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शिशु का माता के गर्भ में ही भाषा का सम्प्रेषण हो जाता है आरंभ: राज्यपाल

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रांची: राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि बच्चे विभिन्न चीजों को जानते हैं और अपनी मातृभाषा में व्यक्त कर सकते है, लेकिन कई बार किसी अन्य विशिष्ट भाषा में नहीं बता सकते हैं।

ऐसे में मातृ भाषा में पढ़ाई को बढ़ावा देवा सराहनीय है।

मातृभाषा में ही बच्चों में आरंभ से ही इनोवेटिव आइडिया विकसित होंगे। झारखण्ड के परिप्रेक्ष्य में यह और भी महत्वपूर्ण है।

यही कारण है कि विश्व के विभिन्न विकसित देशों में भी विश्व के विभिन्न विकसित देशों में भी मातृभाषा में ही शिक्षा प्रदान की जाती है।

मातृभाषा में ही शिक्षा प्रदान की जाती है। राज्यपाल रविवार  को अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर रांची में डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय लुप्तप्राय देशज भाषा और संस्कृति प्रलेखन केंद्र के उदघाटन समारोह को संबोधित कर रही थी।

राज्यपाल ने कहा कि शिशु का माता के गर्भ में ही भाषा का सम्प्रेषण आरंभ हो जाता है।

अभिमन्यू ने गर्भ में ही चक्रव्यूह है। अभिमन्यू ने गर्भ में ही चक्रव्यूह को भेदने की कला सीखी थी।

भेदने की कला सीखी थी। जन्म लेने के बाद मा जन्म लेने के बाद मा जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा नव जो प्रथम भाषा सीखता है, जो उसके समाज में बोली जाती है, वह उसकी मातृभाषा होती है।

 21फरवरी को हर वर्ष दुनिया भर में फरवरी को हर वर्ष दुनिया भर में अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है।

वर्ष 2000 में इस दिन को में इस दिन को यूनाईटेड नेशन द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित करने का उद्देष्य पूरे मातृभाषा दिवस घोषित करने का उद्देष्य पूरे विष्व में भाषायी और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता का प्रसार करना है।

राज्यपाल ने कहा कि मातृभाषा स्वयं की संस्कृति, संस्कार और संवेदना को अभिव्यक्त करने का सच्चा संवेदना को अभिव्यक्त करने का सच्चा माध्यम है। मातृभाषा वात्सल्यमयी माँ के समान होती है।

मातृभाषा का सम्मान अर्थात माता का सम्मान है। मातृभाषा किसी अर्थात माता का सम्मान है।

मातृभाषा किसी भी व्यक्ति की सामजिक, संस्कृति व भाषायी पहचान होती है, पहचान होती है।

उन्होंने झारखंड राज्य में भी जनजातीय एवं क्षेत्रीय हमारे राज्य में भी जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के विकास हेतु प्रयास किये जा रहे हैं। विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं के लिपि का विकास किया जा रहा है।

विभिन्न पाठ्य-पुस्तकें की रचना विभिन्न लिपि में पाठ्य-पुस्तकें की रचना विभिन्न लिपि में करने के कार्य हुए हैं।

करने के कार्य हुए हैं। साथ ही अनुवाद संबंधी कार्य भी हुए हैं।

उन्होंने कहा कि झारखण्ड में ऐसी अनेक भाषायें हैं जो झारखण्ड में ऐसी अनेक भाषायें हैं जो बोली जाती हैं लेकिन उनका विकास नहीं हुआ है, उसे पहचान नहीं मिला है।

ऐसे में इस केन्द्र का दायित्व है कि वे भाषाओं के संरक्षण, संवर्धन एवं विकास हेतु सचेष्ट होकर कार्य करें।

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