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झारखंड में वन्यजीव अभयारण्य प्रबंधन को लेकर भविष्य की कोई योजना नहीं

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रांची: झारखंड में वन्यजीव अभयारण्य प्रबंधन को लेकर भविष्य की कोई येाजना नहीं है। इसका खुलासा हाल ही में प्रबंधन प्रभावशीलता का मूल्यांकन (एमईई) की रिपोर्ट में हुआ है।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा गठित विशेषज्ञों की एक टीम ने हाल ही में झारखंड के महुआडांड भेड़िया आश्रयणी, पारसनाथ वनयजीव आश्रयणी और तोपचांची वन्यजीव आश्रयणी का दौरा किया था।

हालांकि पलामू ब्याध्र परियोजना क्षेत्र का मूलयांकन नहीं कराया जा सका।

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने हाल ही में देश के 146 राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों की प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन (एमईई) रिपोर्ट जारी की थी।

झारखंड का दौरा करने वाली टीम में केरल के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक ए के भारद्वाज, वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के प्रबंधक तथा प्रोजेक्ट प्रमुख राम कुमार, वाइल्डलाइफ जेनेटिक्स डिवीजन, अरण्यक प्रमुख उदयन बोरठाकुर और भारतीय वन्य प्राणी संस्थान वैज्ञानिक बी एस अधिकारी शामिल थे।

अधिकारियों और वैज्ञानिकों की टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि झारखंड के तीनों आश्रयणी में प्रबंधन की कोई योजना नहीं है।

रिपोर्ट में कहा गया है, पारसनाथ और महुआडांड आश्रयणी में प्रबंधन की योजना प्रस्तावित है, जबकि तोपचांची के लिए कोई योजना नहीं है।

रिपोर्ट में टीम ने जल्द ही प्रबंधन की योजना बनाने पर जोर दिया है।

वन्यजीव विशेषज्ञ प्रारंभ से ही जीवों को संरक्षित करने के लिए प्रबंधन पर जोर देते रहे हैं।

पर्यावरण को लेकर कार्य करने वाले विधायक और पूर्व मंत्री सरयू राय ने इस संबंध में मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा है।

वन्यजीव विशेषज्ञ और नेचर कंजर्वेशन सोसाइटी के सचिव डी एस श्रीवास्तव ने कहा कि महुआडांड भेडिया आश्रयणी में वर्ष 2010 से प्रबंधन की कोई योजना नहीं है।

उन्होंने कहा कि यह स्थिति यह दिखाती है कि यहां के वन्यजीव आश्रयणी को कैसे चलाया जा रहा है।

रिपोर्ट में वनकर्मियों की कमी का भी जिक्र किया गया है तथा कर्मचारियों में वन्यजीवों की देखरेख के लिए उचित प्रशिक्षण के भी अभाव के तरफ ध्यान दिलाया गया है।

विशेषज्ञों की टीम ने अपनी रिपोर्ट में इको डवलपमेंट प्लान नहीं चलाने का जिक्र किया है।

हाल के दिनों में संरक्षित क्षेत्रों (पीए) का प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन (एमईई) पीए प्रबंधकों के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में उभरा है, क्योंकि इसका उपयोग सरकारों और अंतरराष्ट्रीय निकायों द्वारा संरक्षित क्षेत्र प्रबंधन प्रणालियों की ताकत और कमजोरियों को समझने के लिए किया जा रहा है।

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