रांची: झारखंड हाईकोर्ट ने गुमला जिले की चैनपुर पुलिस द्वारा एक निर्दोष युवक की पिटाई के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह और न्यायाधीश राजेश शंकर की पीठ ने पीड़ित क्यूम चौधरी को 1 लाख रुपये मुआवजे का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार पहले एक सप्ताह के अंदर यह रकम पीड़ित को दे और बाद में दोषी पुलिस अधिकारियों से इसकी वसूली करे।
कोर्ट ने मुआवजा क्यों दिया?
मामला एक दिसंबर 2025 का है, जब चैनपुर पुलिस ने बिना किसी अपराध के क्यूम चौधरी को घर से उठा लिया। पुलिस ने उसे थाने में रात भर रखा और बेरहमी से पीटा। दो दिसंबर को उसे छोड़ दिया गया। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि पुलिस क्यूम के ससुर के अपराध के बदले उस पर कार्रवाई कर रही थी।
इस घटना के खिलाफ नफीजा बीबी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की।
पुलिस थाने में CCTV तक नहीं, एसपी ने माना गलती
3 दिसंबर को सुनवाई के दौरान गुमला के एसपी हारिस बिन जमा कोर्ट में मौजूद थे। उन्होंने CCTV फुटेज पेश करने में असमर्थता जताई, क्योंकि थाना परिसर में कोई कैमरा ही नहीं लगा था।
एसपी ने माना कि थाना प्रभारी ने क्यूम को बिना FIR या अपराध के ग़ैरक़ानूनी तरीके से बंद किया और मारा-पीटा।
जांच के बाद थाना प्रभारी को निलंबित कर दिया गया, जिसकी कॉपी कोर्ट को सौंप दी गई।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का जिक्र करते हुए हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला
फैसला सुनाते समय हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने मामले—किशोर सिंह रविंद्र देव बनाम राजस्थान सरकार—का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “पुलिस कस्टडी में पिटाई से ज्यादा कायरतापूर्ण और अमानवीय कुछ नहीं है। ऐसे व्यवहार से हमारे संविधान के मूल मूल्यों पर गहरा आघात होता है।”
इसी विचार को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने आज अपना निर्णय सुनाया।
DGP को कड़े निर्देश, अगली सुनवाई 7 जनवरी 2026
कोर्ट ने राज्य के DGP को आदेश दिया कि वह Custodial Violence रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन का पालन सुनिश्चित करें और इस संबंध में शपथ पत्र भी दाखिल करें।
मामले की अगली सुनवाई 7 जनवरी 2026 को होगी।




