Latest Newsबिहारबिहार में मिला स्पाइनल मस्कूलर एट्रॉफी टाइप वन का दूसरा मरीज, इलाज...

बिहार में मिला स्पाइनल मस्कूलर एट्रॉफी टाइप वन का दूसरा मरीज, इलाज के लिए 16 करोड़ रुपये वाली सुई की होगी जरूरत

Published on

spot_img
spot_img
spot_img

बेगूसराय: स्पाइनल मस्कूलर एट्रॉफी टाइप-वन नामक दुसाध्य बीमारी का बिहार में दूसरा मरीज रोसड़ा में मिला है। सीएमसी वेल्लोर में जांच के बाद उक्त बीमारी का खुलासा हुआ तथा बैंगलोर के डॉक्टर ने अमेरिका में 21 मिलियन डॉलर (भारत में करीब 16 करोड़ रुपये) में मिलने वाला जोल्जेनसमा नामक इंजेक्शन लाने को कहा है, तभी इस छोटी बच्ची की जान बच सकती है।

बिहार में आयांश के बाद स्पाइनल मस्कूलर एट्रॉफी से ग्रसित एक वर्षीय शिवन्या रोसड़ा के वार्ड नंबर-दो निवासी गौतम राज की पुत्री है।

विभिन्न जगहों पर जांच एवं इलाज में लाखों रुपये खर्च करने के बाद बंगलोर में जब इस दुसाध्य बीमारी की पुष्टि हुईए तब से इतनी बड़ी रकम को लेकर शिवन्या राज के परिजन की चैन छिन गई है।

बेटी के इलाज की कीमत सुनकर विचलित माता-पिता ने मुख्यमंत्री और मंत्रियों के साथ विधायक और सांसद से भी मदद की अपील की है।

इसके साथ ही सुई के लिए रकम जल्दी जुटाने के लिए इंपैक्ट गुरु के माध्यम से क्राउड फंडिग शुरू किया गया है। बखरी निवासी सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षक कौशल किशोर क्रांति ने बेगूसराय में भी अधिक से अधिक लोगों तक यह जानकारी पहुंचाकर छोटी-छोटी राशि सहयोग के लिए प्रेरित करने का अभियान शुरू किया है।

कौशल किशोर क्रांति ने बताया कि दशहरा शक्ति और बेटी की पूजा का पर्व है। इस बीच रोसड़ा की दुर्गा रूपी शिवन्या की जान बचाने के लिए छोटी से छोटी राशि बड़ा काम कर सकती है।

मेला में अपने बच्चों को एक खिलौना कम देकर उसी राशि से एक बच्ची की जान बचाने में मदद करना हमारा धर्म होना चाहिए।

उत्क्रमित मध्य विद्यालय लालपुर में नियोजित शिक्षक राजेश राज और गृहिणी वंदना कुमारी की एकमात्र पुत्री शिवन्या की मदद के लिए धीरे-धीरे हाथ उठने लगे हैं। सभी लोगों को इसमें सहयोग करना चाहिए, फंडिंग के साथ-साथ भारत सरकार से मदद लेने की भी प्रक्रिया की जा रही है।

पीड़ित बच्ची के पिता राजेश राज ने बताया कि एक वर्ष की शिवान्या का शरीर भी अब काम नहीं करता है।

मुख्य रूप से स्पाइनल मस्कूलर एट्रॉफी टाइप-वन का अत्यधिक प्रभाव गर्दन पर दिख रहा है। गर्दन पुरी तरह से काम करना बंद कर चुकी है। शुरुआती दौर में स्थानीय चिकित्सक से लेकर पटना तक नस एवं मांसपेशी विशेषज्ञों से लंबा इलाज कराया, लेकिन सुधार के बदले मांसपेशी और कमजोर होती चली गयी।

इसके बाद सितंबर में सीएमसी वेल्लोर पहुंचे तो विभिन्न प्रकार की जांच प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब इस बीमारी के बारे में पता चला है।

उन्होंने बताया कि लाखों बच्चों में से किसी एक को होने वाले स्पाइनल मस्कूलर एट्रॉफी में बच्चे का अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देता है।

इस जेनेटिक बीमारी का सबसे खतरनाक पहलू है कि घर मेंं तीन अन्य बच्चों को भी यह बीमारी अपने आगोश में ले सकती है। डॉक्टरों ने बताया है कि ऐसा 75 प्रतिशत से अधिक खतरा बना रहता है।

इस बीमारी के इलाज के लिए जोल्जेनसमा नामक इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है। भारत में नहीं बनने वाले (अमेरिका निर्मित) सुई के पूरे डोज की कीमत 16 करोड़ रुपये है।

अस्पताल के मेडिकल एक्सपर्ट के अनुसार यह बीमारी बच्चों के नस और मांसपेशियों पर अपना प्रभाव डालती है और बच्चे को काफी कमजोर कर देती है।

बीमारी के लक्षण के साथ जन्म लेने वाले बच्चे अधिक से अधिक दो साल तक जीवित रह पाते हैं। इस बीच उक्त सुई से समुचित इलाज हो गया तो बच्चे को नया जीवन मिल सकता है।

सबसे बड़ी बात है कि अमेरिका में बनने वाली उक्त इंजेक्शन भी किसी संस्था के माध्यम से ही उपलब्ध हो सकती है।

spot_img

Latest articles

घर बैठे ऐसे करें SIR डेटा चेक, नाम कटने का डर होगा खत्म

Check your SIR Data from Home : भारत निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची (Voter...

बोकारो स्टील प्लांट के GM दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार

Bokaro Steel Plant GM Arrested on rape Charges : बोकारो स्टील प्लांट के एक...

नशे में युवक ने किया बुजुर्ग के सिर पर टांगी से वार

Elderly man Attacked with a Sickle on his Head : लातेहार जिले के महुआडांड़...

खबरें और भी हैं...

घर बैठे ऐसे करें SIR डेटा चेक, नाम कटने का डर होगा खत्म

Check your SIR Data from Home : भारत निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची (Voter...

बोकारो स्टील प्लांट के GM दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार

Bokaro Steel Plant GM Arrested on rape Charges : बोकारो स्टील प्लांट के एक...