CM हेमंत को लेकर ‘बंद लिफाफा’ शायद फिर फड़फड़ाने लगा है, तभी तो…

अब उनके जाने और नए राज्यपाल CP राधाकृष्ण (CP Radhakrishna) के वर्तमान समय में वह लिफाफा लगता है फिर फड़फड़ाने लगा है, तभी तो मामले की चिंगारी आगे बढ़ती दिख रही है

News Aroma Media

रांची: झारखंड के पूर्व राज्यपाल रमेश बैस (Ramesh Bais) के कार्यकाल में चुनाव आयोग (Election Commission) की ओर से सीएम हेमंत सोरेन (CM Hemant Soren) के ऑफिस ऑफ प्रॉफिट (Office of Profit) से जुड़े मामले को लेकर राजभवन (Raj Bhavan) में एक बंद लिफाफा आया था।

9 माह पहले का यह मामला रमेश बैस के कार्यकाल में रह-रह कर खूब सुर्खियों में आ रहा था।

अब उनके जाने और नए राज्यपाल CP राधाकृष्ण (CP Radhakrishna) के वर्तमान समय में वह लिफाफा लगता है फिर फड़फड़ाने लगा है, तभी तो मामले की चिंगारी आगे बढ़ती दिख रही है।

सही समय आने पर फैसला लेंगे

बताया जा रहा है कि एक मीडिया इंटरव्यू (Media Interview) में लिफाफे पर CP राधाकृष्ण से सवाल पूछा गया।

सवाल था कि पूर्व राज्यपाल कहा करते थे कि चुनाव आयोग के मंतव्य पर कानूनी सलाह ली जा रही है।

इस वजह से फैसला लेने में विलंब हो रहा है। लिफाफा पहुंचे नौ माह बीत चुके हैं। आपको आए तीन माह हो चुके हैं।

अब लिफाफा कब खुलेगा। राज्यपाल CP राधाकृष्ण ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि पूर्व के राज्यपाल ने क्या कानूनी सलाह मांगी थी।

उनका कहना है कि उन्होंने अभी तक इस मैटर को नहीं देखा है। सही समय आने पर फैसला लेंगे।

उन्होंने आगे कहा कि कहा कि विलंब का कारण असामान्य नहीं है। सही समय पर इसपर फैसला लिया जाएगा।

दोनों दलों के नेताओं का तर्क

इस मसले पर झामुमो (JMM) नेता मनोज पांडेय का कहना है कि पार्टी का मानना है कि चुनाव आयोग से आए लिफाफे में हमारे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) के खिलाफ कुछ है ही नहीं।

भाजपा सिर्फ ब्लफबाजी कर रही है। BJP ने इसको जानबूझकर तूल दिया था। अब BJP को जवाब देते नहीं बनेगा। इसलिए पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

भाजपा प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा ने कहा कि यह दो संवैधानिक संस्थाओं के बीच का मामला है।

लिफाफे की बात जानने के लिए मुख्यमंत्री भी राजभवन गए थे। UPA का एक प्रतिनिधिमंडल भी गया था।

उस समय के राज्यपाल ने कहा था कि सही समय आने पर फैसला लेंगे।

प्रवक्ताओं की बात से लगता है कि दोनों का अपना-अपना तर्क है, मगर बस यह मामला एक राजनीतिक सवाल बनकर रह-रह कर सियासी गलियारे में तैरता फिरेगा।

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