झारखंड

पद्म पुरस्कार 2021 : झारखंड की छुटनी देवी को मिला पद्मश्री, जानें कौन हैं छुटनी महतो उर्फ छुटनी देवी

डायन के कलंक से शुरू हुआ था सफर

रांची: झारखंड की छुटनी देवी को मंगलवार को राष्ट्रपति भवन में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है। इस महिला के नाम के आगे अब भारत का श्रेष्ठ सम्मान पद्मश्री जुड़ गया है।

एक समय ऐसा भी था कि घर वालों ने डायन के नाम पर न सिर्फ उसे प्रताडि़त किया, बल्कि घर से बेदखल भी कर दिया था। आठ माह के बच्चे के साथ पेड़ के नीचे रही। तब पति ने भी साथ छोड़ दिया था। आज वह अपनी जैसी असंख्य महिलाओं की ताकत बन गई है।

छुटनी महतो सरायकेला खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड की बिरबांस पंचायत के भोलाडीह गांव में रहती हैं। छुटनी महतो को पद्मश्री सम्मान की घोषणा इसी साल गणतंत्र दिवस के मौके पर की गई थी लेकिन कोरोना के प्रकोप के कारण उन्हें अबतक यह पुरस्कार नहीं मिल सका था।

जमशेदपुर और सरायकेला-खरसावां जिले में डायन प्रथा के खिलाफ काम करने वाली महिला छुटनी महतो को पद्मश्री देने का ऐलान किया गया था।

डायन प्रथा के खिलाफ आंदोलन चलाती हैं छुटनी

छुटनी महतो सरायकेला-खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड के बीरबांस इलाके में डायन प्रथा के खिलाफ आंदोलन चलाती है। उनको भी लोग डायन कहकर ही पुकारते थे लेकिन डायन प्रथा के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले समाजसेवी प्रेमचंद ने छुटनी महतो का पुनर्वास कराया और फ्री लीगल एड कमेटी (फ्लैक) के बैनर तले काम करना शुरू किया और अब भारत सरकार ने उनको पद्मश्री का अवार्ड देने का ऐलान कर दिया है। छुटनी महतो अभी 62 साल की है।

Image

कौन हैं छुटनी महतो उर्फ छुटनी देवी

छुटनी महतो उर्फ छुटनी देवी झारखंड के सरायकेला- खरसावां जिले के गम्हरिया के बीरबांस इलाके की रहने वाली है। वह गम्हरिया थाना के महतांडडीह इलाके में ब्याही गई थी। वह जब 12 साल की थी तभी उसकी शादी धनंजय महतो से हुई थी।

उसके बाद उसके तीन बच्चे हो गए। दो सितंबर, 1995 को उसके पड़ोसी भोजहरी की बेटी बीमार हो गई थी। लोगों को शक हुआ कि छुटनी ने ही कोई टोना-टोटका कर दिया है।

इसके बाद गांव में पंचायत हुई, जिसमें उसे डायन करार दिया गया और घर में घुसकर उसके साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की गई। छुटनी महतो सुंदर थी जो अभिशाप बन गया था। अगले दिन फिर पंचायत हुई।

पांच सितंबर तक कुछ ना कुछ गांव में होता रहा। पंचायत ने 500 रुपये का जुर्माना लगा दिया। उस वक्त किसी तरह जुगाड़ कर उसने 500 रुपये जुर्माना भरा लेकिन इसके बावजूद कुछ ठीक नहीं हुआ।

इसके बाद गांववालों ने ओझा-गुनी को बुलाया। छुटनी महतो को ओझा-गुनी ने शौच पिलाने की कोशिश की। मानव मल पीने से यह कहा जा रहा था कि डायन का प्रकोप उतर जाता है। उसने मना कर दिया तो उसको पकड़ लिया गया और उसको मैला पिलाने की कोशिश शुरू की और नहीं पी तो उसके ऊपर मैला फेंक दिया गया और बच्चों के साथ उसे गांव से निकाल दिया गया था। गांव से निकाल दिए जाने के बाद उसने पेड़ के नीचे रात काटी। विधायक चंपई सोरेन के पास भी वह गई। लेकिन वहां भी कोई मदद नहीं मिला।

उसके बाद उसने थाना में रिपोर्ट दर्ज करा दी। कुछ लोग गिरफ्तार हुए और फिर छूट गए। इसके बाद उसकी जिंदगी और नरक हो गई। फिर वह ससुराल को छोडकर मायके आ गई।

मायके में भी लोग डायन कहकर संबोधित करने लगे और घर का दरवाजा बंद करने लगे। भाईयों ने बाद में साथ दिया। इस दौरान पति भी आए और कुछ पैसे की मदद पहुंचाई। भाईयों ने भी जमीन और पैसे देकर उसकी सहायता किया। तत्पश्चात वह मायके में ही रहने लगी।

पांच साल तक वह इसी तरह रही और ठान ली कि वह डायन प्रथा के खिलाफ लड़ेंगी। वर्ष 1995 में उसके लिए कोई खड़ा नहीं हुआ था लेकिन उसने किसी तरह फ्लैक के साथ काम करना शुरू किया और फिर उसको कामयाबी मिली और कई महिलाओं को डायन प्रथा से बचाया। अब तो वह रोल मॉडल बन चुकी है।

छुटनी ने इस कुप्रथा के खिलाफ ना केवल अपने परिवार के खिलाफ जंग लड़ा बल्कि झारखंड, बंगाल, बिहार और ओडिशा की डायन प्रताड़ित दो सौ से अधिक महिलाओं को इंसाफ दिला कर उनका पुनर्वासन भी कराया।

जिसने जब जहां बुलाया छुटनी पहुंच गई और अकेले इंसाफ की लड़ाई में कूद गई। उसके इसी जज्बे को देखते हुए सरायकेला- खरसावां जिले के तत्कालीन उपायुक्त छवि रंजन ने डायन प्रताड़ित महिलाओं को देवी कहकर पुकारने का ऐलान किया था।

सरकारी उपेक्षा का दंश भी झेलना पड़ा

हालांकि, छुटनी को सरकारी उपेक्षाओं का दंश झेलना पड़ा। आज भी छुटनी बीरबांस में डायन रिहैबिलिटेशन सेंटर चलाती है लेकिन सरकारी मदद ना के बराबर उसे मिलती है। देर सबेर ही सही भारत सरकार की ओर से छुटनी को इस सम्मान से नवाजा गया जो वाकई छुटनी के लिए गौरव का क्षण कहा जा सकता है।

पद्मश्री मिलने के बाद छुटनी ने कहा कि इस कुप्रथा के खिलाफ अंतिम सांस तक मेरी जंग जारी रहेगी। भारत सरकार ने मुझे इस योग्य समझा, यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है लेकिन इस कुप्रथा को जड़ से मिटाने के लिए जमीनी स्तर पर सख्त कानून बनाने और उसके अनुपालन की मुकम्मल व्यवस्था होनी चाहिए। स्थानीय प्रशासन को भी ऐसे मामले में गंभीरता दिखानी चाहिए।

Back to top button
Close

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker