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विश्वविद्यालयों में Ph.D के लिए जमकर हो रही नकल, राजभवन की जांच में…

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Jharkhand Plagiarism in Universities for Ph.D: झारखंड के सरकारी विश्वविद्यालयों में Ph.D के लिए होने वाले रिसर्च में नकल और साहित्यिक चोरी (Plagiarism) पर रोक नहीं लग पा रही है।

झारखंड के राजभवन (Raj Bhawan) ने विश्वविद्यालयों में शोधार्थियों द्वारा जमा कराए Ph.D Thesis की रैंडम जांच में पाया है कि रिसर्च का स्तर तो निम्न है ही, नकल भी जमकर हो रही है।

में आठ से लेकर 54 फीसदी तक की चोरी की गई

राज्य के विश्वविद्यालयों के चांसलर सह राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन (CP Radhakrishnan) ने इस पर गंभीर चिंता जताई है। राजभवन ने राज्य के सभी सरकारी विश्वविद्यालयों से Ph.D के पांच-पांच थिसिस मंगाए थे। विशेषज्ञों से इनकी गुणवत्ता और Plagiarism की जांच कराई गई।

पाया गया कि थिसिस में आठ से लेकर 54 फीसदी तक की चोरी की गई है। मात्र एक थिसिस को छोड़कर सभी की गुणवत्ता निम्न आंकी गई।

अब इसे लेकर राज्यपाल (Governor) के प्रधान सचिव डॉ. नितिन मदन कुलकर्णी ने सभी सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों (Vice Chancellors) को पत्र लिखकर आगाह किया है।

10 फीसदी से ज्यादा प्लेगेरिज्म नहीं होना

पत्र में UGC गाइडलाइन का हवाला देते हुए कहा गया है कि थिसिस में मूल कार्य से 10 फीसदी से ज्यादा प्लेगेरिज्म किसी हाल में नहीं होना चाहिए।

निर्देश दिया गया है कि इसके लिए डिपार्टमेंटल रिसर्च काउंसिल और एथिकल कमेटी Ph.D के लिए प्री-सबमिशन सेमिनार के पहले और बाद में भी थिसिस की समीक्षा करे।

दरअसल, यह पहली बार नहीं है जब झारखंड के विश्वविद्यालयों में PHD Thesis में नकल को लेकर सवाल उठे हैं। रांची विश्वविद्यालय की Academic Council ने दो साल पहले ऐसी नकल को रोकने के लिए प्रस्ताव पास किया था कि स्कॉलर्स को थिसिस के साथ यह प्रमाण पत्र देना होगा कि उन्होंने चोरी नहीं की है।

एक साल तक संशोधित स्क्रिप्ट जमा करने से रोक

रांची विश्वविद्यालय ने यह नियम भी अधिसूचित कर रखा है कि किसी रिसर्च स्कॉलर की थिसिस में दूसरे के शोध प्रबंध से 60 फीसदी से ज्यादा समानता पाई गई तो यूनिवर्सिटी उसका Registration रद्द कर देगी।

जिन छात्रों की थीसिस में 40 से 60 फीसदी समानता होगी, उन्हें एक साल तक संशोधित स्क्रिप्ट जमा करने से रोक दिया जाएगा। यदि थिसिस में किसी अन्य कार्य के साथ 10 प्रतिशत तक समानता है तो साहित्यिक चोरी जांच प्रमाणपत्र (PCC) प्रदान किया जाएगा।

विभागाध्यक्ष (Head of the Department) यह सुनिश्चित करेंगे कि साहित्यिक चोरी का पता लगाने वाले सेल के निदेशक और समन्वयक के संयुक्त हस्ताक्षर से PCC जारी होने के बाद ही प्री-सबमिशन सेमिनार आयोजित किया जाएगा।

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