खूंटी के लिए खुले दिल से कुदरत ने लुटाया है अनमोल तोहफों का भंडार, सैलानियों को…

वैसे तो खूंटी जिले के पर्यटन स्थलों पर सालों भर घूमने-फिरने के शौकीनों का आना-जाना लगा रहता है, पर नवंबर से फरवरी तक इन स्थलों पर ऐसी भीड़ उमड़ती है कि तिल रखने की जगह नहीं रहती। एक नजर डालते हैं खूंटी जिले के प्रमुख पर्यटन स्थलों (Tourist Destinations) पर।

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Khunti Tourists Places : भगवान बिरसा मुंडा, शहीद गया मुंडा जैसे वीरों और जयपाल सिंह मुंडा जैसे खिलाड़ियों की धरती खूंटी (Khunti) को प्रकृति ने मुक्त हस्त से घने जंगल, पहाड़, नदी और जल प्रपात सहित कई सौगातें दी हैं, जो सैलानियों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं।

वैसे तो खूंटी जिले के पर्यटन स्थलों पर सालों भर घूमने-फिरने के शौकीनों का आना-जाना लगा रहता है, पर नवंबर से फरवरी तक इन स्थलों पर ऐसी भीड़ उमड़ती है कि तिल रखने की जगह नहीं रहती। एक नजर डालते हैं खूंटी जिले के प्रमुख पर्यटन स्थलों (Tourist Destinations) पर।

खूंटी जिले के प्रमुख पर्यटन स्थल

पेरवांघाघ : राज्य के सबसे सुंदर जलप्रपातों में शुमार पेरवांघाघ जल प्रपात तोरपा प्रखंड मुख्यालय से 16 किलोमीटर और जिला मुख्यालय खूंटी से 44 किलोमीटर की दूरी पर घने जंगलों और पहाड़ों के बीच स्थित है। पेरवांघाघ कों कबूतरों का घर भी कहा जाता है।

नागपुरी भाषा में कबूतर को पेरवां कहा जाता है। कारो नदी पर स्थित इस जलप्रपात का नाम पेरवांघाघ पड़ा। हरे-भरे साल के वृक्षों और मनोरम हरी-भरी पहाड़ियों की सुंदर पृष्ठभूमि के बीच स्थित यह जलप्रपात झारखंड के आकर्षक पर्यटन स्थलों में से एक है। रांची से इसकी दूरी लगभग 110 किलोमीटर है।

उलूंग जल प्रपात : खूंटी से लगभग 70 किलोमीटर और रांची से लगभग 105 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ियों के बीच आनंदमयी सड़क का यात्रा करके आप उलूंग जलप्रपात पहुंच सकते है। यह रनिया प्रखंड की डाहू पंचायत में स्थित है। यह जलप्रपात सिमडेगा और खूंटी जिले की सीमाओं की कायल नदी पर स्थित है।

लगभग दो किलोमीटर से अधिक खंड पर अनगिनत झरनों का आप आनंद उठा सकते है। हालांकि यहां जाने के लिए सड़क की अच्छी सुविधा नहीं है। इसके कारण यहां सैलानियों का आवागमन कुछ कम है।

रीमिक्स जलप्रपात : खूंटी से दशम जलप्रपात जाने के मार्ग पर दशम जल प्रपात(खूंटी जिले का भाग) से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है खूंटी का और एक मनोरम पर्यटन स्थल Remix जलप्रपात। यह खूंटी जिले की तारूबा पंचायत के दीरीगड़ा गांव में स्थित है।

इस सुरमयी जलप्रपात से रांची की दूरी लगभग 50 किलोमीटर है। यह जलप्रपात सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है, जो पुराने दशम लप्रपात मार्ग से गुजरने वाले यात्रियों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। हर वर्ष यहां लाखों सैलानियों की भीड़ उमड़ती है।

पंचघाघ जलप्रपात : खूंटी-चाईबासा मुख्य मार्ग पर खूंटी जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर और रांची से 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पंचघाघ (Panch ghaagh) जलप्रपात मुरहू प्रखंड में स्थित है। यहां पांच झरनों का मेल होता है। इसलिए इसे पंचघाघ फॉल कहते हैं।

पंचघाघ बनई नदी की पांच धाराओं का घर है, जहां वे आती और गिरती हैं। जल प्रपात नीली पहाड़ी और पांच गांव कोलम्दा, कुड़की, कोड़ाकेल और घघारी से घिरा हुआ है। यह एक जलाशय जैसी संरचना है, जहां सभी आयु वर्ग के लोग तैराकी और स्नान का आनंद लेते है।

पेलौल डैम : पेलौ डैम खूंटी जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। खूंटी-सिमडेगा मार्ग पर स्थित यह मानव निर्मित जलाशय लोगों के आकर्षण का केंद्र है। यहां प्राकृतिक पर्यटन और पैन कल्चर का आनंद उठाया जा सकता है।

रानी जलप्रपात : खूंटी-तमाड़ रोड पर मुरहू प्रखंड के कोटाना गांव में स्थित रानी जलप्रपात की दूरी खूंटी से महज 15 किलोमीटर है। सजना नदी को इस स्थल पर एक आश्चर्यजनक और प्रसंसनीय दृश्य प्रदान करता है। यह स्थान अपने जल प्रवाह और रेत के किनारो के लिए प्रसिद्ध है, जो इसे पर्यटन की दृष्टि से काफी शानदार बनाता है। जलप्रपात के साथ कई सड़क भी बनाई बनाई गई है, जो इस जलाशय को शानदार प्राकृतिक सुंदरता का नजारा लेने के लिए व्यू प्वाइंट तक पहुंचाती हैं।

लतरातू जलाशय : लतरातू डैम ब्राह्मणी और बैतरणी बेसिन में स्थित है। यह खूंटी में इको टूरिज्म की अपार संभावनाओं का परिचायक है। उत्तरी कारो नदी इस डैम को सिंचती है। गुमला और रांची जिले की सीमाओं के निकट होने के कारण खूंटी, गुमला, लोहरदगा, रांची सहित दूसरे जिलों के लोगों के लिए यह एक आदर्श पिकनिक स्थल है।

कर्रा प्रखंड के डूमरगड़ी गांव के पास स्थित होने के कारण यह जलाशय स्थानीय लोगों की आजीविका के अवसरों को बढ़ावा देता है। यहां पर साहसिक पर्यटन और नौका विहार का आनंद भी सैलानी ले सकते हैं। लतरातू जलाशय से सूर्यास्त का नजारा देखना भी सुखद अनुभूति प्रदान करता है।

डोम्बारी बुरू : डोम्बारी बुरू सैकड़ो मुंडा आदिवासियों की वीरता का एक महत्वपूर्ण स्मारक है। भगवान बिरसा मुंडा द्वारा घोषित उलबगुलान क्रांति नागपुर क्षेत्र में अंग्रेजों के साथ ही सामंती प्रथा और जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ भगवान बिरसा मुंडा के आंदोलन का यह एक प्रतीक है।

बिरसा मुंडा ने डोम्बारी बुरू(पहाड़ी) से ही उलगुलान का बिगुल फूंका था। अपने अधिकारों को बचाने के लिए उपनैविशिक ताकतों, जमींदारों, ठेकेदारों और साहूकारों के खिलाफ की गई इस क्रांति हजारों मुंडा जनजाति के लोगों ने बिरसा मुंडा का अनुकरण किया था।

भगवान बिरसा मुंडा और उनके शहीद अनुयायियों को श्रद्धांजलि देने के लिए हर वर्ष डोम्बारी आते हैं। इस पहाड़ी पर भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा और 110 फीट ऊंचा स्तंभ और अखाड़े का निर्माण किया गया है। यहां भी लोगों का आना-जाना हमेशा लगा रहता है।

उलिहातू :अमर शहीद भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू सैलानियों के साथ ही शोधाथियों और इतिहासकारों के लिए हमेश से आकर्षण का केंद्र रहा है। इसी स्थान पर 15 नवंबर 1875 को भगवान बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था।

हाल के दिनों में शहीद ग्राम योजना के तहत इस गांव का संपूर्ण विकास प्रशासन द्वारा किया जा रहा है। उलिहात में भगवान बिरसा मुंडा की एक मूर्ति के साथ-साथ भगवान बिरसा मुंडा के बलिदान और विरासत को दर्शाने वाले पत्थर के प्रशंसा पत्र यहां मिलते है।

बिरसा मृग विहार : रांची-खूंटी राजमार्ग पर स्थित बिरसा मृग विहार सैलानियों के आकर्षण का केंद्र शुरू से रहा है। जब भी जंगल सफारी की बात होती है, तो हिरणो को अठखेलियां करते हुए देखना किसे पसंद नहीं होता। पर्यटन विरासत में समृद्ध खूंटी के बिरसा मुनि बिहार में हिरणों को कुलांचे भरते देखना एक उत्कृष्ट अनुभव है। बिरसा मृग विहार को कालामाटी पार्क के रूप में भी जाना जाता है।

दशम जलप्रपात : दशम जलप्रपात को पहले दसोंग जल प्रपात के नाम से भी जाना जाता था। दशम जल प्रपात दो भागों में बंटा है एक रांची जिले में आता है, जबति दूसरा खूंटी जिले में पड़ता है। यह एक सुंदर जलप्रपात है, जिसकी दूरी रांची शहर से 34 किलोमीटर और राष्ट्रीय राजमार्ग 33 रांची-जमशेदपुर राजमार्ग से सात किलोमीटर है।

यह खूंटी से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दशम जलप्रपात के रास्ते में पहाड़ा, प्रकृति की सुंदरता एक अनमोल दृश्य प्रदान करता है, क्योंकि यह 44 मीटर की शानदार ऊंचाई से जलप्रपात गिरता है।

बाबा आम्रेश्वर धाम : प्रकृति ने खूंटी को पर्यटन स्थलों के अलावा कई धार्मिक स्थलों की सौगात भी दी है। इनमें बाबा आम्रेश्वर धाम या आंगनबाड़ी मंदिर काफी विख्यात है। जिला मुख्यालय खूंटी से इसकी दूरी लगभग 10 किलोमीटर है।

सदियों पुराने यह स्वयंभू शिवलिंग एक आम के वृक्ष के नीचे स्थित है। इसलिए इसे बाबा आम्ररेश्वर धाम कहा जाता ह। हालांकि अब वह आम का पेड़ गिर चुका है। जिला प्रशासन द्वारा इस स्थल के विकास के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं।

सोनमेर माता मंदिर खूंटी : कर्रा मार्ग पर खूंटी से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रांची से कर्रा-लोधम होकर भी सोनमेर माता पहुंचा जता यसकता है। यह मंदिर किसी परिचय का मोहताज नहीं है। यहां माता दुर्गा अष्टभुजी के रूप में विराजमान हैं।

यह न सिर्फ सनातन धर्मावलंबियों, बल्कि जनजातीय समुदाय के लोगों के लिए भी आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है। संभवत यह इकलौता दुर्गा मंदिर है, जहां पूजा अर्चना मुंडारी भाषा में पाहनों द्वारा कराई जाती है।

सरवादा चर्च : जिले के मुरहू प्रखंड स्थित सरवादा गांव में स्थित चर्च की स्थापना 1881 में झारखंड में शिक्षा और ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार के उद्देश्य से ईसाई मिशनरियों द्वारा की गई थी। सरवादा चर्च रांची से 53 किलोमीटर और खूंटी से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मुरहू प्रखंड मुख्यालय से इसकी दूरी महज पांच किलोमीटर है। इस गांव में स्थित पुराना गिरजाघर सैलानियों के आकर्षण का केंद्र रहा है।

प्रेमघाघ पर्यटन स्थल : रांची-कर्रा रोड पर कर्रा प्रखंड मुख्यालय से चार किलोमीटर पहले स्थित है प्रेमघाघ जल प्रपात। डाउगाड़ा जंगल के किनारे इस पर्यटनस्थल पर भी हर साल सैकड़ों सैलानी प्रकृति की सुंदरता निहरने के लिए आते हैं। रांची से इसकी दूरी लगभग 45 किलोमीटर है।

बघलता पर्यटन स्थल : कर्रा प्रखंड मुख्यालय से लगभग सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित बघलता पर्यटन स्थल भी सैलानियों के लिए मनपसंद पिकनिक स्थल है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां नदी के तट पर बड़ी-बड़ी गुफाएं हैं। कहा जाता है कि पहले इन गुफाओं में काफी संख्या में बाघ रहते थे। इसलिए इसका नामकरण बघलता हो गया।

पाट पहाड़ : कर्रा से बिरदा बेड़ो जाने के रास्ते पर पहाड़ टोली गांव के पास स्थित पाट पहाड़ भी लोगों की आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पहाड़ की चोटी पर स्वयंभू शिवलिंग की पूजा के लिए काफी लोग यहां पहुंचते हैं। यहां की गुफा में दशभुजी दुर्गा की भी एक पत्थर की मूर्ति है। हर साल अगहन पूर्णिमा का यह विशाल मेला लगता है।

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