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Deoghar के हवाई मार्ग से जुड़ने से संताल परगना में बढ़ी पर्यटन की संभावनाएं

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देवघर : देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा बैद्यनाथ की पावन धरती बाबानगरी देवघर के हवाई मार्ग (Air Shaft) से जुड़ने के साथ ही समस्त संथाल परगना के औद्योगिक विकास के साथ ही पर्यटन विकास (Tourism Development) की अपार संभावनाएं भी जुड़ गई हैं।

वास्तव में हरिताभ वन संपदाओं से सुसज्जित संथाल परगना के पर्यटक स्थलों (Tourist Places)की बात की जाए तो यहां अनगिनत ऐसे स्थल हैं, जिनके विकास के साथ ही बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटकों का आगमन होगा जो यहां के नैसर्गिक पर्यटक स्थलों के मोहपाश में इस तरह बंध जाएंगे कि वे यहां बार-बार आने का लोभ संवरण नहीं कर पाएंगे।

संथाल परगना में स्थित पर्यटक स्थलों की बात करें तो यहां ऐसे कई धार्मिक और पर्यटक स्थल हैं जहां श्रद्धालुओं और पर्यटकों की तादाद में इजाफा होनेवाला है। तो आईए जानते हैं यहां के पर्यटक स्थलों के बारे में जहां अब पर्यटकों की संख्या में इजाफा होनेवाला है।

धार्मिक यात्रा के दृष्टिकोण से यह प्रमुख स्थल है बासुकीनाथ धाम

बाबा बैद्यनाथ धाम, देवघर से बासुकीनाथ धाम इसकी दूरी 47 किलोमीटर है। नागेश्वर बाबा बासुकीनाथ का शिव मंदिर अत्यंत प्राचीन होने के साथ ही इसके महात्म्य इस तरह भी जाना जा सकता है कि श्रद्धालुओं के बीच जहां बाबा बैद्यनाथ को मनोकामना लिंग कहा जाता है, वहीं बाबा बासुकीनाथ को फौजदारी बाबा कहा जाता है।

लोगों की आस्था है कि फौजदारी बाबा बासुकी त्वरित फलदायक हैं। ऐसी मान्यता है कि सुलतानगंज से कांवर यात्रा तबतक पूर्ण नहीं माना जाती, जबतक कांवरिये बाबा बासुकीनाथ (Baba Basukinath) का जलाभिषेक न कर लें। धार्मिक यात्रा के दृष्टिकोण से यह प्रमुख स्थल है।

अत्यंत मनोरम स्थल है तातलोई गर्म जलकुंड

बासुकीनाथ से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर बारा पलासी से चार किलोमीटर की दूरी पर नदी के किनारे स्थित तातलोई का गर्म जलकुंड अत्यंत मनोरम स्थल है।

गर्म जल कुंडों के अतिरिक्त नयनाभिराम दृश्यावलियों के कारण पर्यटक यहां आने पर बेहद सुकून महसूस करेंगे। 200 वर्ष पूर्व प्रकाश में आये इस स्थल का विकास अपेक्षित है ताकि देशी पर्यटकों को लुभाया जा सके। गर्म जल के कुंड में स्नान से त्वचा रोगों से मुक्ति मिलती है, वहीं साफा होड़ समुदाय के लोग यहां मरांग बुरु की पूजा करते हैं।

बाबा गजेश्वर धाम में होता है सफेद स्फटिक के स्वयंभू शिवलिंग का दर्शन

बाबाधाम देवघर से 140 किलोमीटर दूरसाहेबगंज जिले के बरहेट प्रखंड स्थित बाबा गाजेश्वर नाथ राजमहल की पहाड़ी श्रृंखला के गिरी गुहा में अवस्थित है।

लगभग 300 सीढ़ियां चढ़ गुफा में प्रवेश के पूर्व ऊपर से अनवरत गिरते नैसर्गिक झरने को पार कर इस यहां पहुंचने पर सफेद स्फटिक के स्वयंभू शिवलिंग का दर्शन होता होता है, जिसके शीश पर सालों भर बूंद-बूंद जल टपकता रहता है।

नियनयभिराम दृश्यावलियां यहां आने वालों को इस तरह अपने मोहपाश में जकड़ लेती है कि यहां आने वाला बार-बार यहां आना चाहता है।

सालों भर प्रवाहित नैसर्गिक झरने के तौर पर जाना जाता है मोती झरना

देवघर से तकरीबन 160 किलोमीटर की दूरी पर साहेबगंज जिले के महराजगंज में राजमहल की पहाड़ियों पर स्थित मोती झरना यद्यपि तकरीबन 250 फिट ऊपर से सालों भर प्रवाहित नैसर्गिक झरने के तौर पर जाना जाता है।

हालांकि यह स्थल कभी गुमनाम साधकों, कभी मुगलों, तो कभी डकैतों की आश्रस्थली रहा, जबकि जनश्रुतियों के आधार पर यहां अर्द्धनारीश्वर स्वरूप में महादेव विराजते हैं।

झरनों की संगीतमय ध्वनि (musical sound) के साथ ऊपर से गिरते झरने के जल के बीच से गुफा में प्रवेश अलौकिक एहसास प्रदान करता है। यहां की खूबसूरती शब्दों में बयान नहीं की जा सकती।

हालांकि अबतक इसका समुचित विकास नहीं किया जा सका है। वैसे इस क्षेत्र में कई एक झरने और भी हैं जो प्रकृति को निहारने वाले पर्यटकों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है।

पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है कन्हाई स्थान

देवघर से तकरीबन 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कन्हाई स्थान साहेबगंज जिले राजमहल अनुमंडल में आता है।

अविरल कृष्ण भक्ति की सरस् प्रवाह के मध्य पतित पावन गंगा की धारा इस स्थल को इस कदर मनोरम बनाती है कि यहां समय कैसे गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता।

इस स्थल के महत्व का इसी बात से लगाया जा सकता है कि चैतन्य महाप्रभु के कदम यहां पड़े थे और वे आनंद विभोर होकर नृत्यरत हो गए थे।

चैतन्य महाप्रभु के चरण चिन्ह आज भी मौजूद हैं । इस्कान का मठ इसको संचालित करता है। यहां आना अद्वितिय आनंद की अनुभूति प्रदान करने वाला है जो पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर खींच लेगा।

सौरिया पहाड़िया की सांस्कृतिक विरासत है कंचन गढ़ का किला

आदिम जनजाति सौरिया पहाड़िया की कभी स्वतंत्र राज सत्ता हुआ करती थी। वर्तमान में लिट्टीपाड़ा प्रखंड पाकुड़ जिले में स्थित है। राजमहल की पहाड़ी के शीर्ष पर गुफा में किला की सांस्कृतिक विरासत लोग देखना चाहेंगे।

देखने योग्य है बंगाल के नबाबों द्वारा बनाया गया जामा मस्जिद

साहेबगंज का राजमहल अनुमंडल कभी बिहार, बंगाल, उड़ीसा की संयुक्त रूप से नबाबों की राजधानी रही थी और यही कारण है कि यह क्षेत्र कभी मराठों तो कभी मुगलों के अधीन रहा था। ऐतिहासिक रूप से बंगाल के नबाबों द्वारा बनाया गया जामा मस्जिद देखने लायक है। वैसे, यहां मुगल सेनापति राजा मानसिंग द्वारा बनाया गया टेलियागढ़ी किला भी भग्नावशेष रूप में मौजूद है।

अतिक्रमण का शिकार होकर रह गया है उधवा पक्षी अभयारण्य

साहेबगंज जिले के राजमहल अनुमंडल के उधवा में स्थित उधवा पक्षी अभयारण्य हालांकि अतिक्रमण का शिकार होकर रह गया है। बावजूद इसके यहां बहुतायत में विदेशी पक्षियों का प्रवास होता है।

यहां की खूबसूरती भी लोगों को अपने मोहपाश में बांधने में सक्षम है। अगर इस क्षेत्र का समुचित विकास किया जाये तो देश के कोने-कोने से पर्यटक यहां आने लगेंगे।

मानव सभ्यता के क्रमिक विकास का साक्षी रहा है जीवाश्म पार्क

साहेबगंज जिला मंडरो प्रखंड स्थित जीवाश्म पार्क बलराज साहनी इंस्टीट्यूट की ओर से डेवलप किया गया है, जिसका लोकार्पण मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बीते दिनों किया है। मानव सभ्यता के क्रमिक विकास का साक्षी रहा इस क्षेत्र में करोड़ों वर्ष पुराने जीवाश्म बहुतायत में उपलब्ध हैं।

थोड़े समय पूर्व तक इसके महत्व से अनजान स्थानीय लोगों द्वारा इसे बेतरतीब ढंग से मिटाया जा रहा था, जिसे अब संरक्षित करने का काम बलराज साहनी इंस्टीट्यूट (Balraj Sahni Institute) द्वारा किया जा रहा है।

विश्व के प्राचीनतम जीवाश्म के अवशेषों को देखने के लिए यहां देशी-विदेशी पर्यटकों का जमावड़ा लगना तय माना जा रहा है। जाहिर है कि संताल परगना का चप्पा-चप्पा पर्यटन विकास की अपार संभावनाओं से भरा है। समेटने के बावजूद इस दिशा में ज्यादा कुछ नही किया गया है।

अगर यहां के पर्यटक स्थलों का विकास किया जाय तो झारखंड राज्य पर्यटन (Jharkhand State Tourism) के क्षेत्र में न केवल विश्व के मानचित्र में शामिल हो सकेगा, बल्कि यहां पर्यटन आधारित रोजगार के पर्याप्त अवसर भी पैदा हो सकेंगे।

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