HomeUncategorized20 साल से लंबित इन दो मामलों की अब सुप्रीम कोर्ट में...

20 साल से लंबित इन दो मामलों की अब सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई, 9 जजों की बेंच…

Published on

spot_img

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अभी दो इस तरह के मामले लंबित हैं, जिनकी सुनवाई अब 9 न्यायाधीशों की संविधान पीठ करेगी। ये दोनों मामले 20 साल से भी ज्यादा समय से अदालत में विचाराधीन हैं।

Supreme Court के 70 साल के इतिहास में नौ-न्यायधीशों की पीठ की ओर से दिए गए फैसलों की संख्या बहुत कम है। अदालत ने अब तक केवल 18 नौ न्यायाधीशों की पीठ के फैसले सुनाए हैं। इसमें ज्यादातर मामले मौलिक अधिकारों के दावों के इर्द-गिर्द घूमते हैं।

7 अक्टूबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की अध्यक्षता में नौ जजों की संविधान पीठ के सामने चार मामलों की लिस्ट रखी गई थी। अब अदालत को इसमें दो मामलों की सुनवाई करनी है।

यह मामला मुंबई में निजी जमीन मालिकों के बारे में है। वे महाराष्ट्र सरकार की ओर से जर्जर इमारतों को अपने अधिकार में लेकर उनकी मरम्मत करवाने का विरोध कर रहे हैं।

मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने मुख्य सवाल यह है कि क्या निजी संपत्ति को सामुदायिक संसाधन माना जा सकता है? क्या सामुदायिक संसाधन के अंतर्गत निजी संपत्ति (जैसे किसी व्यक्ति की फैक्ट्री या जमीन) को भी शामिल किया जा सकता है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39(B) कहता है कि राज्य की जिम्मेदारी है, कि वह ऐसी नीतियां बनाए जिससे यह सुनिश्चित हो कि सामुदायिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस तरह हो कि सबका भला हो सके।

अनुच्छेद 39(B) राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाने का सुझाव देता है कि देश के संसाधन सभी लोगों के फायदे के लिए वितरित किए जाएं। लेकिन, यह स्पष्ट नहीं है कि क्या इसमें निजी संपत्ति भी शामिल है या नहीं।

मुंबई में बहुत सी पुरानी और जर्जर इमारतें हैं, जिसमें मरम्मत न होने के कारण रहना खतरनाक होता जा रहा है। फिर भी इन इमारतों में लोग किराएदार के रूप में रहते हैं।

इन इमारतों की मरम्मत और पुनर्निर्माण के लिए महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास अधिनियम 1976 (MHADA) के तहत इनमें रहने वालों पर सेस लगाया जाता है। यह पैसा मुंबई भवन मरम्मत और पुनर्निर्माण बोर्ड (MBRRB) को दिया जाता है, जो इन सेस वाली इमारतों की मरम्मत और पुनर्निर्माण के काम को देखता है।

बैंगलोर वॉटर सप्लाई एंड Sewerage Board बनाम ए राजप्पा (1978) केस में भारत में मजदूरों के पक्ष में एक बहुत महत्वपूर्ण फैसला सुनाया गया। सात न्यायाधीशों की बेंच ने औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के तहत उद्योग शब्द की बहुत व्यापक परिभाषा दी।

इस परिभाषा के दायरे में कई संस्थाएं और उनके कर्मचारी आ गए जिससे उन्हें कानूनी संरक्षण मिलने लगा। बोर्ड की ओर से हटाए गए कुछ कर्मचारियों ने औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत अपने बकाये का भुगतान पाने के लिए मुकदमा दायर किया था।

लेकिन, बाद के कुछ सालों में इस लेकर अदालतों में असमंजस की स्थिति बन गई। 1996 में Supreme Court की तीन न्यायाधीशों की बेंच ने Bangalore Water Supply वाले मामले के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि सामाजिक वानिकी विभाग को भी उद्योग की परिभाषा के तहत माना जाएगा।

लेकिन 2001 में दो न्यायाधीशों की बेंच ने एक अलग नजरिया अपनाया। उनका तर्क था कि वन विभाग राज्य के संप्रभुता से जुड़ा कार्य है और याचिकाकर्ता ने यह स्पष्ट नहीं किया कि यह उद्योग की कैटेगरी में क्यों आएगा।

इस तरह दोनों फैसलों में काफी अंतर था जिससे मजदूरों के बीच चिंता पैदा हो गई। इसके बाद उद्योग की परिभाषा पर स्पष्टता लाने के लिए मई 2005 में न्यायमूर्ति धर्माधिकारी की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की बेंच ने मामले को नौ न्यायाधीशों की बेंच के पास भेज दिया! तब से ये मामले अदालत में लंबित है।

spot_img

Latest articles

सहारा की ज्यादातर संपत्तियां अडानी के हवाले? सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी का इंतजार

New Delhi News: सहारा समूह का लंबे समय से अटका वित्तीय विवाद अब एक...

अगस्त 2025 में भारत के स्मार्टफोन निर्यात में 39% की उछाल

Smartphone exports jump 39%: भारत के स्मार्टफोन निर्यात ने अगस्त 2025 में शानदार प्रदर्शन...

गाजा में इजरायली हमलों में 17 फलस्तीनियों की मौत

Israeli attacks in Gaza: गाजा पट्टी में गुरुवार को इजरायली हमलों में कम से...

खबरें और भी हैं...

सहारा की ज्यादातर संपत्तियां अडानी के हवाले? सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी का इंतजार

New Delhi News: सहारा समूह का लंबे समय से अटका वित्तीय विवाद अब एक...

अगस्त 2025 में भारत के स्मार्टफोन निर्यात में 39% की उछाल

Smartphone exports jump 39%: भारत के स्मार्टफोन निर्यात ने अगस्त 2025 में शानदार प्रदर्शन...