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हमें पाठ मत पढ़ाइए!” – ए. राजा का BJP पर सीधा वार, वक्फ बिल पर संसद में संग्राम

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A. Raja’s direct attack on BJP over Waqf Bill in Parliament: संसद का सत्र इस बार बेहद गरम रहा, क्योंकि लोकसभा में वक्फ संशोधन बिल को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिली। डीएमके सांसद ए. राजा ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि जिस पार्टी के पास एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है, वह अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा का दावा कर रही है। विपक्षी दलों ने इस विधेयक को मुसलमानों की संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण की कोशिश करार दिया, जबकि सरकार इसे पारदर्शिता लाने का कदम बता रही है।

विपक्ष का हमला- “बीजेपी हमें धर्मनिरपेक्षता न सिखाए”

लोकसभा में चर्चा के दौरान डीएमके सांसद ए. राजा ने तीखा हमला बोलते हुए कहा कि बीजेपी हमें धर्मनिरपेक्षता का पाठ न पढ़ाए। उन्होंने कहा कि यह बिल एकतरफा फैसला है, जिसमें मुस्लिम समुदाय की आपत्तियों को दरकिनार कर दिया गया है। उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, जिस पार्टी में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं, वही अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की बात कर रही है, यह अपने आप में विडंबना है।

तमिलनाडु विधानसभा का प्रस्ताव और नजरअंदाज की गई आपत्तियां

तमिलनाडु विधानसभा पहले ही इस विधेयक के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर चुकी थी, लेकिन केंद्र सरकार ने इसे अनदेखा कर दिया। ए. राजा ने कहा कि यह कदम संघीय ढांचे पर हमला है और देश की एकता के लिए खतरा बन सकता है। विपक्ष ने इसे “संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ” बताते हुए विधेयक को तत्काल वापस लेने की मांग की।

मुस्लिम लॉ बोर्ड का ऐलान- “हम चुप नहीं बैठेंगे”

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस विधेयक को पूरी तरह से अस्वीकार्य बताते हुए विरोध की रणनीति तैयार कर ली है। महासचिव ने आरोप लगाया कि वक्फ अधिनियम में संशोधन की जरूरत नहीं थी और इसे मुस्लिम संपत्तियों को सरकारी नियंत्रण में लेने की चाल बताया। लॉ बोर्ड के प्रवक्ता इलियास ने स्पष्ट किया कि अगर यह विधेयक पारित हुआ, तो देशभर में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक विधेयक नहीं, बल्कि सरकार की साजिश है। हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे और सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल करेंगे।”

विपक्षी दलों का समर्थन, सरकार अड़ी रहीविधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्षी दलों ने एकजुट होकर इसका विरोध किया। कांग्रेस, टीएमसी, और समाजवादी पार्टी समेत कई दलों ने कहा कि यह कदम मुस्लिम समुदाय को कमजोर करने के लिए उठाया गया है। वहीं, सरकार ने अपने रुख पर अडिग रहते हुए इसे पारदर्शिता बढ़ाने वाला सुधार बताया।

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