भारत

चुनाव लड़ना चाहें तो लड़ सकते हैं दिल्ली के CM अरविंद केजरीवाल, वोट डालने का…

ऐसे 5 लाख से ज्यादा लोग हैं जो इस लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में मतदान नहीं कर सकेंगे क्योंकि वे जेल की सजा काट रहे हैं।

CM Arvind Kejriwal can Contest Election : चुनाव लड़ना एक अधिकार है और दूसरा वोट (Vote) देना अलग। वोट देने की अपनी शर्त है।

जानकारी के अनुसार, कथित शराब घोटाला (Liquor Scam) मामले में तिहाड़ जेल (Tihar Jail) में बंद Delhi  CM Arvind Kejriwal लोकसभा चुनाव लड़ेंगे भी या नहीं, ये अभी साफ नहीं हो पाया है, लेकिन इतना तो तय है कि केजरीवाल को जेल में रहते हुए Vote डालने की इजाजत नहीं है।

एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसे 5 लाख से ज्यादा लोग हैं जो इस लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में मतदान नहीं कर सकेंगे क्योंकि वे जेल की सजा काट रहे हैं।

मतदान का हक क्यों नहीं ?

अब सवाल यह उठाता है कि जेल में रहते हुए जब चुनाव लड़ा जा सकता है, तो मतदान का क्यों नहीं?

गौरतलब है कि डेढ़ दशक पहले Bihar की पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) में एक ऐसा ही मामला आया, जिसमें जेल की सजा काट रहे एक कैदी ने चुनाव लड़ने की मंशा जताई थी।

कोर्ट ने इनकार करते हुए कहा कि जब कैदियों को वोट देने का हक नहीं है, तो चुनाव लड़ने की छूट कैसे दे सकते है।

Supreme Court ने भी High Court के फैसले पर मुहर लगा दी थी, लेकिन बाद में तत्कालीन UPA सरकार ने कानून में बदलाव कर दिया था जिसमें जेल में बंद लोगों को चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी गई थी।

ये मामला 2013 का है, लेकिन जेल में बंद शख्स के पास मतदान करने का अधिकार नहीं है।

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की 1951 की धारा 62(5) के तहत जेल में बंद कोई भी व्यक्ति वोट नहीं डाल सकता है फिर चाहे वो हिरासत में हो या सजा काट रहा हो।

वोट डालना एक कानूनी अधिकार है। दोषी के अलावा जिनपर ट्रायल चल रहा हो, वे भी मतदान नहीं कर सकते हैं।

कैदियों को मताधिकार से वंचित करने का इतिहास

कैदियों को मताधिकार से वंचित करने का इतिहास अंग्रेजी जब्ती अधिनियम 1870 से दिखता है। इस दौरान राजद्रोह या गुंडागर्दी के दोषी लोगों को अयोग्य ठहराते हुए उनसे वोट का अधिकार छीन लिया जाता था।

वजह ये कि जो इतने गंभीर अपराध कर रहा है, उसे किसी भी तरह का अधिकार, मतदान करने का अधिकार भी नहीं मिलना चाहिए।

यही नियम गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 में भी लागू हो गया। हालांकि 1951 के जन प्रतिनिधित्व अधिनियम ने इसे नए सिरे से देखा और इसमें हर शख्स जो आरोपी या दोषी हो और जेल में हो, उसे मतदान करने का अधिकार नहीं है लेकिन इस प्रावधान में उन्हें छूट मिलती है, जिसमें किसी भी वजह से सरकार को शक हो, इसके बाहर रहने से उपद्रव हो सकता है और इसे ही टालने के लिए उसे नजरबंद कर दिया गया हो।

ऐसे लोग वोट डाल सकते हैं। वह पुलिस के घेरे में जाकर वोट डाल सकता है या फिर उसे औपचारिक तौर पर स्थानीय प्रशासन को इत्तिला करनी होगी कि वो फलां समय पर फलां बूथ में जा रहा है ताकि उनपर नजर रखी जा सके।

साल 2013 में सेक्शन 62(5) में संशोधन हुआ। इसमें जेल में रहते हुए चुनाव लड़ने की छूट मिल गई।

वे चुनाव में उम्मीदवार हो सकते हैं, अपने लोगों के जरिए चुनावी प्रचार भी करवा सकते हैं, लेकिन वोट नहीं डाल सकते। यहां तक कि जेल से जमानत पर बाहर आना भी उन्हें ये सुविधा नहीं देता।

आरोपमुक्त होने या सजा पूरी होने के बाद ही वह अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकता है यानी वोट डाल सकता है। ऐसे में जेल से चुनाव लड़ने वाले नेताओं को वोट देने का अधिकार नहीं मिलेगा।

Back to top button
Close

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker