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अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में लोगों को भा रहे झारखंडी ट्राइबल परिधान, तसर सिल्क…

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रांची : हर साल की तरह प्रगति मैदान का भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला (Indian International Trade Fair) अपने शीर्ष पर है। मेले में आने वाले लोग प्रदर्शनी देखने के साथ खरीदारी का भी खूब लुत्फ उठा रहे हैं।

झारखंड पवेलियन में लगे ट्राइबल परिधान (Tribal Attire) लोगो को खूब पसंद आ रहे हैं। झारखंड में तसर सिल्क बहुत मात्रा में उत्पादित किया जाता है। ऐसे में पवेलियन में सिल्क की साड़ियां और सूट के स्टाल पर खासी भीड़ दिखी।

ट्राइबल लोगों की अपनी अलग ही संस्कृति होती है, जिसकी झलक उनके कपड़ों पर देखी जाती है। यहां मिलने वाली साड़ियों पर ट्राइबल आर्ट का ही प्रिंट देखा जा रहा है।

कपड़े पारम्परिक और ऑर्गेनिक हैं

ट्राइबल परिधान की बिक्री कर रहे दामु बोदरा ने कहा कि उनके स्टाल पर सिल्क और कॉटन की पारम्परिक साड़ियां है, जिसकी कीमत 1000 से 3500 है।

उन्होंने कहा कि हम अपने कपड़ो पर प्राकृतिक रंगो द्वारा अपने ही कारीगरों द्वारा पेंटिंग या कढ़ाई करवाते है, जिससे की पहनने वाले को उसके नेचुरल लुक का आभास होता है।

साथ ही हमारी कोशिश है कि हम अपनी लोक संस्कृति को अपने काम के माध्यम से लोगों तक पहुचाएं, जिसमें ट्राइबल डांस, इंस्ट्रूमेंट, प्रकृति की झलक मिलती है। ट्राइबल महिलाएं शादी के पहले हरे रंग की साड़ी और शादी के बाद लाल रंग की साड़ी पहनती है, जिसकी बिक्री यहां की जा रही है।

जोहार ग्राम के नाम से झारखंड के पारम्परिक परिधानों को बेचने वाले आशीष सत्यव्रत साहू ने कहा कि उनके द्वारा बेचे जा रहे कपड़े पारम्परिक और ऑर्गेनिक हैं।

15 प्रतिशत की सब्सिडी भी मुहैया कराई गई

ये कपड़े झारखंड के आदिवासी समुदाय (Tribal Community) जैसे खड़िया, मुड़ा, उरांव आदि उपयोग करते हैं। पवेलियन में झारखंड की पिनदना साड़ी, वीरू गमछा और कुखना शाल और आधुनिक परिधान की बिक्री कर रहे हैं।

इसके अलावा उनके पास जैकेट, ओवरकोट, शर्ट, टोपी, मास्क और बेतरा लुगा उपलब्ध है। उनकी पैकिंग भी झारखंड के स्टेट ट्री सखुआ के पत्तों के साथ किया जाता है।

उन्होंने इसकी शुरुआत मार्च 2019 में जिला उद्योग केंद्र के प्रोजेक्ट पास होने के बाद शुरू की थी, जिसमें बाद उन्हें सरकार की तरफ से 15 प्रतिशत की सब्सिडी (Subsidy) भी मुहैया कराई गई थी।

वर्तमान में वे सभी कपड़े स्थानीय बुनकरों से खरीदते हैं, जिससे उनके संस्थान के साथ लगभग 30 बुनकर परिवारों को भी रोजगार मिलता है।

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