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महारानी एलिजाबेथ के निधन पर भारत में राजकीय शोक, फैसले पर कई लोगों ने उठाये सवाल

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नई दिल्ली: ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ (Queen Elizabeth) द्वितीय के निधन (Death) पर भारत में रविवार को राजकीय शोक की घोषणा की गई है लेकिन बहुत से लोग सरकार के इस निर्णय पर सवाल खड़े कर रहे हैं।

केंद्र सरकार ने “गुलामी के प्रतीकों” को हटाने के प्रयास के तौर पर हाल में राजपथ का नाम बदलकर ‘कर्तव्यपथ’ कर दिया था और भारतीय नौसेना के नए ध्वज में छत्रपति शिवाजी से प्रेरित प्रतीक चिह्न अंकित किया गया।

ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का स्कॉटलैंड में बाल्मोरल कैसल (Balmoral Castle) में बृहस्पतिवार को निधन हो गया था। उन्होंने ब्रिटेन के इतिहास में सबसे लंबे समय तक 70 साल शासन किया। वह 96 वर्ष की थीं।

भारत राष्ट्रमंडल देशों के समूह का सदस्य है जो कि 56 देशों का एक राजनीतिक संघ है

दिल्ली के एक लेखक स्वप्निल नरेंद्र (Swapnil Narendra) ने कहा, “हमारे देश ने गुलामी के प्रतीकों को हटाने के नाम पर नौसेना के ध्वज को बदल दिया। अब उसके विपरीत निर्णय लेते हुए राजकीय शोक घोषित किया गया है।”

दुनियाभर में लोग महारानी के निधन पर शोक व्यक्त कर रहे हैं और विभिन्न परमार्थ संस्थाओं में उनके योगदान को रेखांकित कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग यह भी याद कर रहे हैं कि किस प्रकार ब्रिटिश द्वारा उपनिवेश बनाए गए देशों ने ब्रिटेन की विरासत की कीमत चुकाई।

जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में PhD scholar  अनन्या भारद्वाज ने कहा, “एक भारतीय के तौर पर मेरी पहचान उपनिवेशकाल के बाद की है और भारत में महारानी के लिए एक दिन का शोक घोषित करना बेहद निराशाजनक कदम है।”

राजनीतिक सलाहकार और पीएचडी शोधार्थी पूर्वा मित्तल को लगता है कि सरकार राजकीय शोक घोषित कर “प्रोटोकॉल” का पालन कर रही है। उन्होंने कहा, “राजकीय शोक के निर्णय राजनीतिक रुख और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के आधार पर लिए जाते हैं।”

भारत राष्ट्रमंडल देशों के समूह का सदस्य है जो कि 56 देशों का एक राजनीतिक संघ है। इस समूह के सदस्य देशों में से ज्यादातर ब्रिटिश साम्राज्य (British Empire) के पूर्व उपनिवेश हैं। महारानी के निधन का समाचार आते ही ट्विटर पर बहुत से लोगों ने ब्रिटेन से ‘कोहिनूर’ हीरा वापस लेने की मांग उठाई।

सरकार की कथनी और करनी में अंतर

इसके अलावा बहुत से लोगों ने एलिजाबेथ द्वितीय के निधन पर राजकीय शोक घोषित करने के निर्णय की भी आलोचना की। ट्विटर पर एक व्यक्ति ने कहा, “क्या अब हम कोहिनूर वापस ले सकते हैं?’’

एक अन्य व्यक्ति ने Twitter पर कहा, “भारत द्वारा महारानी एलिजाबेथ के निधन पर भारत की ओर से राजकीय शोक घोषित करना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और उनके बलिदान का अपमान करने जैसा है।”

मित्तल ने कहा, “महारानी को ब्रिटेन और उसके उपनिवेश रहे देशों के बीच एक जोड़ने वाली ताकत के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अतीत और उस समय को भुला दिया था जो दमनकारी था, मूलनिवासियों की संस्कृति को नष्ट करने वाला था और उनके धन को लूटने वाला था।’’

कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें लगता है कि सरकार की कथनी और करनी में अंतर है। नरेंद्र नामक एक व्यक्ति ने कहा, “मुझे शोक घोषित करने से समस्या नहीं है लेकिन मैं इस दुविधा में हूं कि मेरी सरकार मुझसे क्या कहना चाहती है।

उनके निधन से एक युग का अंत हो गया: मधुलिका गुप्ता

अगर हम गुलामी के प्रतीकों को हटाना चाहते हैं तो हमें उपनिवेश बनाने वाले देश की महारानी के निधन पर शोक क्यों मना रहे हैं।”

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने बृहस्पतिवार को कहा था कि ‘किंग्स-वे’ या राजपथ “गुलामी का प्रतीक” है और इसे इतिहास में दफन कर दिया गया है और हमेशा के लिए उसका नाम मिटा दिया गया है। उन्होंने कहा था कि ‘कर्तव्यपथ’ और इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा से देश को नई प्रेरणा मिलेगी।

देश के पहले स्वदेशी विमानवाहक युद्धपोत आईएनएस विक्रांत को दो सितंबर को सेवा में शामिल करते हुए प्रधानमंत्री ने नौसेना के नए ध्वज का भी अनावरण किया था और कहा था कि देश ने गुलामी का बोझ उतार दिया है।

एक विपणन पेशेवर मधुलिका गुप्ता ने कहा, “मुझे लगता है कि ऐसे व्यक्ति के निधन पर शोक की घोषणा करना उचित नहीं जिसके द्वारा मानवता के विरुद्ध किये गए अपराध और नस्लवाद के व्यवहार संबंधी प्रमाण उपलब्ध हो, भले ही वह कोई राजा या रानी हो।”

उन्होंने कहा, “उनके निधन से एक युग का अंत हो गया। उनका शासनकाल उपनिवेश (reign colony) बनाने, राष्ट्रमंडल देशों को लूटने, अकाल पैदा करने, देशों का विकास 50 साल पीछे करने और इन सबके लिए कभी माफी नहीं मांगने वाला था।”

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