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रांची में गूंजी ‘या अली या हुसैन’ की सदाएं, सादगी के साथ मना मुहर्रम का त्योहार

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रांची: मुहर्रम अंतिम पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब के नवासे हजऱत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में मनाया जाता है। रांची में मुहर्रम पूरे अकीदत व सादगी और भाई चारे के साथ संपन्न हुआ।

रांची के कर्बला चौक स्थित कर्बला में, मेन रोड स्थित कुल्हाड़ी शाह बाबा कर्बला में, डोरंडा कब्रिस्तान कर्बला में, कांके धौताल कर्बला में, कांके कर्बला सहित विभिन्न कर्बला और इमामबाडो में नियाज फातिहा के बाद सादगी से मुहर्रम मनाया गया।

कहीं भी किसी अखाड़े के द्वारा जुलूस नहीं निकाले गए। मुस्लिम मोहल्ले के चौक चौराहों में बच्चों ने बाजार में बिकने वाले छोटे-छोटे ढोलक खरीद कर बजाते नजर आए।

कई जगह पर हजरत इमाम हुसैन की याद में तकरीर का आयोजन किया गया। मौलाना कर्बला के वाकिया को बताया।

कई अखाड़ों इमामबाडो में लोगों ने अपने-अपने खलीफा पप्पु गद्दी, मो महजूद, मो सजाद, और सेंट्रल मोहर्रम कमेटी के महासचिव अकिलुर्रह्मान, अध्यक्ष जावेद गद्दी, मासूम गद्दी, मो तौहीद, मो आफताब आलम, रोजन गद्दी, जमील गद्दी आदि पदाधिकारियों को पगड़ी बांधकर स्वागत किया। उन्हें तलवार भेंट कर सम्मानित किया।

इस दौरान मुस्लिम मोहल्लों में पुलिस की गश्ती सुबह से शाम तक होती रही। सेंट्रल मुहर्रम कमेटी के महासचिव अकील उर रहमान के नेतृत्व में पूरी टीम इलाके का दौरा करते दिखे।

जगह-जगह बच्चों और नौजवानों को समझाते रहे के ढोलक ना बजाएं, किसी तरह का खेल प्रदर्शन ना करें।

तीनों मुख्य इमामबाड़ा धौताल का महावीर चौक, गावला टोली चौक, इमाम बख्श का हिंदपीढ़ी में, सुबह से शाम तक न्याज फातिहा का दौर चलता रहा।

सुबह से शाम तक चलता रहा लंगर खानी का दौर

मुहर्रम पर मुस्लिम मुहल्लों के चौक चौराहों इमामबाडो और घरों में लंगर खाने का दौर चलता रहा कोविड-19 को देखते हुए लोग एक एक कर आते गये और लंगर खानी सुबह से शाम तक चलता रहा।

कोई शरबत बांट रहा है, तो कोई खिचड़ा, तो कोई खीर, कोई मिठाई, कोई खजूर, कोई दलिया, कोई बिरयानी, कोई फल जिससे जो हो रहा है वह अपने हिसाब से मुहर्रम में लंगर खानी का एहतमाम कर रहा है।

ज्यादातर मुसलमानों ने रखा 9 वी 10 वी का रोजा

मोहर्रम में 9 वीं और दसवीं का रोजा की अहमियत बहुत है। इसलिए ज्यादातर मुसलमानों ने 9वीं और दसवीं का रोजा रखा। रोजा रखकर अपने रब को याद किया।

हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद कर उनके लिए इसाले सवाब(दुआ) की गई। साथ ही पूरी दुनिया में कोविड-19 जैसे महामारी की खात्मा की दुआ की गई।

जीने का तरीका सिखाता है मुहर्रम

सेंट्रल मुहर्रम कमिटि के महासचिव अकिलुर्रह्मान ने कहा कि मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है, जो कई मायनों में खास है।

इस महीने को लेकर इतिहास में कई विशेषताएं दर्ज हैं लेकिन हज़रत इमाम हुसैन ने जिस तरह झूठ के आगे झुकने से इंकार करते हुए सच्चाई को कायम रखा, यह हमें जीने का सही तरीका सिखाता है।

मुहर्रम, जिसका अर्थ है हराम यानी निषिद्ध। इस महीने का नाम मुहर्रम रखने का कारण यह है कि इस महीने में युद्ध करना हराम माना जाता है यानी मना है। कर्बला की घटना दुनिया की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक है।

जिसे आज भी 1400 साल गुजरने के बाद भी याद किया जाता है और इसका प्रभाव जरा भी कम नहीं हुआ है। इस तरह मुहर्रम मातम और गम का महीना है।

पुलिस प्रशासन की रही कड़ी चौकसी

मुहर्रम के दसवीं पर पुलिस प्रशासन की कड़ी चौकसी नज़र आई। हर चौक चौराहों पर, मुस्लिम मुहल्लों में, इमामबाड़ों में पुलिस प्रशासन की कड़ी चौकसी रही। साथ ही ट्रैफिक पुलिस के जवान ट्रैफिक व्यवस्था संभालते दिखे।

भीड़ भाड़ होते देख पुलिस सबको हटाते भी रहे। लोअर बाजार थाना प्रभारी संजय कुमार, कोतवाली थाना प्रभारी शैलेश प्रशाद सहित कई थाना प्रभारी अपने अपने क्षेत्र में लगातार गश्त करते नजर आए।

नही निकला मातमी जुलूस, घर घर गुंजा या हुसैन की सदा

नावासे रसूल हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में रांची में निकलने वाले मातमी जुलूस का दीदार करने के लिए लोग बेकरार थे। मातमी जुलूस को करोना संक्रमण के कारण इस वर्ष भी नहीं निकाला गया। लोगों ने अपने अपने घरों में या हुसैन की सदा लगाई और इमामबाड़ो में नजर और फातिहा किया।

मुहर्रम के पहली तारीख से लेकर दसवीं तारीख तक लम और ताजिया पर चढ़ाए गए फूल को इमामबाड़ा से ले जाकर कर्बला पर 4 से 7 लोगों ने दफन किया। मौलाना सैयद तहजीब उल हसन की अगवाई में किया गया।

मजलिस ए रोजेआशूर को हज़रत मौलाना हाजी सैयद तहजिबुल हसन रिज़वी ने संबोधित करते हुए इमाम हुसैन की शहादत को हक वालों की जीत बताया और यह भी कहा की मजहब और धर्म की आड़ लेकर जो लोग इंसानियत को कमजोर करते हैं वह खुद कमजोर हो जाते हैं, इंसानियत कमजोर नहीं हो सकती।

इंसानियत को कर्बला में इमामे हुसैन ने हमेशा हमेशा के लिए हयात( जिंदगी) बख्शी है। लोगों ने शहीदाने कर्बला का जिक्र सुनकर लोग फूट-फूट कर रोने लगे।

यह प्रोग्राम ऑनलाइन पूरी दुनिया में देखा जा रहा था और लोग रांची के इस मोहर्रम को लोगों के लिए प्रतीक समझ रहे थे। 10 दिवसीय कार्यक्रम अंजुमन जाफरिया के तत्वाधान में किया गया।

नोहा खानी हाशिम अली, कासिम अली, हसनैन रिज़वी, आमोद अब्बास ने नोहा खानी, मरसिया खानी प्रोफेसर डॉक्टर जफर, अशरफ हुसैन रिजवी, डॉ हैदरी ने किया।

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