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बिहार में फिर से ‘खेला’ होने का संकेत दे रहे तेजस्वी यादव, सीएम नीतीश कुमार…

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Bihar Political Khela : बिहार के राजनीतिक हलकों में खेला शब्द राजनीतिक संस्कृति (Political Culture) का अभिन्न अंग बन गया है. खेला के नाम पर राजनीतिक दांव-पेचों की चर्चा वर्षों से होती रही है।

वहीं, Nitish Kumar की पार्टी जदयू के NDA में चले जाने के बाद राजद नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने खेला होगा का ऐलान कर एक बार फिर नई राजनीतिक रणनीति की चेतावनी दी है।

वर्तमान परिदृश्य में, जब से नीतीश कुमार भाजपा गठबंधन में शामिल हुए हैं, तेजस्वी यादव बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में सेंध नहीं लगा पाए हैं।

बिहार के सियासी खेल में नीतीश कुमार की अहम भूमिका रही है. 2013 में, जब भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए नरेंद्र मोदी को अपने प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया तो नीतीश कुमार को मोदी की उम्मीदवारी पसंद नहीं आई और बाद में उन्होंने 2005 से भाजपा के साथ अपना दीर्घकालिक गठबंधन तोड़ दिया।

2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने के बाद, नीतीश कुमार की जदयू ने 40 में से केवल दो सीटें जीतीं। 2015 में, नीतीश कुमार एक समझौते के तहत लालू प्रसाद यादव के महागठबंधन में शामिल हुए कि अगर गठबंधन जीता तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा।

नीतीश BJP के मुख्य एजेंडे से नाखुश

यह गठबंधन फलदायी साबित हुआ और बिहार में NDA के एक दशक लंबे शासन का अंत हो गया। अपने वचन के पक्के लालू प्रसाद यादव ने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया।

फिर भी, 2017 में, नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ सरकार बनाने के लिए महागठबंधन छोड़कर निष्ठा बदल ली। 2022 आते-आते उन्होंने फिर BJP से नाता तोड़ लिया और दोबारा महागठबंधन में शामिल हो गए। 2024 की शुरुआत में नीतीश ने एक बार फिर BJP के साथ गठबंधन किया।

इन बदलावों के कारण नीतीश कुमार को बिहार की राजनीति में खेला बॉस के रूप में पहचाना जाने लगा। पिछले अनुभव के बावजूद राजद ने खेला की उम्मीद बरकरार रखी है.

ऐसा लगता है कि तेजस्वी यादव की रणनीति नीतीश कुमार को गठबंधन में वापस लाकर BJP के खिलाफ खड़ा करने की है। जानकारों के मुताबिक नीतीश कुमार लंबे समय से BJP के मुख्य एजेंडे से नाखुश हैं।

नितीश खेल सकते हैं सियासी दांव

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के दौरान, जद (यू) सदस्यों को मंत्री पद का कम आवंटन, वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक जैसी नीतियां नीतीश की प्राथमिकताओं के खिलाफ थीं।

इसके अलावा, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा और आरक्षण कानूनों को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की बिहार की मांग अधूरी रह गई, जिससे नीतीश और भी नाराज हो गए।

ऐसे में आने वाले महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव (Maharashtra and Haryana elections) के नतीजों पर निर्भर करता है। ऐसे में अंदरखाने तो यही खबर है कि अगर हरियाणा और महाराष्ट्र में राजनीतिक गणित बदलता है और नतीजे विपक्ष के पक्ष में आते हैं तो मुख्यमंत्री नितीश कुमार भी बिहार में एक बार फिर सियासी दांव खेल सकते हैं। फ़िलहाल वे वेट एंड वाच वाली भूमिका में हैं।

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