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वोटरों को रिझाने के लिए सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स का भी खूब होता इस्तेमाल, अब..

आज के दौर में वोटरों को रिझाने के लिए नए-नए तरीके अपनाए जाते हैं। देश में दुनिया के सबसे बड़े चुनावी उत्सव की तैयारियां शुरू होने के साथ ही पार्टियां मतदाताओं के मनोविज्ञान (Psychology) पर असर डालने के लिए व्हाट्एप जैसे ‘Messaging’ मंच और सोशल Media Influencers का सहारा ले रही हैं।

Social Media Influence in Voters: आज के दौर में वोटरों को रिझाने के लिए नए-नए तरीके अपनाए जाते हैं। देश में दुनिया के सबसे बड़े चुनावी उत्सव की तैयारियां शुरू होने के साथ ही पार्टियां मतदाताओं के मनोविज्ञान (Psychology) पर असर डालने के लिए व्हाट्एप जैसे ‘Messaging’ मंच और सोशल Media Influencers का सहारा ले रही हैं।

राजनीतिक दल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपनी उपलब्धियों का प्रचार करने तथा मतदाताओं से समर्थन मांगने के लिए व्यापक पैमाने पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी (BJP) व्हाट्सएप पर ‘‘प्रधानमंत्री की ओर से पत्र’ भेजकर मतदाताओं से जुड़ने का प्रयास कर रही है और मोदी सरकार की उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए मतदाताओं से ‘फीडबैक’ ले रही है। व्हाट्सएप के भारत में हर महीने 50 करोड़ से अधिक सक्रिय उपयोगकर्ता होते हैं।

इतना ही नहीं BJP ने ‘माय फर्स्ट वोट फॉर मोदी’ वेबसाइट शुरू की है जिसमें मतदाता मोदी के लिए वोट करने का संकल्प ले सकते हैं और अपनी पसंद की वजह बताकर एक वीडियो अपलोड कर सकते हैं।

वेबसाइट पर मोदी सरकार में किए गए विकास कार्यों को दिखाते कई लघु वीडियो भी हैं। वहीं, कांग्रेस ‘राहुल गांधी व्हाट्सएप समूह’ चलाती है जिसमें राहुल लोगों से संवाद करते हैं और उनके सवालों का जवाब देते हैं।

व्हाट्सएप पर सूचनाओं के प्रसार की निगरानी जिला स्तर पर की जाती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह जनता तक पहुंचे और पार्टी के मतदाता आधार को मजबूत करे।

चुनावी विश्लेषक और समीक्षक ने कहा, ‘‘जिस भी राजनीतिक दल के अधिक व्हाट्सएप समूह हैं, वह मतदाताओं से तेजी से और बेहतर तरीके से संवाद कर सकता है। इससे उन्हें तेजी से अपनी उपलब्धियों का प्रचार करने और मतदाताओं को प्रभावित करने में मदद मिलती है।’’

एक समय सोशल मीडिया पर प्रचार के लिए सबसे पसंदीदा मंच रहा फेसबुक अब राजनीतिक पेज पर विज्ञापनों संबंधी कई पाबंदियों के कारण राजनीतिक दलों को पसंद नहीं रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘पार्टियां उस सोशल मीडिया मंच को चुनती है जो उन्हें बगैर ज्यादा पाबंदियों के और बड़े उपयोगकर्ता आधार के साथ तेजी से जनता से जोड़ने में मदद करते हैं। इंस्टाग्राम और ट्विटर (अब X) जैसे कई अन्य मंच हैं जो जनता के एक खास वर्ग की आवश्यकताओं को पूरी करते हैं और उनके अलग-अलग प्रारूप हैं।’’

आयोग के आंकड़ों के अनुसार, BJP ने 2019 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के दौरान मीडिया विज्ञापनों (प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक, ‘बल्क’ SMS, केबल वेबसाइट, टीवी चैनल आदि) पर 325 करोड़ रुपये खर्च किए थे, जबकि कांग्रेस ने 356 करोड़ रुपये खर्च किए।

सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स एक और महत्वपूर्ण माध्यम बन गए हैं जिनके जरिए पार्टियां उन लोगों का प्रभावित करने की कोशिश करती हैं जो वोट नहीं करते लेकिन धारणा बनाने में भूमिका निभाते हैं। पिछले कुछ महीनों में कई नेता युवा दर्शकों से जुड़ने के लिए मशहूर सोशल मीडिया ‘इन्फ्लूएंसर्स’ (सोशल मीडिया पर लोगों पर प्रभाव डालने वाले लोग) के यूट्यूब चैनलों पर दिखाई दिए हैं।

केंद्रीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, केंद्रीय पीयूष गोयल और राजीव चंद्रशेखर जैसे भाजपा नेताओं ने साक्षात्कार दिए हैं, जिनके यूट्यूब पर 70 लाख से अधिक फॉलोअर हैं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी यात्रा और भोजन के वीडियो पॉडकास्ट ‘कर्ली टेल्स’ की संस्थापक कामिया जानी से भोजन पर बातचीत की थी।

चुनावी नतीजों पर सोशल मीडिया प्रचार की महत्ता बताकर जानकार ने कहा, ‘‘औसतन दो लाख की आबादी वाले किसी विधानसभा क्षेत्र में 40 फीसदी तक इंटरनेट पहुंच के साथ डिजिटल माध्यमों के जरिए 75,000 से 80,000 लोगों को प्रभावित करना संभव है। किसी भी विधानसभा चुनाव में 5,000 वोटों का अंतर भी किसी भी जीत-हार का अच्छा अंतर होता है।

इस बीच, राजनीतिक दलों द्वारा सोशल मीडिया पर प्रचार को विनियमित करने की आवश्यकता पर जोर देकर पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त SY कुरैशी ने कहा कि निर्वाचन आयोग को प्रौद्योगिकी कंपनियों से चुनावी निकाय के नियमों का उल्लंघन करने वाले पोस्ट हटाने के लिए उनके तंत्र को मजबूत करने पर बात करनी चाहिए। यह लोकतंत्र की मजबूती के लिए बहुत जरूरी है।

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