लाइफस्टाइल

कांवड़ यात्रा की परंपरा है सदियों पुरानी, जानें इसके महत्व और नियम

Sawan Special :  वैदिक शास्त्र के अनुसार भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग पर गंगा जल चढ़ाने की परंपरा कांवड़ यात्रा (Kavar Yatra) कहलाती है। यह पावन यात्रा सावन में पूरी की जाती है जो सदियों पुरानी है।
भगवान शिव को मानने वाले लाखों लोग एक पवित्र स्थान से कांवड़ लेकर मंदिर तक की पैदल यात्रा (Kavar Yatra) पूर्ण करते हैं। इस दौरान कई नियमों का पालन किया जाता है। आज हम कांवड़ यात्रा का महत्त्व और इससे जुड़े नियमों के बारे में जानेंगे।
The tradition of Kanwar Yatra is centuries old, know its importance and rules

 इतिहास

कांवड़ यात्रा का इतिहास बहुत पुराना है। शास्त्रों के मुताबित भगवान शिव के परम भक्त परशुराम ने पहली बार इस कांवड़ यात्रा को सावन के महीने में ही किया था। तभी ये कांवड़ यात्रा संतों ने शुरू की और सबसे पहले साल 1960 में सामने आई थी। इस यात्रा में पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। इसके अलावा एक और मान्यता है कि इस यात्रा की शुरूआत श्रवण कुमार ने की थी। श्रवण कुमार ने अपने माता-पित की इच्छा पूरी करने के लिए उनको कांवड़ में बैठाकर लेकर आए और हरिद्वार में गंगा स्नान करवाया था। इसके साथ ही श्रवण कुमार वापस आते वक्त गंगाजल भी लेकर आए थे और इसी जल से उन्होंने भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था।
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कांवड़ यात्रा के प्रकार

शास्त्रों के अनुसार कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) के तीन प्रकार बताए गए हैं। पहली है सामान्य कांवड़ यात्रा इसमें कांवड़िया अपनी जरूरत के हिसाब से और थकान के मुताबिक जगह-जगह रुककर आराम करते हुए इस यात्रा को पूरा कर सकता है। दूसरी है डाक कांवड़ (Dak Kanvar) इस यात्रा में कांवड़िया जब तक भगवान शिव का जलाभिषेक नहीं कर लेता है तब तक लगातार चलते रहना होता है। इस यात्रा में कांवड़िया आराम नहीं कर सकता है। तीसरी होती है दांडी कांवड़ इस कांवड़ यात्रा में कांवड़िया गंगा के किनारे से लेकर जहां पर भी उसे भगवान शिव का जलाभिषेक करना है वहां तक दंड करते हुए यात्रा करनी होती है। इस यात्रा में कांवड़िये को एक महीने से भी ज्यादा का समय लग सकता है।
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महत्व

कांवड़ यात्रा एक पवित्र और बेहद ही कठिन यात्रा होती है। इस यात्रा के दौरान भक्त पवित्र स्थानों से गंगाजल लेकर आते हैं। इसके साथ ही भक्त उसी पवित्र स्थान पर गंगा स्नान भी करते हैं। ज्यादातर लोग गंगाजल गौमुख, गंगोत्री, ऋषिकेश और हरिद्वार से गंगाजल को लेकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।
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एक बात और भक्त जो कांवड़ लेकर जाते हैं वो बांस से बनी हुई होती है। इसके दोनों छोरों पर घड़े बंधे होते हैं जिसमें गंगाजल होता है। इन्ही घड़ों को गंगाजल से भरकर कांवड़ यात्रा को पैदल पूरा किया जाता है। इसके अलावा कुछ लोग तो नंगे पांव ही यात्रा करते हैं। तो कुछ लोग अपनी सहूलियत के मुताबिक, बाइक, स्कूटर, साइकिल या मिनी ट्रक में भी पूरा करते हैं। इसके साथ ही इस यात्रा के दौरान लोग भक्तों को आराम देने के लिए विश्राम स्थल भी बनाते हैं और इनके खाने पीने का इतंजाम भी करते हैं और चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है।
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कांवड़ यात्रा के नियम

इस यात्रा को लेकर कुछ नियम भी हैं जो बेहद कठिन होते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया अपनी कांवड़ को जमीन पर नहीं रख सकता है। इसके अलावा बिना नहाए हुए इसको छूना पूरी तरह से वर्जित है। कांवड़ यात्रा के दौरान कावड़िया मांस, मदिरा या किसी प्रकार का तामसिक भोजन को ग्रहण करना पर्णतः वर्जित माना गया है। इसके अलावा कांवड़ को किसी पेड़ के नीचे भी नहीं रख सकते हैं।

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