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भारत में निर्मित हथियार वायु सेना के तय मानकों और जरूरतों को पूरा नहीं करते

नई दिल्ली: भारतीय वायु सेना (Indian Air Force) गरुड़ कमांडो के लिए उच्च स्वदेशी सामग्री वाली नई पिस्तौल (Pistol) और सब मशीन बंदूकें खरीदना चाह रही है लेकिन स्थानीय बाजार में तय मानकों के लिहाज से जरूरत नहीं पूरी हो पा रही है।

वायु सेना को क्लोज-क्वार्टर युद्ध (Close-Quarters Combat) में इस्तेमाल के लिए 60 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री के साथ 9 mm की 1,900 पिस्टल और 1,800 सब मशीन गन चाहिए।

जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में आतंकवाद विरोधी अभियानों (Counter Terrorism Operations) और कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के हिस्से के रूप में तैनात गरुड़ कमांडो को यह हथियार (Weapon) दिए जाने हैं।

वायुसेना मुख्यालय (Air Force Headquarters) ने कुछ दिन पहले इस संबंध में भारतीय वेंडरों के लिए अनुरोध पत्र (RFI) जारी किया था लेकिन इसमें रखी गईं शर्तें भारतीय रक्षा उद्योग (Indian Defense Industry) पूरा नहीं करते।

वायु सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि इन श्रेणियों के कुछ हथियार भारत (India) में निर्मित किए जा रहे हैं लेकिन वायु सेना की जरूरतों, आवश्यक तकनीकी और भौतिक विशिष्टताओं को पूरा नहीं करते हैं।

भारत में एक मात्र 9 mm पिस्तौल आयुध कारखानों में बनाई जा रही है, जो पुरानी ब्राउनिंग हाई-पावर्ड पिस्तौल पर आधारित है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) पिछले साल स्वदेशी सब मशीन गन लेकर आया था।

भारतीय सशस्त्र बल (Indian Armed Forces) इस समय जिन हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं, उनमें अधिकांश आयात किये गए हैं।

एक अधिकारी ने कहा कि विशेष बलों के लिए आवश्यक हथियारों की अपेक्षाकृत इनकी कम संख्या होना भी बड़ा मुद्दा है।

वायु सेना (Air Force) की जरूरत तभी पूरी हो सकती हैं, जब कोई भारतीय विक्रेता किसी विदेशी निर्माता के सहयोग से आवश्यक विनिर्देशों को पूरा करने वाला एक नया हथियार (Weapon) डिजाइन करे।

मशीन गन का वजन…

वायु सेना को ऐसी पिस्तौल चाहिए, जिसका वजन बिना मैगजीन के 800 ग्राम से कम हो और मैगजीन क्षमता 17 राउंड या उससे ज्यादा हो।

इसी तरह सब मशीन गन का वजन बिना मैगजीन के 3,200 ग्राम से कम और मैगजीन की क्षमता 25 राउंड या उससे ज्यादा होनी चाहिए।

दोनों हथियार शून्य तापमान और उच्च आर्द्रता की स्थिति में भी काम करने में सक्षम हों। इसके अलावा स्वचालित, ऑप्टिकल, लेजर लक्ष्य जैसे सहायक उपकरण से लैस होना चाहिए।

मौजूदा समय में वायु सेना के गरुड़ कमांडो ऑस्ट्रियाई ग्लोच्क-17.9 MM पिस्टल और इज़राइली TAR-21 5.56 MMअसॉल्ट राइफल का इस्तेमाल करते हैं।

लेजर के माध्यम से हवाई हमलों का मार्गदर्शन करने का काम सौंपा गया

इसके अलावा गैलील स्नाइपर राइफल, नेगेव लाइट मशीन गन, AK-47 राइफल और बेरेटा पिस्टल जैसे कुछ अन्य हथियार हैं।

वायु सेना ने अतीत में वैश्विक विक्रेताओं से नई पिस्तौल और सब मशीन गन के लिए बोली मांगी थी लेकिन खरीद प्रक्रिया में बाधा बनी रही।

सितंबर, 2004 में गठित गरुड़ विशेष बल को महत्वपूर्ण वायु सेना के ठिकानों और प्रतिष्ठानों की सुरक्षा, खोज और बचाव मिशन, आतंकवाद का मुकाबला करने, विशेष टोही, शत्रुतापूर्ण क्षेत्र में एयरबेस स्थापित करने, दुश्मन की हवाई सुरक्षा को दबाने और दुश्मन की संपत्ति को नष्ट करने, लेजर के माध्यम से हवाई हमलों (Air Strikes) का मार्गदर्शन करने का काम सौंपा गया है।

गरुड़ कमांडोज को कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन (United Nations Peacekeeping Mission) के हिस्से के रूप में भी तैनात किया गया है।

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