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बोकारो में पुलिस और इनामी नक्सली मिथिलेश दस्ते के साथ मुठभेड़, दोनों तरफ से करीब 500 राउंड हुई फायरिंग

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बोकारो: बोकारो जिले के बेरमो प्रखंड के धमधरवा गांव के कुंबा टुंगरी और सिरगिट नाला के समीप पुलिस तथा नक्सलियों के बीच सोमवार देर रात मुठभेड़ हो गयी।

मिथिलेश दस्ता और पुलिस की संयुक्त टीम के बीच मुठभेड़ में दोनों तरफ से करीब 500 राउंड फायरिंग हुई है। हालांकि, इस मुठभेड़ में किसी तरह की जान माल की क्षति की सूचना नहीं मिली है।

पुलिस को गुप्त सूचना मिली थी कि मिथिलेश दस्ता अपने दस्ते के साथ धमधरवा गांव के आसपास स्थित जंगल में मौजूद है।

इसके बाद पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस के पहुंचते ही नक्सली की तरफ फायरिंग शुरू हो गयी।

इसके बाद पुलिस की संयुक्त टीम ने मोर्चा संभाला और दोनों तरफ से तबाड़तोड़ 500 राउंड फायरिंग हुई। हालांकि, रात को जंगल का फायदा उठाते हुए नक्सली फरार हो गये।

पुलिस की ओर से इलाके में सर्च अभियान चलाया जा रहा है। सर्च अभियान में सीआरपीएफ एवं सशस्त्र पुलिस बल के जवानों के साथ ही डॉग स्क्वॉयड भी शामिल हैं। इसी बीच नक्सलियों से मुठभेड़ हो गई।

उल्लेखनीय है कि बेरमो अनुमंडल के नक्सल प्रभावित चतरोचट्टी और जगेश्वर बिहार थाना के जंगली क्षेत्र में 25 लाख के इनामी नक्सली नेता मिथिलेश सिंह का सशस्त्र दस्ता लगातार सक्रिय है।

इस दस्ते में करीब 20 सदस्य शामिल हैं। ये नक्सली अत्याधुनिक हथियारों से लैस है. खबर है कि नक्सलियों का ये दस्ता दोनों ही थाना क्षेत्र के अमन पहाड़ी, अंबानाला, कोइयो टांड़, कारीपानी, रोला, मोरपा, रजडेरवा, सुअर कटवा आदि क्षेत्रों में संगठन विस्तार को लेकर लगातार भ्रमण कर बैठक कर रहा है. साथ ही साथ पुराने साथियों से भी संपर्क में रह रहें हैं।

साल 2004 में गिरफ्तार हुआ था मिथिलेश

बताया जाता है कि 1992 में मिथिलेश झुमरा में नक्सलवाद की जड़ मजबूत करने वाले सोहन मांझी के साथ मिलकर सक्रिय था।

सोहन की निष्क्रियता के बाद यह और अधिक सक्रिय हो गया। लगातार 12 वर्षो तक यह जिले में सक्रिय रहा। माले और एमसीसी से हुए संघर्ष में भी इसकी भूमिका अहम रही।

पहली बार यह नक्सली 2004 में गिरफ्तार हुआ। इसकी गिरफ्तारी बोकारो और धनबाद पुलिस के संयुक्त अभियान में हुई थी।

उस वक्त धनबाद एसपी संजय आनंद लाठकर थे तो बोकारो के एसपी आर के मल्लिक थे। गिरफ्तारी के बाद इसकी निशानदेही पर झुमरा में एक बंकर से 50 राइफल पुलिस ने बरामद की थी।

मिथिलेश ने उस समय पुलिस को जानकारी दी थी कि बोकारो, हजारीबाग समेत आस-पास के इलाकों से उस समय नक्सलियों ने लूटकर ये बंदूकें रखी थी, जब संगठन की नींव रखी जा रही थी।

लचर पुलिस जांच की वजह से वर्ष 2013 में जेल से छूटा

बताया जाता है कि कई गंभीर नक्सली घटना में शामिल मिथिलेश को साल 2004 में गिरफ्तार करने के बाद जेल भेजा गया।

महज नौ वर्ष बाद ही यह जेल से निकलने में कामयाब हो गया। जेल से निकलने के बाद फिर से अपने संगठन में शामिल हो गया और घटनाओं को अंजाम देने लगा। बाहर आने के बाद इसने कई बड़ी वारदातों को अंजाम दिया।

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