशभूषा में सजी महिलाएं लाठी, डंडे और पारंपरिक हथियार लेकर गांवों और टोलों का भ्रमण करती हैं। अपने क्षेत्र की सीमा खत्म होने पर वे अगले गांव के पहान को सूचित करती हैं, जिसके बाद उस गांव की महिलाएं शिकार में शामिल होती हैं।

इस तरह जनी शिकार की परंपरा आगे बढ़ती है। शिकार के बाद सभी महिलाएं एक जगह जमा होकर भोजन तैयार करती हैं और सामूहिक रूप से खाती हैं।

गांवों में उत्साह का माहौल

जनी शिकार की तैयारियों में पूरा गांव जुटा रहा। महिलाओं से लेकर बच्चे, जवान और बुजुर्ग सभी उत्साह में थे। पुरुषों ने भी महिलाओं की तैयारियों में पूरा साथ दिया। प्रत्येक घर में उत्सव की तैयारियां जोर-शोर से की गईं। अखाड़ों में गीत-संगीत और नृत्य के साथ खुशियां मनाई गईं। ग्रामीणों ने बताया कि यह आयोजन गांव की एकता और सांस्कृतिक गौरव को दर्शाता है।

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